आतंक का घिनौना हथियार रेप

आतंक का घिनौना हथियार रेप

अनंत विजय

आतंक का घिनौना हथियार रेपआतंक का घिनौना हथियार रेप

इजरायल पर हमास के आतंकवादी हमले के दौरान पूरी दुनिया ने देखा कि किस तरह से आतंकवादियों ने एक इजरायली महिला के साथ क्रूर बर्ताव किया। किस तरह से मजहबी नारे लगाकर महिला को निर्वस्त्र करके गाड़ी में बंधक बना कर उसके शव के साथ दुर्व्यवहार किया गया। किस तरह से महिलाओं को घरों से पकड़कर गाड़ियों में जबरन ठूंस कर अज्ञात स्थान पर ले गए। किस तरह से महिलाओं की गोद से उनके बच्चों को छीनकर या तो गोली मार दी गई या फिर उनको काट डाला गया। किस तरह से उनको बंधक बनाकर मनमानी की जा रही है। आतंकी हमले में महिलाओं के साथ जिस तरह का अमानवीय और क्रूर व्यवहार किया गया, उससे सभ्य वैश्विक समाज की ओर बढ़ रही दुनिया के सामने एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। इजरायल पर इतने बड़े आतंकी हमलों के कारणों पर चर्चा करने वाले अधिकतर विशेषज्ञों को महिलाओं के इस भयानक दर्द का अनुमान नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है। इनमें से अधिकतर विशेषज्ञ भौगोलिक और राजनीतिक कारणों की पड़ताल और उसके विश्लेषण में जुटे हैं। विशेषज्ञों के लंबे लंबे वक्तव्यों और राजनयिक दांव पेंचों को समझाने के प्रयासों में भी महिलाओं का यह दर्द कहीं दिखता नहीं है। अगर कोई इसकी चर्चा करता है तो बस एक दो पंक्तियों में। अपने देश में तो कुछ लोग हमास की आतंकी वारदात पर बोलने से भी कतरा रहे हैं। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी ने अपनी कार्यसमिति की बैठक के बाद जो प्रस्ताव पास किया उसमें हमास और आतंकी वारदात का उल्लेख तक नहीं किया। महिलाओं के दुख और दर्द की बात तो बहुत दूर प्रतीत होती है। कई विशेषज्ञ तो हमास के आतंकी कारनामों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखने का प्रयत्न कर रहे हैं। इजरायल और फिलस्तीन में हो रहे बम धमाकों के बीच महिलाओं की चीखें दब गई हैं।

ऐसे समय में याद आता है, तीन वर्ष पहले प्रकाशित ब्रिटिश पत्रकार और लेखक क्रिस्टीना लैंब की पुस्तक ‘आवर बॉडीज देयर बैटलफील्ड, व्हाट वार डज टू वूमन’। अपनी इस पुस्तक में क्रस्टीना लैंब ने विस्तार से केस स्टडीज के साथ बताया है कि किस तरह से युद्ध के दौरान बलात्कार को हथियार के तौर पर उपयोग में लाया जाता है। लैंब का कहना है कि बलात्कार युद्ध का सबसे सस्ता हथियार है, जिसका उपयोग पुरुष करते हैं। इस हथियार से युद्ध के दौरान परिवारों को तबाह कर दिया जाता है। पूरे क्षेत्र को आतंक के साये में जीने को विवश किया जा सकता है। इस हथियार से पीढ़ियों को तबाह किया जा सकता है। इस पुस्तक में लेखिका ने प्रथम विश्व युद्ध से लेकर हाल के दिनों के युद्धों और हिंसाग्रस्त क्षेत्रों का विश्लेषण किया है। वे अमेरिका के राष्ट्रपति रहे अब्राहम लिंकन के वर्ष 1863 में जारी किए गए उस कोड की चर्चा भी करती हैं, जो अमेरिका के सिविल वार के समय सैनिकों को रेप से रोकता है। प्रथम विश्व युद्ध के समय तुर्की (अब तुर्किए) के सैनिकों ने आर्मेनिया में जो नरसंहार किया था, तब भी बलात्कार और यौनिक हिंसा पर गहन विचार किया गया था। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी यौन हिंसा में किसी प्रकार की कमी देखने को नहीं मिली थी। उस दौरान भी दोनों पक्षों पर महिलाओं के दैहिक शोषण के आरोप लगे थे। युद्ध अपराधियों के विरुद्ध विशेष अंतराष्ट्रीय अदालतों में सुनवाई भी हुई थीं। लेकिन वहां भी रेप के किसी आरोपी को सजा नहीं हो सकी। सजा तो बहुत दूर की बात, किसी भी कोने से स्टालिन के सैनिकों द्वारा सैकड़ों जर्मन महिलाओं से बलात्कार पर बात भी नहीं हुई। इस मसले पर उस समय भी खामोशी ओढ़ ली गई थी। स्पेन की महिलाओं से बलात्कार और उनके वक्ष काटने की दर्दनाक वारदात पर भी किसी तरह की बात ना होना अब भी मानवता के सामने एक बड़ा प्रश्न है। दरअसल तब युद्ध के दौरान बलात्कार को उस समय के राजनेता अपराध नहीं मानकर युद्ध का एक हिस्सा मानते थे।

1949 में जब जेनेवा कन्वेंशन हुआ तो उसकी धारा 27 में स्पष्ट रूप से यह उल्लेख किया गया कि युद्ध के दौरान महिलाओं की मर्यादा की विशेष रूप से रक्षा की जाएगी, बलात्कार नहीं होंगे और उन्हें वेश्यावृत्ति के लिए विवश नहीं किया जा सकेगा। इस समय से लेकर इस पर चर्चा तो होती रही, लेकिन किसी प्रकार से इसको रोका नहीं जा सका।

19 जून 2008 को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने एक निर्णय लिया, जिसके अनुसार बलात्कार और अन्य प्रकार की यौनिक हिंसा को युद्ध अपराध और मानवता के विरुद्ध अपराध माना जाएगा। इसके एक वर्ष बाद हिंसाग्रस्त क्षेत्र में यौनिक हिंसा को लेकर संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के प्रतिनिधि की नियुक्ति की गई। उसके बाद भी विश्व के कई देशों में हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में महिलाओं के विरुद्ध यौनिक अपराध में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं आई। बोस्निया से लेकर रवांडा और इराक से लेकर नाइजीरिया तक के हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में महिलाओं के विरुद्ध जिस तरह की वारदातें आतंकी संगठनों ने कीं, उन पर अंतराष्ट्रीय संगठनों का ध्यान तो गया, लेकिन उनको रोकने के लिए किसी प्रकार का कारगर कदम नहीं उठाया गया। अब भी यह कहा जाता है कि युद्ध के दौरान क्लाश्निकोव बंदूक से अधिक घातक बलात्कार होता है। बोको हरम से लेकर इस्लामिक स्टेट (आईएस) के आतंकी हिंसक वारदातों के दौरान महिलाओं को निशाना बनाते हैं। इस प्रकार की कई कहानियां कई स्थानों से सामने आई हैं, जिनमें आईएस के आतंकी किसी परिवार को बंधक बनाते हैं तो पहले उस परिवार के पुरुषों और महिलाओं को अलग करते हैं। पुरुषों को या तो मार डालते हैं या उनको छोड़कर महिलाओं को बंधक बनाकर अपने कैंप्स में ले आते हैं। वहां महिलाओं को यौन गुलामों की तरह से रखा जाता है और उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता है। कई बार तो आतंकी गुट बंधक बनाई गई महिलाओं को दूसरे आतंकी गुट को बेच भी देते हैं। बंधक बनाई गई महिलाओं को ऐसी जगहों में रखा जाता है जो नरक से भी खराब स्थिति में होते हैं। उनको भूखा रखा जाता है, पानी नहीं दिया जाता है, चारों ओर पसीने और मलमूत्र की दुर्गंध होती है। उन्हें नारकीय यातनाएं दी जाती हैं।

इजरायल में जिन यहूदी महिलाओं को हमास के आतंकवादियों ने बंधक बना लिया है, उनके साथ किस तरह का बर्ताव हो रहा होगा, यह तो उनमें से एक दो महिलाओं के उनके चंगुल से छूटने के बाद ही पता चल सकेगा। लेकिन इन आतंकवादी संगठनों का जो इतिहास रहा है, उसको देखते हुए इस बात की कल्पना की जा सकती है कि किस तरह की नारकीय यातना से इन इजरायली महिलाओं को गुजरना पड़ रहा होगा। इजरायल ने गाजा पट्टी पर हमला आरंभ कर दिया है। बहुत संभव है कि वो अपने क्षेत्र से आतंकवादियों का खात्मा भी कर देगा, लेकिन जो नारकीय यातनाएं बंधक बनाई गई यहूदी महिलाओं ने झेली है, न तो उसका बदला  लिया जा सकता है और ना ही उस दर्द और यातना को कम किया जा सकता है। आज पूरे विश्व को यह सोचना होगा कि जो आतंकवादी मानवता के दुश्मन हैं या जो संगठन हिंसा को हर समस्या का हल मानते हैं, उनको किस तरह से काबू में किया जाए। इतना ही आवश्यक है कि इन हिंसक वारदातों के दौरान अगर महिलाओं के विरुद्ध वारदातें सामने आती हैं तो उसके लिए भी असाधारण सजा का प्रावधान किया जाए। पूरी दुनिया को इस के लिए एकजुट होना होगा अन्यथा मानवता का यह कलंक कभी समाप्त नहीं हो पाएगा।

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