कलासाधक संगम: सामाजिक समरसता निर्माण में कला और साहित्य की भूमिका पर संगोष्ठी

कलासाधक संगम: सामाजिक समरसता निर्माण में कला और साहित्य की भूमिका पर संगोष्ठी

कलासाधक संगम: सामाजिक समरसता निर्माण में कला और साहित्य की भूमिका पर संगोष्ठीकलासाधक संगम:  सामाजिक समरसता निर्माण में कला और साहित्य की भूमिका पर संगोष्ठी

बैंगलुरु। संस्कार भारती अखिल भारतीय कलासाधक संगम के दूसरे दिन सामाजिक समरसता निर्माण में कला और साहित्य की भूमिका विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें लोक कलाकार पद्मश्री मालिनी अवस्थी, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रचारक एवं सामाजिक समरसता गतिविधि संयोजक रविंद्र किरकोले, डॉ. इंदुशेखर तत्पुरुष (पूर्व ललित कला अध्यक्ष जयपुर), असम से लोक कला के प्रसिद्ध शोधार्थी अनिल सेकिया एवं दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ. अदिति पासवान ने प्रतिभाग किया।

रविंद्र किरकोले ने कला और समाज पर बात करते हुए कहा कि कलाओं के कारण ही आज हजारों वर्ष बाद भी भगवान राम का नाम प्रासंगिक और प्रभावशाली है। हम देखते हैं कि महाभारत की प्रस्तुति, आज भी हमारे कई प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम है। सामाजिक समरसता में हमें सदैव समान अवसर, समान योगदान, समान व्यवहार पर बात करनी चाहिए। हम जिस संस्कृति पर गर्व करते हैं, उसके निर्माण, संवर्धन और रक्षा में हर वर्ग का योगदान है।

असम के अनिल सेकिया ने पूर्वोत्तर भारत की विविधता में कला की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बात करते हुए, इसे बंधुत्व भाव का सबसे मजबूत स्तंभ बताया। कला जगत में मिथिला संस्कृति के योगदान को लेकर बात करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अदिति नारायण पासवान ने एक प्रेजेंटेशन के माध्यम से कार्यक्रम में आए कलासाधकों को मिथिला संस्कृति और उसमें विभिन्न जातियों व वर्गों की भूमिका के बारे में बताया।

डॉ. इंदुशेखर ने सामाजिक समरसता के विषय पर बात करते हुए रामायण और रामचरित मानस को कला जगत का सबसे उत्तम उदाहरण बताया। उन्होंने भगवान राम को सामाजिक समरसता के सबसे बड़े आदर्श के रूप में खड़े नायक की संज्ञा दी।

अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने वर्तमान वातावरण पर बात करते हुए भगवान राम को भारत की आत्मा बताया। उन्होंने कहा कि समरसता हमारी संस्कृति का मूल स्वभाव है, जहां विविधता हमारी समृद्ध विरासत की पहचान है। कला ने जितना लोगों को जोड़ने का काम किया है, उतना कार्य किसी अन्य माध्यम के द्वारा संभव नहीं है। भारत का आदर्श समाज सदैव एकता और समरसता की बात करता है।

साथ ही हिन्दव: सहोदरा, समरसता संत वाणी, संत समरसता वचनों की संगीतमय प्रस्तुति, लोककला, पोवाड़ा, गोंधळ, रासडो प्रस्तुति, बाल शिवाजी समरस भाव नाटक एवं  प्रदर्शनियों सहित समरसता पर कवि सम्मेलन मुख्य आकर्षण रहे।

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