काबा में घी से प्रज्ज्वलित अखण्ड दीपक का अर्थ है?
प्रागैस्लामी अरब में हिंदू-संस्कृति- (भाग-7)
गुंजन अग्रवाल
काबा की घनाकार इमारत के चार कोने कुतुबनुमा, पर चार प्रधान दिशा-बिन्दु को प्रदर्शित करते हैं। (1) काबा के चारों कोनों का भी इस्लामी नामकरण किया गया है। इसके पूर्वी कोने को ‘रुक़्न-उल्-अस्वद’ (Rukn-ul-Aswad) अथवा ‘काला कोना’ (Black Corner) कहा जाता है। उत्तरी कोने को ‘रुक़्न-उल्-इराक़ी’ (Rukn-ul-Iraqi) अथवा ‘इराक़ी कोना’ (Iraqi Corner) कहा जाता है। पश्चिमी कोने को ‘रुक़्न-उश्-शमी’ (Rukn-ush-Shami) अथवा ‘लिवैन्टाइन कोना’ (Levantine Corner) कहा जाता है। दक्षिणी कोने को ‘रुक़्न-उल्-यमानी’ (Rukn-ul-Yamani) अथवा ‘येमेनी कोना’ (Yemeni Corner) कहा जाता है। (2,3)
काबा का ठोस सोने से निर्मित 7 फीट ऊँचा प्रवेशद्वार इसकी उत्तर-पूर्वी दीवार में सतह से 7 फीट ऊपर स्थित है। काबा के भीतर एक ही कक्ष है। साधारणतः कक्ष में जाना प्रतिबन्धित है। कक्ष के भीतरी भाग का चित्र नहीं लिया जा सकता, किन्तु बाहरी हिस्से का लिया जा सकता है। प्रवेशद्वार पर सदैव स्वर्ण-ताला जड़ा रहता है। कक्ष को वर्ष में दो ही बार सफ़ाई हेतु खोला जाता है। कक्ष की स्वर्ण-कुंजी परम्परगत रूप से ‘बानी शैबात’ वंश के पास रहती है। काबा के ‘स्वच्छता-समारोह’ के समय इसी वंश के सदस्य काबा के भीतर जाकर ‘आब-ए-ज़मज़म’ (ज़मज़म के जल) और फ़ारसी-गुलाबजल से इसकी सफ़ाई करते हैं। इस मौके पर कुछ अतिविशिष्ट लोगों को काबा के भीतर जाने के लिए आमन्त्रित किया जाता है।
कक्ष में जाने के लिए लकड़ी की सीढ़ियाँ बनी हैं। कक्ष की दीवारें और फ़र्श संगमरमर से निर्मित हैं। भीतरी छत पर सोने और चाँदी के झाड़फ़ानूस लटके हुए हैं। छत को सँभालने के लिए कक्ष में समानान्तर दूरी पर 3 काष्ठ-स्तम्भ गड़े हुए हैं। खिड़की एक भी नहीं है। कक्ष में लगभग पचास लोगों के बैठने लायक जगह है। कक्ष के उत्तरी कोने में एक टेबुल पर इत्र की बोतलें इत्यादि रखी हैं। कक्ष की दीवारों पर क़ुरान की आयतोंवाले आठ-दस अभिलेख लगा दिए गए हैं।
अग्नि या तेज के प्रतीक रूप में आज भी काबा में घी से प्रज्ज्वलित अखण्ड दीपक जलता रहता है। इससे निकलनेवाली ज्योति इस्लाम-मतावलम्बियों के लिए अत्यन्त पाक मानी जाती है। उसके सम्मुख लाल या सफ़ेद रंग के फूल श्रद्धापूर्वक चढ़ाए जाते हैं। इस ज्योति को ‘चिराग’ कहते हैं। इस फ़ारसी-शब्द का उद्गम संस्कृत के दो शब्दों से है— चिरन्तन अग्नि = चिर + अग्नि (आग) त्र = चिराग। चिराग का अर्थ है शाश्वत, निरन्तर, सतत जलनेवाली अग्नि। अन्य मस्ज़िदों तथा दरग़ाहों जैसे पवित्र स्थानों पर भी इस चिरन्तन अग्न का प्रतीक चिराग जला करता है। किसी भी पीर के उर्स में एक दिन ‘चिराग’ का दिन रहता है। (4)
काबा के संबंध में एक प्रारम्भिक इस्लामी मान्यता है कि ‘काबा की दीवारों के भीतर ख़ज़ाना गड़ा है, जिसकी रक्षा एक नाग करता है’। यह मान्यता भी काबा के हिंदू-मूल की ओर इशारा करती है। भगवान् शंकर से नागों का संबंध तो सुप्रसिद्ध है। शिव-मन्दिरों में प्रायः नागदेवता दिख जाते हैं। स्पष्ट है कि काबा भी एक समय में शिव-मन्दिर रहा है, तभी वहाँ नागों का आना-जाना लगा रहा है। इसके बाद मुसलमानों को अब और किस प्रमाण की आवश्यकता है?
काबा की छत पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हैं। मार्ग में केवल 2.2 मीटर ऊँचा सुरंगनुमा एक भूतल और है, जिसपर घुटने के बल ही चला जा सकता है। काबा की छत दुहरी है। यह सागवान से निर्मित है जो स्टेनलेस स्टील से ढकी हुई है।
शैवागम और वैदिक वास्तुशास्त्र के ग्रन्थों के अनुसार शिव-मन्दिर (शिवलिंग सहित) का मुख उत्तर की ओर होना चाहिए। मन्दिर का प्रवेश-द्वार भी पूर्व या उत्तर-पूर्व की ओर होना चाहिए। प्रार्थना-कक्ष भी प्रार्थना-भवन के उत्तर-पूर्व की ओर होना चाहिए और कक्ष में स्थापित मूर्ति का मुख उत्तर की ओर होना चाहिए। भवन का प्रवेश-द्वार उत्तर या उत्तर-पूर्व की ओर होना चाहिए। दुनिया के किसी भी हिंदू-मन्दिर एवं प्रार्थना-भवन में इस विशेषता को देखा जा सकता है। इस तथ्य के आलोक में ‘इस्लामी इमारत’ कही जानेवाली ‘काबा’ का अवलोकन करना उचित होगा।
काबा अपने प्रवेशद्वार को छोड़कर एक अत्यन्त मूल्यवान काले सिल्वर डाईड कपड़े से ढका हुआ है, जिसे ‘किस्वत’ (Kiswah) कहा जाता है। इसका कुल क्षेत्रफल 658 वर्गमीटर है। इस पर्दे को प्रत्येक वर्ष नया बनवाकर हज के समय बदल दिया जाता है। मक्के की एक विशेष फ़ैक़्ट्री ही इसको डिज़ाइन करती है और बनाती है। इसका कुल वज़न 670 किग्रा. होता है। कपड़े पर कुरआन की आयतें लिखी होती हैं, जिन्हें लिखने में 120 किग्रा. शुद्ध सोने और 50 किग्रा. शुद्ध चाँदी का इस्तेमाल होता है। इतना तामझाम केवल एक हड़पे हुए शिव-मन्दिर को ढंकने के लिए किया गया है।
सऊदी अरबी-मुद्रा को ‘रियाल’ कहा जाता है। वैदिक-प्रथा में राजा को ‘राया’ भी कहा जाता है। रायगढ़, रायपुर, रायसेन, रायरत्न आदि शब्द इसके साक्षी हैं। अतः ‘रायल’ उर्फ़ ‘रियाल’ यह राया की (मुद्रा)— इस अर्थ में रूढ़ है। यह एक बड़ा प्रमाण है कि सऊदी अरब में प्रागैस्लामी शासक संस्कृतभाषी वैदिक-क्षत्रिय थे। (5) 500 मूल्यवाली सऊदी रियाल पर काबा-मन्दिर का चित्र अंकित है। सन् 1986 से 2000 मूल्यवाली ईरानी-रियाल पर भी काबा-मन्दिर का चित्र प्रकाशित हो रहा है। सन् 2005 में ईरान-सरकार ने पुनः 2000 मूल्यवाली ईरानी-रियाल पर काबा-मन्दिर का चित्र अंकित किया है, जिसकी एक तरफ ईरान के मज़हबी नेता और राजनीतिज्ञ अयातुल्लाह सय्यद रुहोल्लाह ख़ुमैनी (Grand Ayatollah Sayyed Ruhollah Mousavi Khomeini : 1902-1989) का चित्र है और दूसरी ओर काबा-मन्दिर का।
इसी प्रकार सन् 1979 ई. में इराक़ की इस्लामी सरकार ने वसन्तोत्सव पर 3 डाक-टिकट प्रकाशित करवाये, जिनपर भगवान् श्रीकृष्ण का चित्र था। (6) इराक़-जैसे इस्लामी देश में डाक-टिकटों पर किसी का चित्र छापना आश्चर्यजनक घटना है, क्योंकि कुरआन में किसी जीवित प्राणी के चित्रण का निषेध किया गया है। और-तो-और, वह चेहरा मुरलीधर श्रीकृष्ण का होना तो और भी विचित्र बात है। इराक़ी-मुसलमान भी बेचारे क्या करें, जब उनकी इस्लाम-पूर्व परम्परा में श्रीकृष्ण की गहरी स्मृति दृढ़मूल रही है। (7)
इस्लामी-किंवदन्तियों के अनुसार काबा का 9 से लेकर 12 बार तक पुनर्निर्माण हुआ है। इनके अनुसार काबा का सर्वप्रथम निर्माण पैगंबर आदम (Prophet Adam) ने किया था। कुरआन के अनुसार अल्लाह के आदेश से पैग़ंबर अब्राहम (Prophet Abraham, Theological figure : traditionally 2000-1825 BC ) (8) ने अपने ज्येष्ठ पुत्र इश्माइल (Prophet Ishmael : traditionally 1914-1777 BC ) (9)की सहायता से काबा का पुनर्निर्माण किया था। (10) सेमेटिक-मान्यतानुसार अब्राहम का मूल नाम ‘अब्राम’ (Abram or A- Brahm) था और वे नूह (Noah) से 10वीं तथा आदम से 20वीं पीढ़ी में हुए थे।
तीसरी बार (?) मुहम्मद साहब ने पैग़ंबर होने से पूर्व काबा का पुनर्निर्माण करवाया था। एक समय मक्का में विनाशकारी बाढ़ आने पर काबा को काफ़ी क्षति पहुँची और इसके जीर्णोद्धार की आवश्यकता महसूस हुई । इस कार्य को कुरैशियों के चार कुलों ने अपने हाथों में लिया। मुहम्मद साहब ने जीर्णोद्धार में सहायता की थी।
सन् 683 से 692 ई. तक मक्का पर शासन करनेवाले अब्दुल्लाह इब्न-अल्-जुबैर (Abd Allah al-Zubayr or Ibn Zubayr or Abdullah ibn az-Zubayr : 624-692) ने चतुर्थ बार (?) काबा का जीर्णोद्धार करवाया। उसने काबा की छत को सँभालने के लिए कक्ष में 3काष्ठ-स्तम्भ लगवाए। उस समय उसने काबा में दो दरवाजे लगवाए थे, जिसमें एक का मुँह पूर्व की ओर और दूसरे का पश्चिम की ओर था। कक्ष में रोशनदान की भी व्यवस्था की गई थी।
यह निर्माण सन् 683 ई. में जुबैर और अरबी-प्रशासक व राजनीतिज्ञ अल्-हज़्ज़ाज़-इब्न-यूसुफ़ (Al-Hajjaj ibn Yusuf : 661-714) के नेतृत्ववाली उमैय्या सेना के मध्य हुए युद्ध में अग्निकाण्ड का शिकार हो गया। बाद में 5वें उम्मैय्या ख़लीफ़ा अब्द अल्-मलिक इब्न् मारवान (Abd al-Malik ibn Marwan : 646-705) ने युद्ध की समाप्ति की और सन् 693 ई. में क्षतिग्रस्त काबा को तुड़वाकर उसकी जगह नयी इमारत का निर्माण करवाया और काबा को किस्वत् से ढकने की परम्परा की शुरूआत की।
(लेखक महामना मालवीय मिशन, नई दिल्ली में शोध-सहायक हैं तथा हिंदी त्रेमासिक ‘सभ्यता संवाद’ के कार्यकारी सम्पादक हैं)
संदर्भ सामग्रीः
- Encyclopædia of Islam, Vol. IV, p.317
- Ibid, Vol. IV, p.317
- Encyclopædia of Quran, by G.R. Hawting, p.76
- अग्निहोत्र : अग्निहोत्र-संबंधी सारगर्भित निबन्ध, देवराज विद्यावाचस्पति, आर्यसमाज, गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, प्रकाशन मन्दिर, 1950, पृ. 40
- वैदिक-विश्व-राष्ट्र-का इतिहास, खण्ड 2, पृ. 162
- वही, खण्ड 2, पृ. 287-288, 297, 372
- वही, खण्ड 2, पृ. 288-289; 297-298
- Genesis of Hebrew Bible, 25:7
- Ibid, 25:17; The Catholic encyclopedia: an international work of reference on the constitution, doctrine, discipline, and history of the Catholic church, Edited by Charles George Herbermann, Edward Aloysius Pace, Condé Bénoist Pallen, Thomas Joseph Shahan, John Joseph Wynne, Published by Robert Appleton The Catholic Encyclopedia Inc., 1922, New York
- कुरआन मज़ीद, सूरा 2, आयत 125; सूरा 2, आयत 127; सूरा 22, आयत 26.