कतारें

गुटखा खाकर इधर-उधर थूकने पर जुर्माना भले ही हो, परंतु अगर गुटखा बिकेगा तो गुटखा खाने वाले इधर-उधर पिचकारी जरूर मारेंगे और कोरोना संक्रमण का खतरा पैदा करेंगे। क्या बेहतर नहीं होता कि सरकारें शराब, गुटखा, बीड़ी पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा देतीं।

शुभम वैष्णव

आजकल लगी लंबी-लंबी कतारें देख कर आप सोचेंगे शायद ये कतारें और इन कतारों में लगे लोग राशन खरीदने के लिए खड़े हैं। परंतु वास्तविकता यह है कि ये सब महानुभाव बिना मास्क लगाए और सामाजिक दूरी की शर्त का त्याग करते हुए सिर्फ और सिर्फ शराब और गुटखा खरीदने के लिए खड़े हैं। इनके लिए शराब और गुटखा जीवन से भी बढ़कर है। तभी तो ये कोरोना संक्रमण काल में भी भीड़ के रूप में इकट्ठा होकर इन्हें पाने की आस मे खड़े हैं। इनको कोरोना से डर नहीं लगता, परंतु ना मिले तो बेचैन जरूर हो जाते हैं। सोचने की बात है क्या शराब और गुटखा जीवन से बढ़कर हैं? कम से कम इन लंबी-लंबी कतारों को देखकर तो ऐसा ही लगता है।

गुटखा खाकर इधर-उधर थूकने पर जुर्माना भले ही हो, परंतु अगर गुटखा बिकेगा तो गुटखा खाने वाले इधर-उधर पिचकारी जरूर मारेंगे और कोरोना संक्रमण का खतरा पैदा करेंगे। क्या बेहतर नहीं होता कि सरकारें शराब, गुटखा, बीड़ी पर पूर्णत: प्रतिबंध लगा देतीं। परंतु राजस्व के मोह के आगे सरकार की मति भ्रमित हो जाती है और भ्रमित मति का कोई इलाज नहीं है।

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