पूरे देश में महक रहा उदयपुर का हर्बल गुलाल
इस बार कोरोना के चलते पूरे देश में हर्बल रंगों व गुलाल की मांग बढ़ी है। जिसकी आपूर्ति में उदयपुर अंचल की महत्वपूर्ण भूमिका है। यहॉं बना हर्बल गुलाल राजस्थान ही नहीं दूसरे प्रदेशों में भी अपनी सुगंध बिखेर रहा है।
उदयपुर जिले के चौकड़िया, झिंडोली, बांसी, भींडर के सेमलिया, कानोड़, कोडि़यात, जोरमा, सायरा, गोगुंदा, सूरजगढ़, ग्वालियाबेरी, डांग, मेरपुर, देवला, कूकावास, मावली की मानसिंह जी की बावड़ी आदि स्थान हर्बल गुलाल के उत्पादन के केंद्र बनकर उभरे हैं। यहॉं वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति तथा स्वयं सहायता समूहों ने मांग के अनुसार बड़े पैमाने पर हर्बल गुलाल तैयार किया है। इनके अलावा उदयपुर संभाग (मेवाड़) के दूसरे जिलों में भी एक दर्जन से अधिक समितियां हर्बल गुलाल हर साल तैयार करती हैं। इस वर्ष हिंदुस्तान जिंक ने नवाचार करते हुए सीएसआर अर्थात सामाजिक उत्तरदायित्व के अंतर्गत मंजरी फाउंडेशन द्वारा संचालित सखी परियोजना में हर्बल गुलाल प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। इससे न सिर्फ महिलाओं को स्वावलम्बी बनने में सहायता मिली है बल्कि वोकल फॉर लोकल अभियान को भी बढ़ावा मिला है। हिंदुस्तान जिंक के सहयोग से फाउंडेशन ने प्रदेश के अन्य जिलों – उदयपुर, भीलवाड़ा, राजसमंद और अजमेर में भी प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित की हैं।
उदयपुर संभाग में हर्बल गुलाल बनाने का काम बरसों से चल रहा है। यहॉं की कोटड़ा, झाड़ोल, कानोड़ तहसील में सक्रिय राजीविका महिला सर्वांगीण सहकारी समिति कई वर्षों से हर्बल गुलाल का उत्पादन कर रही है। समिति से जुड़ी मंजू ने बताया कि इस वर्ष मिले ऑर्डर की आपूर्ति के लिए स्वयं सहायता समूह की साठ महिलाएं पिछले दो माह से हर्बल गुलाल बना रही हैं। इस गुलाल को समिति द्वारा बाजार में दो सौ रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है। पिछले वर्ष 20 क्विंटल हर्बल गुलाल बेची गई थी लेकिन इस बार अलग-अलग जगहों पर कुल मिलाकर 70 क्विंटल हर्बल गुलाल की ब्रिकी हुई है, जिससे अब तक 14 लाख रुपये से अधिक की आय हुई है। इस आय को सभी महिलाओं में बराबर वितरित किया जाएगा। यहॉं बनने वाले गुलाल की आपूर्ति राजस्थान के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, कोलकाता, बिहार, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में भी की गई है।
उदयपुर में वन विभाग पचास और सौ रुपये की दो पैकिंग में हर्बल गुलाल बेच रहा है। रंग विक्रेताओं का कहना है कि कोरोना इम्पैक्ट के चलते कॉरपोरेट तथा विभिन्न संस्थाओं और संगठनों ने होली कार्यक्रम स्थगित कर दिए हैं, लेकिन मेवाड़ में बने हर्बल गुलाल पर इसका कोई असर नहीं है। यह गुलाल पूर्व में मिले आर्डरों के चलते पहले ही बिक चुका है।
कैसे बनता है हर्बल गुलाल?
विभिन्न सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं पहले जंगलों, मंदिरों आदि से फूल इकट्ठे करती हैं फिर उन्हें उबालकर उनका रस निकालती हैं। इस रस को ठंडा होने पर अरारोट में मिलाकर धूप में सुखाया जाता है। सूखने के बाद मशीन में डालकर महीन पाउडर बना लिया जाता है। इस पाउडर में इत्र डालकर उसे सुगंधित बनाया जाता है और छोटी छोटी पैकिंग बनाकर बाजार में बिकने के लिए भेज दिया जाता है। हर्बल गुलाल के लिए गुलाब, गेंदा, पलाश, हरसिंगार तथा जाखरड़ा के फूल काम में लिए जाते हैं। गुलाब से गुलाबी, पेड़ों की पत्तियों से हरा, गेंदे के फूल से पीला, पलाश व हरसिंगार से नारंगी तथा जाखरड़ा से बैंगनी रंग का गुलाल तैयार होता है। किसी भी प्रकार के केमिकल का प्रयोग न होने के कारण यह पूर्णतया प्राकृतिक होने के साथ-साथ इको फ्रेंडली भी होता है। यह त्वचा को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाता।