सामाजिक समरसता का प्रतीक करौली मेला

सामाजिक समरसता का प्रतीक करौली मेला

तृप्ति शर्मा

सामाजिक समरसता का प्रतीक करौली मेलासामाजिक समरसता का प्रतीक करौली मेला

राजस्थान का करौली जिला अपने ऐतिहासिक धार्मिक और पर्यटन महत्व के कारण पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है। सबसे अधिक तो करौली उस वार्षिक मेले के लिए प्रसिद्ध है, जिसकी प्रतीक्षा पूरा हिन्दू समाज वर्षभर करता है। करौली जिले के चांदन गांव में भगवान महावीर की जयंती के अवसर पर लगने वाला यह मेला चैत्र शुक्ल तेरस से वैशाख कृष्ण द्वितीया तक चलता है। आमतौर पर यह महावीर जयंती के दो दिन पूर्व शुरू होकर दो दिन बाद समाप्त हो जाता है। इस वर्ष यह 18 अप्रैल से शुरू हो चुका है और 25 अप्रैल तक चलेगा। इस मेले में देश भर से लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसलिए इसे लक्खी मेला भी कहा जाता है। करौली मेले में आयोजित पर्व जैन समाज के साथ ही मीणा और गुर्जर समाज सहित कई अन्य हिन्दू समुदायों में भी बड़े उत्साह से मनाए जाते हैं। यह मेला हमारी सामाजिक समरसता व सौहार्द का द्योतक है। करौली जैन धर्म की आस्था का केंद्र होने के साथ ही गुर्जर व मीणा समाज का भी आराध्य स्थल है। यह राजस्थान का एक ऐसा मेला है, जिसमें मीणा, गुर्जर, जैन समाज एवं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूरा हिन्दू समाज सामाजिक सौहार्द व समरसता का अनूठा वातावरण प्रस्तुत करता है। मेले का मुख्य आकर्षण भगवान महावीर की रथ यात्रा होती है, जिसमें मीणा और गुर्जर समाज की नृत्य टोलियां मुख्य रूप से शामिल होती हैं। भगवान के रथ का संचालन हिंडोन सिटी के उपखंड अधिकारी द्वारा किया जाता है। रथ यात्रा के दौरान मीणा समाज के लोग भक्ति भाव से नाचते झूमते भगवान की प्रतिमा को नदी तट तक लेकर जाते हैं, और गुर्जर समाज के लोग श्रद्धा पूर्वक रथ यात्रा वापस लेकर आते हैं। वास्तव में जैन धर्म की आत्मा में सनातन धर्म की ही मूल धारा बहती है। करौली मेला सामाजिक समरसता का जो उदाहरण प्रस्तुत करता है, वह सनातन धर्म का मूल मंत्र -वसुधैव कुटुंबकम की विचारधारा को ही चरितार्थ कर रहा है। जिसको भगवान महावीर ने अपनी शिक्षाओं से पुष्पित पल्लवित कर एक स्वस्थ समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। जैन धर्म के दो मूल मंत्र -अहिंसा परमो धर्म:, जियो और जीने दो, सनातन धर्म की पृष्ठभूमि में ही संभव हो सके हैं। महावीर स्वामी द्वारा अहिंसा, करुणा और आत्म अनुशासन से मोक्ष प्राप्त करने का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है, जो एक स्वस्थ समाज और स्वस्थ शरीर के लिए हमेशा प्रासंगिक है।
हमारे ऋषि मुनियों व जैन समाज के सभी 24 तीर्थंकरों के चिंतन की मुख्य धारा एक ही है। उसे जीवन में अंगीकार करने के नियम भले कुछ भिन्न हों। सनातन धर्म का प्रमुख स्तंभ- गो सेवा के सर्वाधिक काम जैन समाज द्वारा किए जाते हैं। देश भर में चलने वाली लगभग 16000 गोशालाओं में से 12000 गोशालाएं जैन समाज द्वारा चलाई जाती हैं। जैन समाज के अधिकतर लोग व्यापारी वर्ग में आते हैं। ये सभी दीपावली पर लक्ष्मी पूजन करते हैं तथा अपने गल्ले पर स्वास्तिक चिन्ह के साथ लक्ष्मी गणेश का चित्र रखते हैं। वहीं हिन्दू समाज भी निःसंकोच जैन पूजा अर्चना में हृदय से सम्मिलित होता है। परस्पर सम्मान की यह भावना करौली मेले में स्पष्ट परिलक्षित होती है।

अभी हाल ही में लम्बे संघर्ष के बाद रामलला अयोध्या में अपने महल में प्रतिष्ठित हुए हैं। इसके कानूनी पक्ष को अधिवक्ता हरिशंकर जैन व विष्णु जैन (पिता पुत्र) ने बखूबी सम्भाला था। अधिवक्ता विष्णु जैन ने एक टीवी डिबेट में- “जैन होने पर श्रीराम से कैसी आस्था” के प्रश्न का कड़क उत्तर देते हुए कहा था कि जैन धर्म हिन्दू धर्म से भिन्न नहीं है। सामाजिक धरातल पर भारतीयों के ऐसे सुविचार ही करौली मेले में प्रत्यक्ष होते हैं। ‘एक आचार एक विचार’ के कारण ही करौली मेला हमारी सामाजिक समरसता और एकता में अनेकता का प्रतीक है। हमारा यह परस्पर सौहार्द और सम्मान ही सनातन संस्कृति का गौरव है।

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