जनजाति समाज की डी-लिस्टिंग हुंकार महारैली 18 जून को, कर पत्रक का हुआ विमोचन

जनजाति समाज की डी-लिस्टिंग हुंकार महारैली 18 जून को, कर पत्रक का हुआ विमोचन

जनजाति समाज की डी-लिस्टिंग हुंकार महारैली 18 जून को, कर पत्रक का हुआ विमोचनजनजाति समाज की डी-लिस्टिंग हुंकार महारैली 18 जून को, कर पत्रक का हुआ विमोचन

  • 18 जून को जनजाति समाज की डी-लिस्टिंग हुंकार महारैली के कर पत्रक का विमोचन
  • पूरे राजस्थान से एक लाख से अधिक जनजाति बंधु होंगे एकत्र
  • एक ही नारा होगा बुलंद, जिन्होंने धर्म छोड़ा वे एसटी का स्टेटस भी छोड़ें

उदयपुर, 16 मई। उदयपुर शहर में हल्दीघाटी युद्ध दिवस (18 जून) पर जनजाति समाज की डी-लिस्टिंग हुंकार रैली निकाले जाने को लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। जनजाति बहुल कोटड़ा, सराड़ा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा सहित राजस्थान के अन्य क्षेत्रों में इसे लेकर जागरण का दौर जारी है, वहीं उदयपुर शहर में भी जनजाति बंधु-बांधवों के आगमन पर उनके भव्य स्वागत की तैयारियां की जा रही हैं। जनजाति बंधु-बांधवों के स्वागत के लिए उदयपुर शहर के हर घर से भोजन पैकेट एकत्र करने का निर्णय किया गया है। भोजन पैकेट तैयार करने के साथ ही उदयपुर शहरवासी जनजाति समाज के बंधुओं का भव्य स्वागत भी करेंगे।

जनजाति सुरक्षा मंच राजस्थान के बैनर तले होने वाली डी-लिस्टिंग हुंकार महारैली के संयोजक नारायण गमेती ने सोमवार को यहां वनवासी कल्याण आश्रम में आयोजित पत्रकार वार्ता में बताया कि डी-लिस्टिंग महारैली जनजाति समाज के अधिकारों और उनकी संस्कृति को बचाने के लिए आहूत की जा रही है। इस महारैली के माध्यम से यह मांग उठाई जाएगी कि जनजाति समाज के जिस व्यक्ति ने अपना धर्म बदल लिया है, उसे एसटी के नाते प्रदत्त सुविधाएं नहीं मिलनी चाहिए। जब अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए संविधान में यह नियम लागू है तो, अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए भी यह प्रावधान संविधान में जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म बदलने वाले अपनी चतुराई से दोहरा लाभ उठा रहे हैं, जबकि मूल जनजातीय समाज अपनी ही मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।

उन्होंने बताया कि इस महारैली में पूरे राजस्थान से जनजाति समाज के लोग अपनी पारम्परिक वेशभूषा एवं वाद्ययंत्रों के साथ एकत्रित होंगे और धर्म बदलने वालों का एसटी स्टेटस हटाए जाने की मांग करेंगे। इस हुंकार महारैली को लेकर पूरे राजस्थान में तैयारियां शुरू हो गई हैं। उदयपुर संत समाज और मातृशक्ति ने भी जनजाति बंधु-बांधवों की इस आवाज को बुलंद करने के लिए इस रैली में हर संभव सहयोग की घोषणा की है।

गमेती ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उदयपुर में महारैली में आने वाले एक लाख से अधिक जनजाति बंधु-बांधवों के भोजन की व्यवस्था उदयपुर शहर के घर-घर से की जाएगी। महारैली के दिन जनजाति सुरक्षा मंच सहित विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता इन घरों से भोजन पैकेट एकत्रित कर निर्धारित स्थलों पर पहुंचाएंगे, जहां से उनका वितरण जनजाति बंधुओं को किया जाएगा। उदयपुर शहर इस माध्यम से सामाजिक समरसता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करेगा।

जनजाति सुरक्षा मंत्र के केंद्रीय प्रतिनिधि हिम्मतलाल तावड़ ने बताया कि चूंकि राजस्थान का 80 प्रतिशत जनजाति समाज दक्षिणी राजस्थान में है। इस नाते उदयपुर जनजाति समाज के लिए महत्वपूर्ण केन्द्र भी है। यही कारण है कि हुंकार महारैली का आयोजन उदयपुर में रखा गया है।

तावड़ ने बताया कि पूरे राजस्थान से जनजाति समाज के बंधु 18 जून को सुबह से पहुंचना शुरू होंगे। शहर की विभिन्न दिशाओं में उनके वाहन रखने की व्यवस्था की जाएगी। वे अलग-अलग दिशाओं से रैलियों के रूप में गांधी ग्राउण्ड पहुंचेंगे। शाम 4 बजे से गांधी ग्राउण्ड में जनजाति संस्कृति के विविध रंगों को दर्शाती प्रस्तुतियों का दौर रहेगा। इसके बाद विशाल सभा होगी। सभा के बाद सभी मेहमानों को भोजन पैकेट के साथ विदा किया जाएगा।

पत्रकार वार्ता में डी-लिस्टिंग हुंकार रैली के कर पत्रक का विमोचन भी किया गया।

डी-लिस्टिंग हुंकार महारैली क्यों?

भारत का संविधान न्याय और कल्याण के लिए कई प्रावधान करता है। इस क्रम में संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 में क्रमशः अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए अखिल भारतीय एवं राज्यवार, आरक्षण एवं संरक्षण के लिए महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा सूची जारी करने का प्रावधान है। ऐसी सूचियां सन 1950 में जारी हुई हैं।

यह सूची जारी होने के आधार पर ही संविधान के उद्देश्य के लिए एससी/एसटी वर्गों के लिए हितकारी प्रावधान, सरकारों द्वारा लागू किए जाते हैं।

एक ओर जहां, अनुसूचित जाति हेतु महामहिम राष्ट्रपति ने जब सूची जारी की तब, कन्वर्टेड ईसाइयों एवं मुसलमानों को एससी में सम्मिलित नहीं किया गया। वहीं दूसरी ओर, अनुसूचित जनजातियों की सूची में उक्त दोनों कन्वर्टेड लोगों को बाहर नहीं करके एसटी में ही सम्मिलित रखा गया।

मूल रूप से यह एक भारी विसंगति है एवं संविधान के कल्याणकारी/न्यायकारी उद्देश्य के विपरीत होकर, मूल संस्कृति वाले बहुसंख्यक जनजाती समाज के लिए उचित नहीं है।

यहां यह जान लेना आवश्यक है कि कन्वर्जन के उपरांत  जनजाति  सदस्य, इंडियन क्रिश्चियन कहलाते हैं जो कि कानूनन अल्पसंख्यक की श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार कन्वर्टेड ईसाई और मुस्लिम दोहरी सुविधाओं को ले रहे हैं।

इस संबंध में सन 1968 में डॉ. कार्तिक उरांव, जनजाति नेता/पूर्व सांसद ने, इस संवैधानिक/कानूनी विसंगति को दूर करने के प्रयास किए एवं विस्तृत अध्ययन भी किया।

जनजाति नेता डॉ. कार्तिक उरांव ने 1968 में किए अपने अध्ययन में पाया कि 5 प्रतिशत कन्वर्टेड ईसाई, अखिल भारतीय स्तर पर कुल एसटी की लगभग 70 प्रतिशत नौकरियां, छात्रवृत्तियां एवं शासकीय अनुदान ले रहे हैं, साथ ही प्रति व्यक्ति अनुदान आवंटन का अंतर उल्लेखनीय रूप से गैर-अनुपातिक है। इस प्रकार की मूलभूत विसंगति को दूर करने के लिए संसद की संयुक्त संसदीय समिति का गठन हुआ, जिसने अनुशंसा की कि अनुच्छेद 342 से कन्वर्टेड लोगों को एसटी की सूची से बाहर करने के लिए राष्ट्रपति के 1950 वाले आदेश मे संसदीय कानून द्वारा संशोधन किया जाना आवश्यक है। इस मसौदे पर तत्कालीन 348 सांसदों का समर्थन भी प्राप्त हुआ था।

यह उल्लेखनीय है कि एसटी की पात्रता के लिए विशिष्ट प्रकार की संस्कृति आवश्यक है। यहां विशिष्ट प्रकार की संस्कृति का आशय पूजा पद्धति से है। यह भारतीय मत है, एवं भारतीय आदि विश्वास, आदि संस्कृति व जनजातीय संस्कृति का सार है। इसी आधार पर संशोधन का दावा रहा है। परंतु सन 1970 के दशक में इस हेतु विचाराधीन मसौदे पर कानून बनने से पूर्व ही लोकसभा भंग हो गई। यह एक दुःखद अध्याय है। यह प्रश्न विकास की प्रक्रिया में सबसे गरीब, दूरस्थ निवासी और बुनियादी समस्याओं से जूझती लगभग 12 करोड़ जनजातियों का है। एसटी हित के लिए पेसा, वनाधिकार कानून जैसे जल, जंगल, जमीन और जागरूकता के महत्वपूर्ण कानून भी ढंग से लागू नहीं हो पा रहे हैं।

सन् 2000 की जनगणना और 2009 का डॉ. जेके बजाज का अध्ययन भी इस गैर-आनुपातिक और दोहरा लाभ हड़पने की समस्या की विकरालता को उजागर करता है। यह अध्ययन भी बताता है कि कन्वर्टेड ईसाई एवं मुसलमान अनुसूचित जनजातियों की अधिकांश सुविधाओं को हड़प रहे हैं और दोहरा लाभ ले रहे हैं।

इस क्रम में सन् 2006 में जनजाति सुरक्षा मंच का गठन किया गया और कन्वर्टेड ईसाइयों एवं मुसलमानों को अनुसूचित जनजाति की सूची से हटाने की एक सूत्री बात को आगे बढ़ाया गया। इन प्रयासों के अंतर्गत सन् 2009 में  राष्ट्रपति को 28 लाख हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन देकर सुरक्षा मंच द्वारा इस हेतु आग्रह-निवेदन भी किया गया।

सन् 2020 में डॉ. कार्तिक उरांव के जन्म दिवस, 29 अक्टूबर के अवसर पर व्यापक जनसंपर्क अभियान किया गया, जिसमें 288 जिलों में जिला कलेक्टर/संभागीय आयुक्तों के माध्यम से, 14 विभिन्न राज्यों के राज्यपाल व 7 राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिलकर, महामहिम राष्ट्रपति महोदय को ज्ञापन द्वारा निवेदन किया गया। सन 2021 में डॉ. कार्तिक उरांव के जन्म दिवस, 29 अक्टूबर के अवसर पर इस बारे में विस्तृत चर्चा की गई।

अब तक के प्रयासों पर विस्तृत चर्चा एवं मंथन के उपरांत, एक महाअभियान शुरू किया गया है, जो सड़क से संसद तक और सरपंच से सांसद तक संपर्क हेतु चल रहा है।

पूरे देश की सभी जनजातियां एवं अखिल समाज इस बात को लेकर चिंतित जान पड़ा है, और जनजाति सुरक्षा मंच ने उक्त विसंगति को सभी के समक्ष रखा है।

इस क्रम में ग्राम संपर्क कर, देशभर में जिला सम्मेलनों का भी आयोजन किया जा रहा है। विगत दिनों दिल्ली में जनजाति सुरक्षा मंच के कार्यकर्ताओं ने सांसद संपर्क महाअभियान शुरू किया है, जिसमें 480 से अधिक सांसदों से संपर्क कर डी-लिस्टिंग का कानून बनाने का आग्रह किया जा रहा है। इनमें राजस्थान के 35 सांसद सम्मिलित हैं।

इस एक सूत्रीय अभियान को लेकर जनजाति सुरक्षा मंच तब तक तक संघर्ष करेगा, जब तक कन्वर्टेड ईसाई और मुसलमानों को एसटी की पात्रता और परिभाषा से बाहर नहीं निकाला जाता, और इस हेतु संसद द्वारा 1970 से लंबित कानून नहीं बना दिया जाता।

मामले में जन जागरूकता के लिए राजस्थान में 5500 जनजाति ग्रामों में संपर्क करके 14 जिलों में जिला सम्मेलन आयोजित किए गए हैं। इस संघर्ष हेतु सभी राजनीतिक दल, एनजीओ, युवाओं, महिलाओं, सर्व समाज और समाज के मुखियों से सहयोग, सहकार और समन्वय के माध्यम से बाबा साहब के बताए पथ अनुसार शिक्षित बनने, संगठित होने व संघर्ष को आगे बढ़ने का आग्रह किया गया है।

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