भारत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर, यहॉं किसी सुकरात को कभी विष नहीं पीना पड़ा
प्रीति शर्मा
भारत ने ब्रिटेन में आयोजित जी- 7 देशों की बैठक में ऑनलाइन और ऑफलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विषय पर अपनी सहमति देते हुए खुले समाजों संबंधी सामूहिक बयान पर हस्ताक्षर किए हैं। यह विश्व स्तर पर भारत की अत्यंत उत्तरदायित्व पूर्ण भूमिका का प्रतीक है क्योंकि व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देने का भारत सदैव समर्थक रहा है। भारत में प्राचीन काल से खुले शास्त्रार्थ की परंपरा रही है। साथ ही बिना किसी क्षेत्र, जाति, लिंग, आयु भेद के निस्संकोच अपनी बात रखने के विषय में आदि गुरु शंकराचार्य और मंडन मिश्रा के बीच शास्त्रार्थ, ऋषि अष्टावक्र द्वारा राजदरबार में विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ, कौटिल्य द्वारा धार्मिक राज्य का आधार जैसे जनता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अनेकों उदाहरण हैं। ये उदाहरण भारत की प्राचीन संस्कृति के आधार हैं।
वहीं पश्चिमी देशों में अपनी बात रखने पर सुकरात को विषपान करना पड़ा और प्लेटो से कार्ल मार्क्स तक कई विद्वानों को अपनी प्राण रक्षा के लिए देश छोड़कर भागना पड़ा। आधुनिक युग की बात करने वाले मेकियावली, हॉब्स आदि को तीव्र विरोध झेलना पड़ा। ऐसा भारत में कभी नहीं हुआ कि विचार व्यक्त करने के लिए प्राणों का भय आ पड़े।
आज हम राजा राम मोहन राय की 250 वीं जयंती मना रहे हैं। जिन्होंने समाज सुधार के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग संवाद कौमुदी और मिरातुल अख़बार द्वारा किया। साथ ही 1823 के वर्नाकुलर प्रेस एक्ट का विरोध ब्रिटिश संसद में भी किया। अतः भारत द्वारा जी 7 में ‘खुले समाज’ को प्रोत्साहन देने के पीछे भारत की अपनी परंपरागत सभ्यता और समृद्ध मूल्यों तथा लोकाचार की शक्ति है जहां मानव मात्र का खुले हाथों स्वागत है। किंतु आज विश्वपटल पर यह बहस शुरू हुई है तो इसके पीछे 21वीं सदी की अपनी समस्याएं हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में मानव मूल्यों का दुरुपयोग झूठी सूचनाओं और साइबर अपराध द्वारा किया जा रहा है।
जी-7 के मंच पर 11 देशों द्वारा अपनी सहमति देने के बाद इस विषय एक सकारात्मक वातावरण बना है क्योंकि वर्तमान में भ्रामक सूचनाएं मनुष्य के जीवन और शांति की शत्रु बन गई हैं। मॉबलिंचिंग, साइबर अपराध और विभिन्न देशों में हिंसा को ऑनलाइन सूचना के विकृतिकरण से बढ़ावा मिला और तो और दुनिया से भौतिक रूप से दूर रह कर भी व्यक्ति गलत सूचनाओं के चलते अवसाद ग्रस्त हो रहे हैं। अतः यह दायित्वपूर्ण कदम निश्चय ही नए विश्व की रचना में सहायक होगा क्योंकि वर्तमान में ये सभी समस्याएं सभी देशों को समान रूप से प्रभावित कर रही हैं। इससे वास्तविक लोकतंत्र की अभिव्यक्ति होगी।