कोरोना संकट और भारत का विश्व बंधुत्व का संदेश

चीनी वायरस कोरोना की व्यापक महामारी ने संपूर्ण विश्व के समस्त विकसित राष्ट्रों को उद्वेलित कर दिया, वहीं विकासशील, अविकसित और अल्प विकसित राष्ट्रों के संदर्भ में यह महामारी सामाजिक, आर्थिक एवं भावनात्मक पतन स्वरूप एक राष्ट्रीय आपदा के रूप में सिद्ध हुई है। ऐसे में वसुधैव कुटुंबकम के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को प्रगाढ़ करने वाले सिद्धांत को पुनर्जीवित करना विश्व के प्रत्येक राष्ट्र की जिम्मेदारी बन गई है।

भारत दक्षिण एशियाई राष्ट्रों के सार्क समूह में सदैव ही बड़े भाई की भूमिका निभाता रहा है। वर्तमान में संपूर्ण मानवता पर जीवन संकट के रूप में आई इस आपदा के समय भी भारत ने अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में उत्तरदायित्व निर्वहन की गरिमा को पूर्णत: निभाया है। समस्त विश्व को उद्वेलित कर देने वाली इस महामारी के समय प्रत्येक राष्ट्र में पारस्परिक सौहार्द तथा भावनात्मक विश्वास बनाए रखना एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया, जिसे सभी राष्ट्रों को आर्थिक संकटग्रस्त राष्ट्रों की सहायता हेतु आगे आना अति आवश्यक है। भारत ने सार्क राष्ट्रों के समक्ष अपनी चिर परिचित भूमिका का निर्वहन करते हुए इन राष्ट्रों को व्यापक आर्थिक और सामाजिक संकट से उबारने के लिए दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चीन के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण आए संकट का सामना करने के लिए एकजुटता का आह्वान किया है। साथ ही इन विकासशील राष्ट्रों के आर्थिक पतन से इनका विकास कई वर्ष पीछे छूट जाएगा, इससे बचाने के लिए भारत ने कोविड – 19 आपात राशि की घोषणा ही नहीं की बल्कि विशेषज्ञ समूह को सहायता स्वरूप इन राष्ट्रों में भेजने का भी प्रस्ताव रखा। इस समग्र संकट से निपटने के लिए भारत ने अपने प्राचीन दर्शन के अनुसार मानव एकात्मता, पारस्परिक सौहार्द और समन्वय का परिचय देते हुए सहायता की है। दूसरी ओर इसी समय इटली पर आए घोर संकट में यूरोपीय यूनियन के राष्ट्रों ने अपनी विकसित छवि का दम्भ भरने के बावजूद उसे अलग-थलग पटक दिया। वर्तमान में यूरोपीय यूनियन की जिम्मेदारी थी कि क्षेत्रीय संगठन का सदस्य होने के नाते इटली जैसे देश को समस्त राष्ट्र मिलकर इस संकट से उबारने में सहायता करते। परंतु भारत ने ऐसे में सार्क देशों के समक्ष आर्थिक सहायता का प्रस्ताव रखकर अपनी सनातन संस्कृति और मूल्यों का परिचय दिया है क्योंकि हमारे लिए मानवता किसी भी प्रकार के राष्ट्रीय हित से सर्वोपरि है। भारत जहां अब तक चीन द्वारा इसके खिलाफ अपनाई गई विभिन्न घेराव की नीतियों जैसे स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, ओबोर आदि के चलते चीन के प्रभाव के दुष्परिणामों का सामना कर रहा था, अब इन सभी क्षेत्रों में बढ़-चढ़कर सहायता का प्रस्ताव देकर अपनी विदेश नीति के दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया है।

वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की प्रगाढ़ता को सुदृढ़ एवं पुनः सुनिश्चित करने के लिए समस्त राष्ट्रों के हित में भारत की विदेश नीति के इस मूल्यात्मक सिद्धांत का प्रयोजन पूर्णत: स्पष्ट हो चुका है कि मानवता को समस्त निजी हितों से ऊपर उठकर वसुधैव कुटुंबकम के आत्मीयता के सिद्धांत को अपनाकर ही बचाया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का भविष्य इस बात का आह्वान करता है की वर्तमान संकट से निपटने के लिए सभी क्षेत्रीय समूहों सभी विकसित एवं विकासशील राष्ट्रों को उत्तर दक्षिण तथा गरीबी अमीरी का भेद मिटा कर मानवता की रक्षा के लिए आगे बढ़ते हुए आर्थिक एवं सामाजिक सहायता उपलब्ध करवानी चाहिए। यह प्रत्यक्ष है कि पिछले कुछ वर्षों से पेरिस संकट एवं अन्य जलवायु रक्षा सम्मेलनों में विकसित और विकासशील राष्ट्रों के बीच मतभेद के परिणाम स्वरूप जलवायु संकट से निपटने के लिए किए गए प्रयास सफलता के उच्च स्तर को प्राप्त नहीं कर पाए। किंतु इस आपदा ने यह शिक्षा भी समस्त विश्व को दी है कि निजी हितों से ऊपर उठकर समस्त विश्व के कल्याण का मार्ग खोजने हेतु समस्त राष्ट्रों को पारिवारिक सदस्यों के रूप में साथ मिलकर प्रयास करने होंगे अन्यथा किसी एक राष्ट्र की गलती समस्त राष्ट्रों के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है। इसमें विकसित राष्ट्रों को विवेकहीन मनमानापन छोड़कर तथा विकासशील राष्ट्रों को अपनी सुप्त अवस्था से बाहर आकर वसुधा के हित में सजग प्रयास करने होंगे तथा वर्तमान संकट संपूर्ण विश्व को मानवता के हित में संकटग्रस्त राष्ट्रों की सामाजिक आर्थिक एवं भावनात्मक सहायता के लिए कार्य करने हेतु आह्वान करता है।

प्रीति शर्मा

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3 thoughts on “कोरोना संकट और भारत का विश्व बंधुत्व का संदेश

  1. A very realistic assessment of India’s proactive role in the mitigation of this unprecedented crisis manifesting due to the Covid 19 pandemic! Significance of India’s unique cultural legacy of treating the entire world as family and therefore adopting all relevant measures to provide requisite relief to those affected and those lacking adequate resources has been very eloquently projected by the author! Globalization of this culture is the actual need of this hour! Indeed a good analysis!

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