जड़ें
भुरभुरी सी
मिट्टी में जकड़बन्द
जटिल सांप सीढ़ी सी
जड़ें
फैलना चाहती हैं
धरती के अंदर
ऊपर नहीं आना चाहतीं
आखेटक खड़े हैं
मुंह फाड़े
पिशाच के जैसे।
अमूल्य द्रव्य को सींचा है
सदियों से
कभी सूखती
कभी हरियाती
पर मिटी नहीं
जड़ें
बस देसी खाद और पानी मांगती हैं
हर पीढ़ी से।
डॉ. अरुण सिंह
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर