अखण्ड भारत हम सभी का सपना – ममता काले
नोएडा। प्रेरणा शोध संस्थान न्यास द्वारा अखण्ड भारत सकंल्प दिवस (14 अगस्त) पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. विश्वास त्रिपाठी, रजिस्ट्रार गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा, मुख्य वक्ता के रूप में श्रीमती ममता काले, सह प्रभारी दिल्ली, भाजपा, कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में वी.के सिंह, सीए तथा प्रेरणा शोध संस्थान न्यास की उपाध्यक्ष श्रीमती प्रीति दादू की उपस्थित रही।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता श्रीमती ममता काले ने कहा कि अखण्ड भारत, भारत के प्राचीन समय के अविभाजित स्वरूप को कहा जाता है। प्राचीनकाल में भारत बहुत विस्तृत था जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, आदि देश शामिल थे। कुछ देश जहाँ बहुत पहले के समय में अलग हो चुके थे। वहीं पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि अंग्रेजों से स्वतन्त्रता के काल में अलग हुए। अखण्ड भारत की कल्पना आज के परिवेश में लोगों को हास्यास्पद लग सकती है, किन्तु यह कल्पना कोरी कल्पना नहीं है। आज जहां भारत की सीमा कश्मीर से कन्याकुमारी और आसाम से गुजरात तक मानी जाती है। वास्तव में यह आज के परिवेश का भारत है। वैदिक काल में कितने ही तपस्वी हुए, जो हिमालय के इस पार और उस पार निर्बाध रूप से आवागमन करते थे। अखंड भारत या वृहत्तर भारत की चर्चा होते ही जानकारों के मन में सबसे पहले ब्रिटिशकालीन भारत का नक्शा उभरता है। पर जानकर आश्चर्य होगा कि 1947 में हुआ विभाजन, विशाल भारतवर्ष का पिछले दो हजार पांच सौ सालों में हुआ 24वां भौगोलिक और राजनीतिक विभाजन था। 1857 से 1947 के बीच केवल अंग्रेजों ने ही भारत को सात बार तोड़ा। हमारा देश भौगोलिक दृष्टि से भले ही बहुत हिस्सों में खण्डित हुआ हो, परन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से हमने इसे संभाल कर रखा।
मुख्य अतिथि डॉ. विश्वास त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में कहा कि 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ और 14 अगस्त 1947 को भारत का फिर विभाजन किया गया। इसे भारत के लोग कभी नहीं भूल पाएंगे। यह विभाजन धार्मिक आधार पर था। कार्यक्रम अध्यक्ष वी.के. गुप्ता ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया तथा विनीत पांडेय ने कार्यक्रम की विषय प्रस्तुति रखी।