आसान नहीं है सत्य को पहचानना और पहुंचाना

नारद जयंती पर विशेष

जिस साहस और तर्क के साथ महर्षि नारद राक्षस, असुर, देव और मानव समूहों से संवाद करते थे और उन्हें लोक कल्याण के लिए प्रेरित करते थे, उसे आज के संदर्भ में अनुभव किया जाये तो वह सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता का प्रतिबिंब ही है।

– मुरारी गुप्ता

पिछले दिनों मुंबई से एक समाचार आया। उस समाचार ने पत्रकार जगत को सन्न कर दिया। मुंबई महानगरपालिका की ओर से चलाए गए एक हैल्थ ड्राइव में 53 से अधिक पत्रकारों की रिपोर्ट कोरोना पॉजीटिव आई। इससे मीडिया में घबराहट जरूर हुई, लेकिन इसके बावजूद अपना हौसला खोए बिना पत्रकार जगत के लोग, लोगों को कोरोना और दुनिया भर की गतिविधियों से लगातार अपडेट कर रहे हैं क्योंकि मीडिया किसी भी परिस्थिति में नागरिकों के त्रुटिरहित और तथ्यपरक समाचार को जानने और देखने के अधिकार को खत्म नहीं करना चाहता।

सनातन परंपरा में पत्रकारिता जैसे पवित्र कार्य के लिए हम महर्षि नारद का स्मरण करते हैं। महर्षि नारद संवादों के आदान-प्रदान के माध्यम से लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते थे। इसलिए उन्हें आदिकालीन संवाददाता भी कहा जाता है। जिस साहस और तर्क के साथ महर्षि नारद राक्षस, असुर, देव और मानव समूहों से संवाद करते थे और उन्हें लोक कल्याण के लिए प्रेरित करते थे, उसे आज के संदर्भ में अनुभव किया जाये तो वह सर्वश्रेष्ठ पत्रकारिता का प्रतिबिंब ही है। आज की परिस्थितियों में भी विश्व भर के पत्रकार अपनी जान हथेली पर रखकर दुनियाभर के नागरिकों को तथ्यपूर्ण और निष्पक्ष पत्रकारिता उपलब्ध करवा रहे हैं। इसका बड़ा नुकसान भी उन्हें साल दर साल उठाना पड़ा रहा है। तथापि विश्व पत्रकारिता आतंकवाद, चरमपंथ, सांप्रदायिकता जैसी आसुरी शक्तियों के सामने झुकी नहीं है।  रिपोटर्स विदाउट बॉर्डर की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल दुनिया भर में 49 पत्रकारों की मौत हुई। ये मौतें यमन, सीरिया और अफगानिस्तान जैसे आतंकवाद से ग्रस्त देशों में आपसी संघर्षों को कवर करते हुए हुई हैं। फ्रेंच इनिशियल आरएसएफ की रिपोर्ट के अनुसार पिछले सोलह वर्षों में हर साल औसतन 80 पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई है। आरएसएफ के अनुसार पिछले साल 389 पत्रकारों को जेल हुई। इनमें आधे से ज्यादा मामले चीन, मिश्र और सऊदी अरब से हैं। इऩमें भी एक तिहाई मामले चीन से हैं। चीन पर अक्सर पत्रकारिता को दबाने के आरोप लगते रहे हैं। हत्या और जेल के अलावा सीरिया, यमन, इराक और युक्रेन जैसे देशों में पत्रकारों के अपहरण की भी काफी घटनाएं सामने आई हैं।  मशहूर स्तंभकार जमाल खगोशी की संदेहास्पद मृत्यु ने तो सउदी अरब और अमरीका के संबंधों तक को प्रभावित किया था।

भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर का पत्रकार जगत नारद सूत्र- ‘तल्लक्षणानि वच्यन्ते नानामतभेदात’ अर्थात मतों में भिन्नता और अनेकता होती है- का पालन करते हुए पत्रकारिता कर रहा है। यह सही है कि मीडिया जगत को पत्रकारिता के इस मूलभूत तत्व की पालना के कारण कई बार जान-माल का नुकसान भी उठाना पड़ता है। देवर्षि नारद का कथन है कि किसी भी मत को मानने से पहले स्वयं उसकी अनुभूति करना आवश्यक है। इस अनुभूति के बाद ही विवेकानुसार निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। इस संबंध में राजस्थान से प्रकाशित समाचार पत्रों की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने लोक कल्याण के अनेक मामलों में किसी भी तरह के राजनैतिक भय से परे, हमेशा लोक कल्याण की दिशा में कलम को स्वीकृति दी है। कोरोना काल में यदि हम विभिन्न समाचार पत्रों के संपादकीयों का तुलनात्मक विश्लेषण करें, तो पाएंगे कि उनमें कोरोना वायरस से निपटने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से उठाए विभिन्न कदमों की सकारात्मक समालोचना की गई है। निश्चित रूप से यह भी पत्रों की जिम्मेदारी है कि वे लोक कल्याण के लिए की गई सरकार और प्रशासन की पहल का स्वागत करें, लेकिन साथ ही लोगों के सामने आ रही समस्याओं को उनके संभावित समाधानों के साथ सरकार और प्रशासन के सामने रखें।

नारद सूत्र का यह महत्वपूर्ण सूत्र – ‘दु:संङ्ग: सर्वथैव त्याज्य’ पत्रकारिता के लिए मार्गदर्शक बन सकता है। अर्थात नकारात्मकता को नकारना। हालांकि नकारात्मक पत्रकारिता को अनेक विद्वानों ने नकारा है। नारद ने इस श्लोक में कहा कि हर हाल में बुराई त्याग करने योग्य है। उसका प्रचार-प्रसार नहीं होना चाहिए। नकारात्मक पत्रकारिता की भूमिका को समाज में विष की तरह माना गया है। फिर भी पत्रकारिता के इस स्वरूप पर समय समय पर विस्तार से विमर्श होता रहा है।

आधुनिक पत्रकारिता के साथ एक नया शब्द जुड़ा है-ब्रेक्रिंग न्यूज। यह जानना दिलचस्प होगा कि कैसे महर्षि नारद ने बहुत सी ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में सबसे पहले जानकारी दी थी। जिसे आज के शब्दों में ब्रेकिंग कहा जाता है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन में विष निकलने की सूचना सबसे पहले महर्षि नारद ने मंथन में लगे पक्षों को दिया परंतु सूचना पर ध्यान नहीं देने से विष फैला। सती द्वारा ‘दक्ष’ के यज्ञ कुंड में शरीर त्यागने की सूचना भी सबसे पहले नारद ने भगवान शिव को दी। महाभारत के समरकाल में तीर्थयात्रा पर गए बलराम को भी महाभारत के युद्ध समाप्त होने की जानकारी नारद ने दी थी।

और आखिर में, पत्रकार सिर्फ संवाद वाहक ही नहीं होता है, वह लोगों को प्रेरणा भी देता है। अखबारों में प्रति दिन बहुत से समाचार या आलेख ऐसे होते हैं, जिनसे लोगों का पूरा जीवन बदल जाता है। महर्षि नारद इसकी पराकाष्ठा थे। उन्होंने भक्त ध्रुव और प्रह्लाद को भक्ति की प्रेरणा दी। वेदव्यास को श्रीमद्भागवत के लेखन की प्रेरणा देकर इस युग को ईश्वरीय भक्ति का ग्रंथ उपलब्ध करवाया। उन्होंने नारद पुराण में भारत के प्राचीन तीर्थस्थलों का भी ऐतिहासिक वर्णन किया है।

देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं और समाज के सभी वर्गो में उनका सदा से एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इसलिए श्रीमद्भगवतगीता के दशम अध्याय के छब्बीसवें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है – देवर्षीणाम् च नारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं।

(लेखक भारतीय सूचना सेवा में कार्यरत हैं)

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