जनजाति समाज ने भरी हुंकार, 342 में संशोधन करे सरकार

जनजाति समाज ने भरी हुंकार, 342 में संशोधन करे सरकार

जनजाति समाज ने भरी हुंकार, 342 में संशोधन करे सरकारजनजाति समाज ने भरी हुंकार, 342 में संशोधन करे सरकार

  • जनजाति समाज ने लगाया नारा, जो ना भोलेनाथ का, वो ना हमारी जात का
  • वक्ताओं ने कहा, रिलीजियस कन्वर्जन न सिर्फ जनजाति संस्कृति के लिए अपितु देश के लिए भी खतरा
  • हुंकार डीलिस्टिंग महारैली में उमड़ा जनजाति समाज का सैलाब
  • शंखनाद के साथ जनजाति सुरक्षा मंच का फहराया झंडा

उदयपुर, 19 जून। रिलीजियस कन्वर्जन न सिर्फ जनजाति संस्कृति के लिए, बल्कि देश के लिए भी खतरा है। कन्वर्जन से जनजाति समाज की पहचान, उसका अस्तित्व ही संकट में आ जाएगा, तब इस बात पर विचार करने के लिए भी समय भी नहीं रहेगा। डीलिस्टिंग आंदोलन जनजाति समाज के भविष्य के लिए संघर्ष है। इस बात को हम सभी को गहराई से समझना होगा और इस आंदोलन को सफल करने के लिए संकल्पित होना होगा। यह आह्वान वक्ताओं ने रविवार को उदयपुर के गांधी ग्राउंड में हुंकार डीलिस्टिंग महारैली के बाद हुई विशाल सभा में उपस्थित जनजाति समाज से किया।

जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के आह्वान पर उदयपुर में हल्दीघाटी युद्ध विजय दिवस पर आयोजित इस हुंकार महारैली में वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामचंद्र खराड़ी ने कहा कि सनातन संस्कृति पर रिलीजियस कन्वर्जन के रूप में यह अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है। उन्होंने हल्दीघाटी युद्ध विजय दिवस के दिन वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप व भीलू राणा पूंजा को स्मरण करते हुए संस्कृति को बचाने के लिए जनजाति समाज को डीलिस्टिंग के मुद्दे पर एकजुट होने का आह्वान किया।

बेणेश्वर धाम के महंत अच्युतानंद महाराज ने कहा कि यह जनजाति समाज के बच्चों के भविष्य के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जनजाति संस्कृति के संरक्षण के हर प्रयास में हम सब साथ खड़े हैं। जनजाति समाज के संत गुलाबदास महाराज ने सभा के दौरान हो रही बारिश को रुद्राभिषेक बताते हुए उपस्थित समाजजनों से संस्कृति संरक्षण का संकल्प करवाया। सभा को जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक राजकुमार हांसदा, दमोह के जिला न्यायाधीश प्रकाश उइके ने भी डीलिस्टिंग को लेकर विचार रखे। सभी ने संविधान के आर्टिकल 342 में संशोधन की आवश्यकता पर बल दिया। जिस तरह आर्टिकल 341 में एससी के लिए यह स्पष्ट प्रावधान है कि पूजा पद्धति व आस्था बदल लेने पर एससी के रूप में प्रदत्त लाभ उसे नहीं मिलेंगे, ठीक वैसा ही प्रावधान एसटी के लिए आर्टिकल 342 में जोड़ा जाए।

वक्ताओं ने कहा कि जनजाति समाज के कन्वर्जन विषय को लेकर जनजाति नेता व तत्कालीन सांसद डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में ही चिंता शुरू कर दी थी। इस संबंध में सन् 1968 में डॉ. कार्तिक उरांव ने, इस संवैधानिक विसंगति को दूर करने के प्रयास किए एवं विस्तृत अध्ययन भी किया। जनजाति नेता डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में किए अपने अध्ययन में पाया कि 5 प्रतिशत कन्वर्टेड ईसाई, अखिल भारतीय स्तर पर कुल एसटी की लगभग 70 प्रतिशत नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे हैं, साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर-अनुपातिक था। इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ, जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 से कन्वर्टेड लोगों को एसटी की सूची से बाहर करने के लिए राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश में संसदीय कानून द्वारा संशोधन किया जाना आवश्यक है। इस ड्राफ्ट पर तत्कालीन 348 सांसदों का समर्थन भी प्राप्त हुआ था, इस विचाराधीन ड्राफ्ट पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई।

वक्ताओं ने कहा कि भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के सदस्य एंथ्रोपोलोजिस्ट पद्मश्री डॉ. जेके बजाज का 2009 का अध्ययन भी इस गैर-आनुपातिक और दोहरा लाभ हड़पने की समस्या की विकरालता को उजागर करता है कि कन्वर्टेड ईसाई एवं मुसलमान अनुसूचित जनजातियों की अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे हैं और दोहरा लाभ ले रहे हैं। गांव-गांव में कन्वर्जन के कारण पारिवारिक समस्याएं भी आ रही हैं। कहीं-कहीं बहन भाई के बीच राखी का त्योहार समाप्त हो गया है।

जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक लालूराम कटारा ने कहा कि जो व्यक्ति अपने पूर्वजों की आस्था, संस्कृति, परम्परा, भाषा, व्यवहार छोड़कर अन्य धर्म में जा रहा है, तब उसे जनजाति के रूप में प्रदत्त अधिकार भी छोड़ने ही चाहिए क्योंकि उसे जनजाति होने का अधिकार उसके पूर्वजों और उसकी संस्कृति के आधार पर ही मिला है। इसी आधार पर संविधान में एससी के लिए आर्टिकल 341 में प्रावधान है, लेकिन यह बात एसटी के लिए आर्टिकल 342 में नहीं लिखी गई। इसका लाभ रिलीजियस कन्वर्जन कराने वाली शक्तियां उठा रही हैं। कन्वर्जन जनजाति समाज की संस्कृति को समाप्त करने का षड्यंत्र है। कन्वर्जन राष्ट्र के लिए भी खतरा है। पूजा पद्धति व आस्था बदलने वाले बड़ी चतुराई से दोहरा लाभ उठा रहे हैं, जबकि मूल जनजाति समाज अपनी ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।

इससे पूर्व, कार्यक्रम का आरंभ जनजाति सुरक्षा मंच के झंडारोहण व शंखनाद से हुआ। मंचासीन अतिथियों का सम्मान जनजाति सुरक्षा मंच की केन्द्रीय टोली के सदस्य हिम्मत तावड़, मन्नालाल रावत, जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश उपाध्यक्ष भीमसिंह सुरावत, मंच के सम्पर्क प्रमुख सुभाष रोत, जनजाति सुरक्षा मंच प्रदेश सहमंत्री पृथ्वीराज मीणा, नरेश खेर ने किया। कार्यक्रम में सुराता धाम के रतन गिरि महाराज, लसूड़िया धाम के विक्रम गिरि महाराज सहित कई संतवृंदों का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। संतों का सम्मान रमेश मूंदड़ा व बसंत चौबीसा ने किया। कार्यक्रम का संचालन जनजाति सुरक्षा मंच प्रदेश सह संयोजक बंशीलाल कटारा और भावना मीणा ने किया।

विभिन्न संगठनों व मातृशक्ति के सहयोग पर जताया आभार
जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से आहूत इस हुंकार डीलिस्टिंग महारैली में उदयपुर के विभिन्न सामाजिक, व्यापारिक व स्वयंसेवी संगठनों का सहयोग रहा। कई संगठनों ने शोभायात्राओं के मार्ग में पेयजल, अल्पाहार आदि की व्यवस्थाएं की। सभी सहयोगकर्ताओं के साथ जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से नगर निगम, जिला प्रशासन और विशेष रूप से भोजन पैकेट में सहयोग करने वाली शहर की मातृशक्ति का भी आभार प्रकट किया गया।

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