क्या अचानक व्याख्यान रद्द करना अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात नहीं?

कांग्रेस सरकार के लिए विवादित हैं सांस्कृतिक व देशहित के मुद्दे

भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत नागरिकों को लिखित और मौखिक रूप से अपना मत प्रकट करने हेतु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान किया गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, मौलिक अधिकार से कहीं ज्यादा है, जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए मनुष्य का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह बोले, लिखे और संवाद करे। ऐसे ही शब्दों का प्रयोग करते हुए राजस्थान की कांग्रेस सरकार के मुखिया आए दिन केन्द्र व भाजपानीत सरकारों को कोसते हुए देखे जाते हैं। यही नहीं अपने लच्छेदार भाषणों में मुखियाजी यह कहते हुए भी नहीं थकते हैं कि आज लोकतंत्र खतरे में है, अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। यहां तक कहते हैं कि कांग्रेस ने लोकतंत्र बचाया इसलिए आज भाजपा की सरकार बनी हुई है। तो क्या राजस्थान में उनके द्वारा जो किया जा रहा है वह सब अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात नहीं है।

दरअसल जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में पत्रकारों की संस्था ज्ञानम द्वारा सांस्कृतिक व देशहित के मुद्दों पर 14 दिसम्बर को दो दिवसीय व्याख्यान शुरू हुई। पहले दिन के व्याख्यान में कई सेंशन में सांस्कृतिक विषयों पर चर्चा हुई। पहले दिन के बेहद सफल आयोजन से कंाग्रेसी व कम्युनिस्ट बौखला गए और इप्टा नाम के कम्युनिस्ट संगठन ने प्रशासन से कार्यक्रम बैन की मांग की। जेकेके प्रशासन भी शायद विरोध के इंतजार में ही बैठा था कि आयोजकों का पक्ष सुने बिना ही अगले दिन 15 दिसम्बर को प्रस्तावित सभी कार्यक्रम बैन करने के आदेश जारी कर दिए और वो भी देर रात को। आयोजकों ने सेंशन की रूपरेखा में बदलाव की बात भी कही, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई। सुनने की उम्मीद भी नहीं थी क्योंकि आयोजन सरकारी जगह था और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है।

15 दिसम्बर को व्याख्यान में हिन्द, हिन्दु व हिन्दुस्थान, नागरिकता संशोधन बिल व कश्मीर में धारा 370 समेत देशहित के मुद्दों पर राष्ट्रवादी विचारक पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ, मेजर सुरेन्द्र पूनिया, केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल, राना यशवंत, सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, डॉ. चारू दत्ता प्रभाकर तथा वरिष्ठ पत्रकार श्रीपाल शक्तावत के पैनल चर्चा के सेंशन प्रस्तावित थे। कम्युनिस्ट संगठन की शिकायत थी कि व्याख्यान में धार्मिक उन्माद फैलाने वाले लोग आ रहे हैं, वे सभी एक राजनैतिक पार्टी की विचारधारा को प्रसारित करेंगे। इस शिकायत को मुद्दा बनाकर सरकार ने कार्यक्रम बैन कर दिया। आयोजकों का कहना है कि व्याख्यान बैन करके कांग्रेस ने अपना तानाशाही रवैया उजागर किया है। राजस्थान की कांग्रेस सरकार का यह कृत्य संविधान विरोधी है।

वहीं नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने ट्वीट करते हुए कहा कि कल दिल्ली की रैली में लोकतंत्र खतरे में बताकर ‘बड़े-बड़े भाषण दिए जा रहे थे। जयपुर में संविधान के विषयों पर चर्चा करने वाले आयोजन पर रोक लगवा दी। क्योंकि उसमें धारा 370 व नागरिक संशोधन बिल पर चर्चा होनी थी। क्या आपका यह कृत्य संविधान विरोधी है, अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम नहीं है’।

क्या दूसरों को ज्ञान देकर नए-नए जुमले कसने वाले राजस्थान सरकार के मुखिया अपने राज्य में सांस्कृतिक व देशहित के मुद्दों पर होने वाले कार्यक्रमों को बैन करवाकर संविधान के अनुच्छेद 19 में वर्णित प्रावधानों को कुचलने का काम नहीं कर रहे हैं या फिर उन्हें सिर्फ देश विरोधी मुद्दों पर ही अभिव्यक्ति की आजादी याद आती है।

राघवेन्द्र सिंह

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