राजस्थान में सप्ताहांत कर्फ्यू हटाना महज संयोग या उर्स के लिए मुस्लिम तुष्टीकरण
उर्स के लिए मुस्लिम तुष्टीकरण, हटाया सप्ताहांत कर्फ्यू, उमड़ी भीड़
कोविड का प्रकोप अभी थमा नहीं है। लेकिन अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह के 810 वें उर्स के दौरान राज्य सरकार द्वारा आनन-फानन में रविवारीय कर्फ्यू हटा दिया गया, जिससे दरगाह पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी। अभी कोरोना की तीसरी लहर अपने चरम पर है, ऐसे में संक्रमण के तेजी से फैलने की आशंका बढ़ गई है। यद्यपि दरगाह कमेटी द्वारा कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए उर्स आयोजन की बात कही गई थी, किंतु शनिवार को उर्स का झंडा चढ़ाते समय तथा रविवार को उमड़ी हजारों की भीड़ ने मेडिकल विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है।
उर्स का झंडा चढ़ाने के दौरान भीड़, ड्रोन से लिया गया चित्र, साभार भास्कर
पूरे विश्व में कोरोना के नए वेरिएंट्स मिलने तथा उनसे संक्रमित होने की घटनाएं अभी रुकी नहीं हैं। ओमिक्रॉन व अन्य वेरिएंट्स की संक्रामकता के विषय में अभी कुछ भी सुनिश्चित नहीं है। ऐसे में राज्य सरकार द्वारा मुसलमानों की नाराजगी के भय से उर्स में ढिलाई बरतना आश्चर्यजनक है। यही राज्य सरकार कोरोना के नाम पर हिंदू मंदिरों के पट तुरंत बंद करवा देती है।
पिछले दिनों कोरोना संक्रमण के भय को देखते हुए प्रदेश के कई मंदिरों को दर्शनार्थियों के लिए बंद कर दिया गया था। मेहंदीपुर बालाजी के पट बंद थे तथा खाटूश्याम जी में कर्फ्यू लगा दिया गया था जो कि जन स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित भी कहा जा सकता था। आज, 31 जनवरी से ही मेहंदीपुर बालाजी में कोविड प्रोटोकॉल का पूर्ण पालन करते हुए श्रद्धालुओं को दर्शनों की अनुमति दी गई है। ऐसे में अजमेर दरगाह पर भी समान प्रतिबंध होने चाहिए थे। क्या राज्य सरकार यह मानती है कि कोरोना वायरस पंथ/समुदाय देखकर आक्रमण करता है? अथवा वह मुस्लिम समुदाय की इच्छाओं या जिद को शेष जनता के स्वास्थ्य से ऊपर रखती है? इस पर विचार आवश्यक है।