क्या एनपीआर और एनआरसी हालात बदल सकते थे?

एनपीआर और एनआरसी लॉक डाउन से बनी इन अव्यवस्थित परिस्थितियों को पलट सकती थी। इसलिए सरकार को तेजी के साथ समय की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तमाम संशोधनों के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर पर काम करने की आवश्यकता है। यह इस समय की बड़ी जरूरत है। यह लॉकडाउन जैसी परिस्थितियों से मुकाबले के अतिरिक्त देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।

कुमार नारद

कोरोना वायरस के संकटकाल के कई चित्र पिछले दिनों इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और प्रिंट मीडिया के माध्यम से दिखाई दिए हैं। उन कुछ चित्रों को एक साथ आंखों के सामने लाने की कोशिश करता हूं। लॉकडाउन की घोषणा के साथ दिल्ली का आईएसबीटी, मुंबई का बांद्रा स्टेशन, जयपुर का सिंधी कैंप बस स्टैंड- घबराए, हतोत्साहित, उतावले लोगों की भीड़ और उस भीड़ में बस, एंबुलेंस या जो भी वाहन मिल जाए, उसके माध्यम से घर पहुंचने की ललक। लोग सैकड़ों किलोमीटर अपने छोटे बच्चों को कंधे, पीठ और गोद में लादे सामानों के साथ अनजाने भय और घबराहट से घर पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं। यह अनजाना भय बाजारों में भी पैदा हुआ और हजारों की संख्या में लोग भविष्य का राशन खरीदने के लिए मॉल, दुकानों, बाजारों में लंबी लंबी कतारों में खड़े हैं। फैक्ट्री, मॉल, निर्माण कार्य और लघु कल कारखाने बंद होने से मजदूर पलायन कर रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकारें फैक्ट्री मालिकों, निर्माण उद्योग से अपने मजदूरों को नौकरी से नहीं निकालने की अपील कर रही हैं।

अब चित्र दो पर आते हैं। लॉकडाउन के बाद बाजार, मॉल, बस, टैक्सी, ट्रेन- कुल मिलाकर आने जाने के तमाम साधन बंद है। बाजार बंद है। लॉकडाउन का पालन करवाने के लिए पुलिस सड़कों पर है। चीनी वायरस से मुकाबले के लिए वर्तमान में यही रास्ता बचा है। इसमें कोई संदेह नहीं है। मजदूर, कारीगर, श्रमिक, लघु उद्योग, घरेलू उद्योग में काम करने वाले व्यक्ति, नियमित मजदूरी कर अपना परिवार पालने वाले लोग लोग घरों में बंद है। कुछ दिनों का राशन खत्म होने के बाद वे लोग गैर सरकारी और सरकारी मदद के लिए हाथ फैलाने को मजबूर है। सरकार मदद का आलम यह है कि स्थानीय विधायक की मर्जी यहां सर्वोपरी होती है। किसको मदद मिलेगी और पहले मिलेगी, वही तय करेगा। राजस्थान की राजधानी जयपुर के कुछ विधायकों की ओर से इस संबंध में राज्य सरकार और सत्ता पक्ष के कुछ विधायकों पर लगाए तीखे और गहरे आरोप इस तथ्य की पुष्टि करते हैं

असमान राहत वितरण के हालात यह है कि जहां कई घरों में महीनों का राशन इकट्ठा हो गया है। वहीं दूसरी ओर सैकड़ों घर अभी तक दूसरे वक्त की रोटी के लिए मदद की प्रतीक्षा कर रहे हैं। राहत वितरण में असमानता राजनैतिक संरक्षण का बाय प्रोडक्ट है। हां, इस दौर में स्वयंसेवी संस्थाओं ने अपना धर्म निभाते हुए लोगों की भरपूर मदद की। लेकिन हर गली-मोहल्लों और छोटी छोटी बस्तियों में उनकी पहुंच संभव नहीं है। फिर कितने लोग ऐसे भी हैं, जो किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त हैं, और जिन्हें हर दिन दवाई चाहिए। पिछले दिनों जयपुर के मालवीय नगर में एक जरूरतमंद परिवार को राशन देने पर पता चला है कि घर की बुजुर्ग डायबिटीज पीड़ित है और उसे हर दिन इंसुलिन की जरूरत होती है। लेकिन पिछले कई दिनों से बिना इंसुलिन लिए जीवन बिता रही, इससे उनकी आंखों की रोशनी भी कम हो रही है।

भारत जैसे विशाल और सघन जनसंख्या वाले देश में उपरोक्त दोनों चित्रों को व्यवस्थित करना क्या आसान है? राजनैतिक इच्छा शक्ति के अभाव में इसका जबाव होगा- जी नहीं, बिलकुल आसान नहीं है। ऐसा संभव भी नहीं है। आप इन हालातों में कुछ भी नहीं कर सकते। लेकिन राजनैतिक इच्छा शक्ति से भरपूर सरकार कहेगी- हां, यह संभव है।

अब राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की पृष्ठभूमि में एक तीसरे सुंदर और व्यवस्थित चित्र की कल्पना करते हैं। आज की परिस्थिति में अगर सरकार के पास अपने नागरिकों की संपूर्ण जानकारी होती तो क्या ऐसे हालात पैदा होते। अगर नागरिक के जीवन से जुड़े हर जरूरी डाटा के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और नागरिकता की पूर्ण जानकारी केंद्र और राज्य सरकारों के पास होती तो एक तीसरा सुंदर चित्र देश में बनता। आज जैसी ही एक दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति का राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के संदर्भ में एक और चित्र देश का खींचते हैं। इससे संभव है देश में नवाचार प्रेमियों को भी राह मिले।

सरकार के पास देश के उन सभी श्रमिकों और उनके परिवार की स्थिति का डाटा होता, जो किसी भी निर्माण क्षेत्र, लघु उद्योग, फैक्ट्रियों में कार्यरत हैं, तो इन हालात में उन्हें आसानी से ट्रेस कर राहत सामग्री और आवश्यक धन राशि दी जा सकती थी। उन्हें तत्काल पलायन की जरूरत नहीं होती। कितने श्रमिक कहां और किन परिस्थितियों में रहे रहे हैं, यह सरकार की जानकारी में होता। सरकार उन श्रमिकों, मजदूरों का वेतन नहीं काटने के लिए सरकार को अपील नहीं करनी पड़ती, बल्कि उन सभी फैक्ट्रियों, लघु उद्योगों और निर्माण क्षेत्र को व्यक्तिशः संदेश भेजकर उन श्रमिकों को राहत दे सकती थी। सरकार के पास प्रवासी मजदूरों का पूरा डाटा होता तो हजारों लोगों को गुजरात से राजस्थान या दिल्ली से बिहार और उत्तरप्रदेश और मुंबई से वापस लौटने की जरूरत नहीं होती। उन्हें उनकी लोकेशन के आधार पर राहत दी जा सकती थी।

अगर सरकार के पास सभी बेरोजगारों, प्रवासी मजदूरों और श्रमिकों का पूर्ण डाटा रहता, तो केंद्र और राज्य सरकारें उन्हें समय रहते राहत देकर उनके अचानक घर की ओर भागमभाग को रोक सकती थी। सरकार के पास भारतीय परिवारों के सभी लोगों की उम्र, उनकी बीमारी, उनके पेशे का डाटा होता तो क्या ऐसा कोई सिस्टम विकसित नहीं किया जा सकता था कि ऐसे वक्त में उन्हें उनकी बीमारी के अनुसार आवश्यक दवाइयां बेरोकटोक मिल जातीं। इसी तरह हर परिवार में गर्भवती स्त्रियों, कुपोषित बच्चों का सही सही आंकड़ा हो तो उसके अनुसार उन गर्भवती महिलाओं की चिकित्सा और कुपोषित बच्चों को पोषण मिल पाता।

देश में लाखों कच्ची बस्तियों में करोड़ों लोग असहाय हालात में रहते हैं और लॉकडाउन जैसी परिस्थितियां निश्चित रूप से उनका मनोबल तोड़ती हैं। लेकिन हम कल्पना कर रहे हैं कि क्या ऐसा संभव है कि भारत की तमाम कच्ची बस्तियों का पूरा डाटा, वहां के प्रत्येक परिवार और व्यक्ति के बारे में जानकारी लेकर उन लोगों को प्राथमिकता के आधार पर सहायता और राहत दी जा सकती थी। इससे राहत सामग्री के असमान वितरण को रोका जा सकता था और हर जरूरतमंद तक दवा, पैसा और राशन पहुंचाया जा सकता था और सरकार इन राहत कार्यों का पूरी पारदर्शिता के साथ निगरानी भी कर सकती थी।

यह सही है कि हर काम सरकार नहीं कर सकती और समाज को पूरी तरह सरकार पर निर्भर भी नहीं होना चाहिए। लेकिन समाज की स्वयंसेवी संस्थाओं के पास यदि समाज के वंचित, बेरोजगार, बुजुर्ग, पलायन करने वाले मजदूर, श्रमिक, कारीगर, बीमार व्यक्ति, कुपोषित, गर्भवती महिलाओं का संपूर्ण आंकड़ा सिलसिलेवार तरीके से मौजूद हो तो वे प्रशासन की मदद से हर तरह की राहत सामग्री बिना किसी अव्यवस्था के जरूरतमंद तक पहुंचा सकते हैं। लेकिन इसके लिए जरूरत है सरकार और समाज के बीच एक मजबूत कड़ी- डाटा की। एक परिपक्व, व्यवस्थित और अपडेटेड डाटा की।

राजनैतिक इच्छा शक्ति से भरी सरकारें तीसरे चित्र को साकार कर सकती हैं। इन अव्यवस्थित परिस्थितियों को पलट सकती हैं। इसलिए सरकार को तेजी के साथ समय की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तमाम संशोधनों के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर पर काम करने की आवश्यकता है। यह इस समय की बड़ी जरूरत है। यह लॉकडाउन जैसी परिस्थितियों से मुकाबले के अतिरिक्त देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है क्योंकि दुनिया के वैश्विक स्वरूप को देखते हुए यह अनुमान लगाना भी कठिन है कि भविष्य के गर्भ में न जाने कैसी कैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं मचल रही हैं। उन अदृश्य घटनाओं से निपटने के लिए हमें अभी से तैयारी करनी होगी। इसलिए समय रहते हमें एनपीआर और एनआरसी के अलावा भी आधुनिक समय की जरूरत से संबंधित तकनीकों पर काम करने की आवश्यकता है।

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