आहत देश सहमता जीवन (कविता)
श्रुति
आहत देश सहमता जीवन
व्यापक हुई यहां महामारी
याद आ गई हैं मुझको तो
भूली बिसरी गलियां सारी
कलम स्वतः ही चल पड़ती है
जब बचपन की यादें आतीं
ध्यान धरूं जब उन घरुओं का
अगणित बातें सिखला जातीं
आत्म निरीक्षण के अद्भुत पल
कैसे आज यहां जुट आए
प्रकृति खिली हुई लगती है
हमको अब अनुशासन भाए
लड़ें कोरोना से मिलकर सब
हम शक्ति की अलख जगाएं
महाकाल शरणागत तेरी
भारत का जन जन घबराए
हम सब परिवर्तन के पथ पर
चलें आज मिल शांति दूत बन
अभिनव भारत के प्रांगण में
खिलें पुष्प कर दें स्वः अर्पण।