शत शत नमन तुमको…

सर्वोच्च बलिदानी तुमने किया है सर्वस्व बलिदान
शत शत नमन तुमको, तुम्हें मेरा अंत: प्रणाम

हे वीरो! तुमने भारत मां के समक्ष अपना शीश चढ़ाया है
नतमस्तक है राष्ट्र, जो ऐसे रणबांकुरों को पाया है।

धन्य धरा, धन्य हम, धन्य यह देश
जो तुम जैसे नौनिहालों को इस धरती मां ने जाया है।

रणभेरी की झंकार तुम, राणा की हुंकार तुम
पांचजन्य की ललकार के जैसे महाभारत का सार तुम।
शत्रु को भयभीत करते शिव का प्रलयंकार तुम
प्रगाढ़ वीरत्व बसता है तुम में, पौरुष की गाथा के रचनाकार तुम।

मैं क्या तुम्हारे गुणों का बखान करूं!
सूर्य को दिया दिखाने की भांति मैं क्या तुम्हारा यशोगान करूं?
मुंह छोटा बड़ी बात कहता हूं, मैं क्या अंबर को नापने का काम करूं?

यह तो बात थी वीरों की, जिनमें मेरे प्राण बसते हैं
अब बात उनकी भी कर लें, जिनका जीना भी एक धिक्कार है।
हां, अब बात उनकी है जिनका होना भी एक मिथ्या चार है।

दिग्भ्रमित, पथभ्रष्ट चले हैं जिहाद करने को।
तरस आता है तुम पर, जो चले हो अमिट को मिटाने को।

अरे दिग्भ्रमितो! किस जिहाद की बात करते हो
यह देश तुम्हारा भी है, क्यों कांटे बोते हो?

आतंकियों का साथ देने पर मात्रभूमि भी रोती है सिसकती है, बार बार अपने जख्म सींती है।

और दिशाहीन पाकिस्तानी आतंकियो! वैश्विक महामारी में भी चैन नहीं तुमको?
कठपुतली के जैसे चल पड़े अपने मूल्य-हीन प्राण गंवाने को।

सुधर जाओ वरना ऐसा प्रचंड प्रलयंकर आएगा, ले जाएगा तुम सबको तूफान की भॉंति और तुम्हारा नामोनिशान मिटा दिया जाएगा।

बस अंत में हृदय में घात यही रह जाता है ,
कि तुम विक्षिप्तों के कारण, क्यों वीरों को लहू का एक अंश भी बहाना पड़ जाता है?

ये वीर विरले, भारत माता की आंखों के तारे हैं
हमारे वीर सैनिक अनमोल, अप्रतिम और हम सब के दुलारे हैं।

मन कचोटता है, जब इन विक्षिप्तों के कारण
एक भी वीर अपनी जान गंवाता है।
जिहादियों की सनक से, फिर
एक वीर सितारों में मिल जाता है।

अंत हो इस नरसंहार का, क्यों खोएं हम अपने वीरों को
बिना किसी लोभ लालच के मर मिटने वाले शूरों को

मेरे देश के सैनिको! शत शत नमन तुमको
शत शत नमन तुमको, शत शत नमन तुमको…..।

अमन अवस्थी

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3 thoughts on “शत शत नमन तुमको…

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