जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार…

जो दृढ़ रखे धर्म को, तेहि राखे करतार…

जो दृढ़ रखे धर्म को, तेहि राखे करतार…

उदयपुर। प्रताप गौरव केंद्र की ओर से आयोजित महाराणा प्रताप जयन्ती समारोह 2021 के अन्तर्गत आयोजित ऑनलाइन संवाद कार्यक्रम में विश्व हिन्दू परिषद की केन्द्रीय प्रबंध समिति के सदस्य धर्मनारायण शर्मा ने कहा कि जो प्रजा का सर्जन करता है, वही राजा होता है। जो राजा प्रजा के सुख को अपना सुख एवं प्रजा के दु:ख को अपना दुःख मानता है, उससे उसकी प्रतिष्ठा होती है। धर्मनारायण शर्मा ने कहा कि महाराणा प्रताप ने अपने भाई शक्तिसिंह द्वारा अब्दुल रहीम खानखाना के परिवार की महिलाओं को ले आने पर पुनः उन्हें ससम्मान लौटाकर नारी सम्मान का परिचय दिया।

जो दृढ़ राखे धर्म को, तेहि राखे करतार… विषय पर उन्होंने कहा कि शास्त्रों में भावों को स्थान दिया गया है। धर्म के अनुसार जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म भी उसकी रक्षा करता है। जो धर्म के अनुसार नहीं चलेगा, उसका पतन निश्चित है। धर्म पर अटल रहने की आवश्यकता है। धर्म भी आचरण से प्रकट होता है। अगर धर्म पर अटल नहीं रहेंगे तो दुर्गुण का प्रादुर्भाव हो जाएगा।

जीवन रक्षा के प्रभाव में धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। राम राम रटते रहो और अपनी धर्म संस्कृति, जीवन मूल्यों एवं मान्यताओं पर अटल रहो। ऋषि दधीचि ने धर्म रक्षा के लिए अपना शरीर का न्यौछावर कर दिया, जिससे वज्र बना और दुष्टों का अंत हुआ। राष्ट्रधर्म का पालन करना है, जिससे राष्ट्र धर्म के मानवीय बिन्दुओं की रक्षा की जा सके। हमारे यहां वीरों और वीरांगनाओं ने राष्ट्र रक्षा के लिए अपने जीवन की आहुति दे दी।

संचालनकर्ता द्वारा धर्मान्तरण विषय पर प्रश्न पूछे जाने पर धर्मनारायण शर्मा ने कहा कि आज भी भारत में लोभ लालच से मतांतरण हो रहा है। आज धर्म की शिक्षा देने की अति आवश्यकता है। आज के कुछ नेता पाकिस्तान और चीन की जय जयकार करते हैं, अगर उनमें धर्म होता तो वह सत्कार्य करते। सत्तालोलुपता ने उन्हें धर्म विहीन बना दिया है। आज जिसे तथाकथित शूद्र कहा जाता है, उन्हें सम्मान देने की जरूरत है, गले लगाने की जरूरत है। लम्बे समय तक सत्ता में रहे लोगों का एकमात्र लक्ष्य सत्ता में रहना ही हो गया है, ना ही वह सेवा की बात करते हैं और ना ही देश के विकास की। उन्हें तो बस येन केन प्रकारेण सत्ता चाहिए। आज समय बदला है। देश के प्रधानमंत्री ने देश विदेश में भ्रमण कर सबको अपना मित्र बनाया है। देश की प्रतिष्ठा कैसे बढ़े, भारतीय मूल्यों की प्रतिष्ठा कैसे हो, इसी को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रभाव के निर्माण का कार्य किया है।

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