गीता में जिहाद…, वैचारिक दृष्टि दोष से पीड़ित पाटिल

गीता में जिहाद…, वैचारिक दृष्टि दोष से पीड़ित पाटिल

हृदय नारायण दीक्षित

गीता में जिहाद…, वैचारिक दृष्टि दोष से पीड़ित पाटिलगीता में जिहाद…, वैचारिक दृष्टि दोष से पीड़ित पाटिल

पतंजलि ने ‘महाभाष्य’ में शब्द अनुशासन समझाया है कि एक ही शब्द वाक्य में भिन्न भिन्न स्थानों पर बैठकर भिन्न अर्थ देता है। यास्क ने ‘निरुक्त‘ में सही अर्थ के लिए इतिहास परम्परा व तर्क को अपनाने का सुझाव दिया है। लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शिवराज पाटिल ने बिना किसी आधार के इस्लाम की बहुचर्चित धारणा ‘जिहाद’ को गीता में भी होने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि “जिहाद की अवधारणा न केवल इस्लाम में है बल्कि भगवद्गीता व ईसाइयत में भी थी।” कांग्रेस के ही महासचिव डॉ. जयराम रमेश ने उनकी टिप्पणी को खारिज कर दिया है। इस वक्तव्य को लेकर पूरे देश में रोष है। भारतीय जनता पार्टी हमलावर है। गीता दर्शन ग्रंथ है। यह अर्जुन के प्रश्नों व श्रीकृष्ण के उत्तरों का ज्ञान संग्रह है। भारतीय ज्ञान परम्परा तर्क और प्रश्नों से भरीपूरी है। गीता में मानने पर कोई जोर नहीं है। इसमें योग है, ज्ञान है, भक्ति है, सांख्य है, वेदांत है। अंत में स्वविवेक के अनुसार कर्म स्वातंत्र्य। श्रीकृष्ण ने अंत में कहा, ‘‘मैंने तुम्हें यह ज्ञान बताया है। इस पर पूरी तरह विचार करो, फिर जो इच्छा हो, वह करो – यथेच्छसि तथा कुरु।” दुनिया के किसी भी पंथ मजहब में ऐसा कर्म स्वातंत्र्य नहीं है।

जिहाद बहुचर्चित शब्द है। इसका सामान्य अर्थ दीन (मजहब) से इंकार करने वाले लोगों से लड़ना है। मधुर संदेश संगम जामिया नगर दिल्ली से कुरान का हिन्दी अनुवाद छपा है। अनुवादक मो. फारुख खान व डॉ. मुहम्मद अहमद ने पारिभाषिक शब्दावली में जिहाद की परिभाषा की है, ‘‘जानतोड़ प्रयास, ध्येय की सिद्धि के लिए सम्पूर्ण शक्ति लगा देना। युद्ध के लिए कुरान में ‘किताल’ शब्द प्रयुक्त हुआ है। जिहाद का अर्थ किताल के अर्थ से कहीं अधिक विस्तृत है। जो व्यक्ति सत्य – धर्म के लिए अपने धन, लेखनी, वाणी आदि से प्रयत्नशील हो। इसके लिए अपने को थकाता हो, वह जिहाद ही कर रहा है। धर्म के लिए युद्ध भी करना पड़ सकता है। उसके लिए प्राणों का बलिदान भी किया जा सकता है। यह भी जिहाद का एक अंग है। जिहाद को उसी समय इस्लामी जिहाद कहा जाएगा जबकि वह अल्लाह के लिए हो। अल्लाह के नाम और उसके मजहब की प्रतिष्ठा के लिए हो, न कि धन – दौलत की प्राप्ति के लिए हो। जिहाद का मुख्य उददेश्य है सत्य – मार्ग की रुकावटों को दूर करना, संसार को अल्लाह के अतिरिक्त दूसरों की दासता से छुटकारा दिलाना। धर्म के पालन में जो बाधाएं और रुकावटें खड़ी होती हैं उन्हें दूर करना।”

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिहाद का अर्थ प्रायः युद्ध से ही लिया जाता है। इस्लामी विचारधारा जिहाद के लिए प्रेरित करती है। मजहब के लिए युद्ध करते मारे गए लोगों के लिए कुरान का संदेश है, ‘‘जो लोग अल्लाह के मार्ग पर मारे जाएं, उन्हें मुर्दा न कहो बल्कि वे जीवित हैं। तुम्हें अहसास नहीं होता।” (कुरान 2.154) इस विचारधारा में दीन से इंकार करना कुफ्र है और इंकार करने वाले काफिर। कुफ्र, काफिर और जिहाद पर सारी दुनिया में चर्चा होती है। इस विचारधारा में युद्ध अनिवार्य है, ‘‘तुम पर युद्ध अनिवार्य किया गया है और वह तुम्हें प्रिय नहीं लगता। बहुत संभव है कि कोई चीज तुम्हें प्रिय हो, लेकिन वह तुम्हारे लिए बुरी हो।” (कुरान 2.216) इसलिए अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो। (2.244) जिन लोगों ने अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया, वही अल्लाह की दयालुता की आशा रखते हैं। (2.218) मजहबी राज्य की स्थापना एक फर्ज है। इतिहासकार यदुनाथ सरकार ने लिखा है कि मुस्लिम शासक का सर्वप्रमुख कर्तव्य काफिरों के देशों – दारुल हर्ब पर तब तक जिहाद करना है, जब तक कि वे इस्लामी राज्य – दारुल इस्लाम न बन जाएं और लोग इस्लाम का राज स्वीकार न कर लें।”

दुनिया में राष्ट्रीयता और लोकतंत्र का विकास हो रहा है। इस्लाम और राष्ट्रीयता के रिश्तों पर मौलाना मौदूदी की राय है, ‘‘इस्लाम और राष्ट्रीयता दोनों स्पिरिट और मकसद के लिहाज से एक दूसरे के विरोधी हैं। जहां राष्ट्रीयता है वहां इस्लाम का प्रभाव नहीं बढ़ सकता। जहां इस्लाम है वहां राष्ट्रीयता के लिए कोई जगह नहीं।”

भारतीय संविधान निर्माताओं ने संसदीय लोकतंत्र अपनाया है। मौलाना मौदूदी का कहना है ‘‘जिन सुधारों को इस्लाम लाना चाहता है उनके लिए सत्ता पर अधिकार आवश्यक है। इसलिए दीन की स्थापना के उद्देश्य से शासन तंत्र पर अधिकार करने के लिए संघर्ष की न केवल अनुमति है बल्कि यह अनिवार्य भी है।” भारत में लम्बे समय से जिहाद जैसी धारणाओं पर तीखी बहस है। पहले वे अपनी विचारधारा के अनुसार स्पष्टीकरण देते थे। अब उनके स्पष्टीकरण प्रभावी नहीं रहे। इसलिए वे अपनी धारणाओं की गवाही हिन्दू विचारधारा से लेते हैं। पाटिल ने यही कहा है कि जिहाद इस्लाम में है, तो गीता में भी है।

गीता में जिहाद खोजना शरारतपूर्ण है। इस्लामी मान्यता के अनुसार कुरान की व्याख्या नहीं हो सकती, जबकि गीता के भाष्य और आलोचना पर रोक नहीं है। दुनिया के अनेक विद्वानों ने गीता पर भाष्य लिखे हैं। सबने अपने अर्थ निकाले हैं। शंकराचार्य का भाष्य मुक्ति संदेश देता है। तिलक के भाष्य ‘गीता रहस्य‘ में कर्मवाद है। भाष्यकार का काम शब्दार्थ को वर्तमान बनाना होता है। गीता के अधिकाँश तत्व शाश्वत हैं। मार्क्सवादी विद्वान डीडी कोसम्बी ने गीता को लोकप्रिय कृति बताया है। लिखा है कि ‘‘इसका प्रयोग शंकर, रामानुज ने भी किया है।” उन्होंने गीता के मराठी अनुवाद ज्ञानेश्वरी के सम्बंध में लिखा है कि 13वीं सदी के अंतराल में रचित ज्ञानेश्वरी का मराठी में वही स्थान है जो उसी युग की किन्तु भिन्न स्तर की, ‘दिवाइना कामेदिया‘ का इतालवी में है। मार्क्सवादी चिंतक डॉ. रामविलास शर्मा ने लिखा है, ‘‘दुख में उद्विग्न नहीं और सुख में प्रीति नहीं की गीता की प्रतिध्वनियां यूरोप से दूर दूर तक सुनाई देती हैं।” एडविन अर्नाल्ड ने गीता पर ‘सेलेसियल सांग‘ ग्रंथ लिखा था। उन्होंने लिखा है ‘‘इस ग्रंथ के अभाव में अंग्रेजी साहित्य अधूरा रहेगा। मैं इस आश्चर्यजनक कृति का अनुवाद करने का साहस कर रहा हूँ।”

गीता अस्तित्व का अंतर्संगीत है। डॉ. राधाकृष्णन ने भी गीता का अनुवाद किया है। लिखा है कि ‘‘यह एक लोकप्रिय काव्य है। ज्ञान के लिए भटकते लोगों के लिए सहायक है।” हेनरी डेविड थोरो ने टिप्पणी की, ‘‘मैं गीता के ब्रह्माण्डीय दर्शन से प्रातःकाल अपनी बुद्धि का स्नान कराता हूँ।” एडुलस हक्सले ने लिखा था, ‘‘गीता शाश्वत दर्शन के स्पष्ट और सर्वांग सम्पूर्ण सारांशों में से एक है। मानव जाति के लिए इसका स्थाई मूल्य है। गीता ने सारी दुनिया को प्रभावित किया। इसका प्रभाव चीन और जापान तक विस्तृत है। सम्प्रति अमरीका से लेकर सभी यूरोपीय देशों में इसकी लोकप्रियता है। जर्मन धर्म के भाष्यकार जेडब्लू होवर ने भी लिखा है, ‘‘यह सब कालों, सब प्रकार के धार्मिक जीवन में प्रामाणिक है।” सारी दुनिया के विद्वान गीता से प्रेरित होते हैं। किसी भी विद्वान को गीता में जिहाद नहीं मिला, लेकिन पाटिल को गीता में जिहाद दिखाई पड़ता है। ऐसे ज्ञान को क्या कहा जाए – शरारत या छद्म सेकुलर राजनीति में शीर्ष स्थान पाने की महत्वाकांक्षा?

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