गंगा भारत की संस्कृति की जीवन रेखा, इसे हर हाल में बचाना होगा – डॉ. भागवत
प्रयागराज। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि अविरल गंगा निर्मल गंगा के लिए अब कार्यकर्ताओं को भगीरथ प्रयास करना होगा, क्योंकि यह काम भारत की अन्तरात्मा से जुड़ा हुआ है। 6 आयामों के माध्यम से एक मजबूत टीम के माध्यम से यह काम खड़ा होगा। कार्यकर्ता यहां से काम खड़ा करने का संकल्प ले कर जाएं। यह बात सरसंघचालक ने गंगा समग्र के कार्यकर्ता संगम में अपने सम्बोधन में कही। वे शनिवार को परेड स्थित विश्व हिंदू परिषद के शिविर में आयोजित 6 प्रांतों से आए कार्यकर्ता संगम में कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे। शिविर में गंगा के निर्मलीकरण एवं उससे संबंधित विस्तृत कार्य योजना तैयार की गई।
सरसंघचालक डॉ. भागवत ने कहा कि गंगा भारत की संस्कृति की जीवन रेखा है। इसे हर हाल में बचाना होगा। इस धरती पर जो प्रयास भागीरथ को गंगा जी को लाने के लिए करना पड़ा था, वही प्रयास कार्यकर्ताओं को गंगा एवं उससे जुड़ी नदियों को बचाने के लिए करना होगा। इस कठिन काम को आसान करने का मूल मंत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि जन जागरण से यह काम संभव हो पाएगा। गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा के दोनों तटों पर पांच-पांच किलोमीटर के दायरे में बसे गांवों एवं शहरों में इसके लिए नित्य नैमित्तिक कार्यक्रम चलाने होंगे। यह काम जन-जन के भीतर के भगवान को जगा कर पूरा किया जा सकता है। इसके लिए सरकार पर निर्भर नहीं होना चाहिए। स्वयं जनता को इस को अपने हाथों में लेना पड़ेगा। इस काम से हमें क्या-क्या मिलेगा या मेरा क्या होगा, इस पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। सभी आयामों की मजबूत टीम बनाकर केंद्र एवं राज्य स्तर पर उनका विधिवत प्रशिक्षित कर इस काम को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए तटवर्ती गांव में प्रतिदिन सुबह-शाम गंगा आरती, तीर्थ पुरोहितों को कर्मकांड का प्रशिक्षण, घाटों की स्वच्छता, वृहद वृक्षारोपण, तालाबों में जल संचय कर उनको पुनर्जीवन देने से संभव हो पाएगा। इस कार्य में अन्य संगठन भी लगे हुए हैं, उनको भी साथ लेकर चलने की जरूरत है। यह काम कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं है।
एक कहानी के माध्यम से उन्होंने कहा कि सफलता और असफलता में केवल 3 फीट का अंतर रहता है। निराश ना होने वाले कार्यकर्ता सफलता प्राप्त कर ही लेते हैं। निर्मल गंगा अविरल गंगा अभियान को आगे बढ़ाने के लिए विकास और पर्यावरण दोनों का समान रूप से ध्यान रखना होगा। दोनों में संतुलन बनाने की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने विज्ञान और अध्यात्म दोनों के प्रयोग पर बल दिया। इस काम में लगे सभी कार्यकर्ताओ को नदियों के जल प्रबंधन तथा जल संरक्षण का पूरा ज्ञान होना चाहिए। इस काम के लिए उन्होंने संतों का आशीर्वाद प्राप्त करने का भी कार्यकर्ताओं से आग्रह किया।
सत्र का संचालन गंगा समग्र के केंद्रीय महामंत्री डॉ. आशीष गौतम ने किया। प्रातः काल 9:00 बजे से प्रारंभ हुए सत्र में गंगा समग्र के केंद्रीय संगठन मंत्री मिथिलेश नारायण ने कचरा प्रबंधन एवं कचरा परिशोधन करने का तरीका कार्यकर्ताओं को समझाया। इसमें दिल्ली से आई संगठन की प्रांत संयोजिका नंदिनी पाठक ने भी नया प्रयोग करके कार्यकर्ताओं को दिखाया।
प्रांत संयोजकों ने अपने-अपने प्रांतों में वृक्षारोपण, घाटों की स्वच्छता, गंगा आरती, गंगा जागरण यात्रा, प्राकृतिक खेती की जानकारी दी।
केंद्रीय महामंत्री डॉ. आशीष गौतम ने गंगा समग्र की संपूर्ण भूमिका रखी। उन्होंने बताया कि नर्मदा समग्र के माध्यम से नर्मदा नदी पर किए गए काम और उस में मिली सफलता के बाद गंगा समग्र की योजना बनी। संयोग से कल नर्मदा जयंती भी थी। इस काम के लिए उन्होंने स्वर्गीय अशोक सिंघल की प्रेरणा को भी महत्वपूर्ण बताया। पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती की भी प्रेरणा का स्मरण किया।
उन्होंने कहा कि हिमालय जब द्रवित होता है तो उससे जलधारा निकलती है, तब गंगा बहती है। केंद्रीय महामंत्री ने कहा कि इसके पूर्व दिल्ली में एक विशाल सम्मेलन हुआ था, जिसमें सभी सांसदों को गंगाजल वितरित करने की योजना बनाई गई और उन्हें वितरित किया गया। आज गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा की निर्मलता के लिए 6 लाख कार्यकर्ता उठ खड़े हुए हैं। उन्होंने सभी आयामों के द्वारा किए गए कार्यों की विस्तार से जानकारी रखी। गंगा तटों पर एक लाख से ज्यादा वृक्ष लगाए गए, जिनमें लगभग 7000 वृक्ष सुरक्षित हैं। डॉ. राधाकृष्ण दीक्षित ने गंगा घाटों पर बैठने वाले तीर्थ पुरोहितों के महत्व तथा उन्हें अब तक मिले प्रशिक्षण की जानकारी दी। 233 घाट तीर्थ पुरोहितों से युक्त हैं। उन्हें मंत्रों के सही उच्चारण एवं कर्मकांड का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। देशभर के लोगों की वंशावलियां उनके पास सुरक्षित हैं। इस दृष्टि से उनका अत्यधिक महत्व है।