अभिनव प्रयोगों के अंतर्गत अब गाय के गोबर से बनी गणेश मूर्तियां बाजार में
जयपुर, 20 अगस्त। भारतीय संस्कृति में गाय की बहुत अधिक महत्ता है। गाय के दुग्ध, गोमूत्र और गोबर से अनेक प्रकार की औषधियां सदियों से बन रही हैं। कई रोगों का उपचार जो अंग्रेजी दवाओं से संभव नहीं होता गोउत्पाद से बनी औषधियों से हो रहा है। देश में चल रहे अभिनव प्रयोगों के अंतर्गत अब गाय के गोबर से बनी गणेश मूर्तियां बाजार में हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय गो सेवा प्रमुख, शंकर लाल बताते हैं, ” गाय के गोबर से दीपक का निर्माण हो रहा है। गोबर से गणेश मूर्तियों का निर्माण भी हो रहा है, जो कि इको फ्रेंडली हैं और विसर्जन के समय पर्यावरण को क्षति नहीं पहुंचाती हैं। मूर्तियां अलग प्रकार की कलाकृतियों से और रंगों से सजाई जा रही हैं। इस साल गोबर से बनी लगभग एक लाख गणेशजी की मूर्तियां बनाने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।” इंदौर की अहिल्या माता गोशाला और संघ के कुछ कार्यकर्ताओं ने मिलकर यह बीड़ा उठाया था। देश के अलग- अलग नगरों में इस प्रकार के कार्य अच्छे से चल रहे हैं।
बाज़ार में गणेशजी की यह मूर्ति, 250 से 300 रुपये की बेची जाती है, जिसमें से 150 रुपये सेवा बस्ती की महिलाओं को जाता है जो इन मूर्तियों को बनाती हैं, 50 रुपये गोशाला को जाते हैं जहां से गोबर लिया जाता है और 50 रुपये बेचने वाले को दिए जाते हैं। इस प्रकार से लोगों को रोजगार तो उपलब्ध होता ही है साथ ही साथ सब में आत्मनिर्भरता भी आती है।
इसके साथ ही, इंदौर में गाय के गोबर से अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां बनाई जा रही हैं। एक अंतिम संस्कार के लिए करीब 2 पेड़ों की लकड़ियां लग जाती हैं, लेकिन गोबर से बनी लकड़ियों से काफी पेड़ बचाए जा सकेंगे। इंदौर में अब तक लगभग 1000 लोगों का अंतिम संस्कार गोबर से बनी लकडि़यों से किया जा चुका है। शंकरलाल आगे बताते हैं, “मुख्य लक्ष्य यह है कि गोशालाओं को स्वावलंबी बनाया जाए। इन उत्पादों से ना केवल गोशालाएं स्वावलंबी बनेंगी, अपितु समाज और पर्यावरण को भी लाभ मिलेगा।”