हमारी दृष्टि वसुधैव कुटुंबकम की है – डॉ. मोहन भागवत
संघ का काम करने वालों के मन में सबके भले की ही भावना रहती है और सत्य पर चलने का संकल्प। हमें दुनिया की किसी भाषा से, किसी धर्म से, किसी बात से परहेज नहीं है क्योंकि हमारी दृष्टि वसुधैव कुटुंबकम की है। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कल गुवाहाटी में Citizenship Debate over NRC & CAA: Assam and Politics of History” पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम के दौरान अपने उद्बोधन में यह बात कही।
उन्होंने कहा कि हमारे देश में तो कितने अलग-अलग राज्य थे, लेकिन वीज़ा, पासपोर्ट नहीं था। यात्राएं होती थीं। हिमालय से कन्याकुमारी, कच्छ से कामरूप लोगों का आना जाना चलता था। हमारा तो पूरा देश है, हम तो स्वदेशोभुवनत्रयः मानते हैं।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया के किसी भी धर्म या भाषा से हमें कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन जब ऐसा कहा जाने लगा कि यहाँ मेरा खानपान चलेगा, मेरा ईश्वर चलेगा और मेरी भाषा चलेगी – तब हमें समस्या ज्ञात हुई। 1930 से योजनाबद्ध रीति से मुसलमानों की संख्या बढ़ाने के प्रयास हुए। एक योजनाबद्ध विचार था कि जनसंख्या बढ़ाएंगे, अपना प्रभुत्व, अपना वर्चस्व स्थापित करेंगे और इस देश को पाकिस्तान बनाएंगे। यह पूरे पंजाब के बारे में था, यह सिंध के बारे में था, यह असम के बारे में था, यह बंगाल के बारे में था। कुछ मात्रा में सत्य हो गया, भारत का विखंडन हो गया। पाकिस्तान बन गया। लेकिन जैसा पूरा चाहिए था वैसा नहीं मिला। असम नहीं मिला, बंगाल आधा ही मिला, पंजाब आधा ही मिला। बीच में कॉरिडोर चाहते थे, वह नहीं मिला तो फिर जो मांग के मिला वो मिला, अब इसको कैसे लेना ऐसा भी विचार चला। विभाजन के बाद कुछ लोग यहॉं पीड़ित और संत्रस्त होकर आए, वे शरणार्थी थे और कुछ लोग संख्या बढ़ाने का उद्देश्य लेकर आए। संख्या बढ़े, इसलिए उनको सहायता भी होती थी, आज भी होती है। जितने भू-भाग पर हमारी संख्या बढ़ेगी, उतने भू-भाग पर सब कुछ हमारे जैसा होगा। जो हमारे से अलग हैं, वह हमारी दया पर वहां रहेगा अथवा नहीं रहेगा। पाकिस्तान में यह हुआ, बांग्लादेश में भी यही हुआ।
उन्होंने कहा कि हम यह अनुभव करते हैं कि जब ऐसे लोग आकर यहां बसते हैं, वहां उनकी संख्या अगर बढ़ गई तो जिनकी संख्या कम हो गई उनको सदा चिंता में रहना पड़ता है। यह भारत का अनुभव है, असम का अनुभव है। हमारे यहां पहले से ही पूजाओं की स्वतंत्रता है, कुछ बिगड़ता नहीं हमारा। हम भगवान को एक रूप में देखते हैं, आप किसी दूसरे रूप में देखते हैं ठीक है। अपनी भक्ति में हम पक्के हैं, आपकी भक्ति में आप भी पक्के रहो। हमको कोई दिक्कत नहीं है। एक-दूसरे की भाषा का आदर और सम्मान करके हम रहेंगे, एक-दूसरे की भाषाओं की सुरक्षा की भी चिंता करेंगे। यह सारी बातें सभी कहते हैं, यह बात आदर्श की बात के रूप में कही जाती है। लेकिन, इस आदर्श को चरितार्थ करने वाला केवल हिंदुस्तान की परंपरागत संस्कृति का आचरण करने वाला व्यक्ति है, यह हमारी संस्कृति है। सेकुलरिज्म, सोशलिज्म, डेमोक्रेसी जैसी बातें हमें दुनिया से नहीं सीखनी हैं। ये हमारी परंपरा में, हमारे खून में हैं और इसलिए सबसे अधिक प्रामाणिकता से उसको लागू करके हमारे देश ने उसको जीवंत रखा।
उन्होंने संघ के तृतीय सरसंघचालक भाऊराव जी का उदाहरण देते हुए कहा कि भाऊराव जी देवरस इंग्लैंड गए थे। वहां राजनयिकों, सांसद, नाइटहुड की उपाधि प्राप्त लोगों के साथ भोजन था। भोजन के समय भाषण होते हैं तो एक ने उनके स्वागत में भाषण दिया – बड़ा अच्छा लगता है कि भारत के साथ हमारा संबंध आया, भारत को प्रजातंत्र हमने दिया है….वगैरह-वगैरह। तो भाऊराव जी ने उनसे कहा कि आपने सब कुछ अच्छा कहा, धन्यवाद। लेकिन एक तथ्यात्मक गलती है। यह गणतंत्र आपने नहीं दिया। शायद हमारे यहां से वाया ग्रीक आपके यहां आया होगा क्योंकि जब आपका देश नहीं था तब भी हमारे यहां वैशाली, लिच्छवी, ऐसे अनेक गणराज्य थे।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से अपनी पहली भेंट को याद करते हुए उन्होंने कहा कि प्रणव दा बोले, धर्मनिरपेक्षता को लेकर चर्चा चल रही है। धर्मनिरपेक्षता हमें कौन सिखाएगा। हमको दुनिया क्या सिखा सकती है, हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष है। हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष होगा, फिर हम सेकुलर होंगे ऐसा नहीं है। हमारे संविधान के निर्माता ही इस माइंड सेट के थे, सेकुलर थे। इसलिए ऐसा संविधान बनाया।
सरसंघचालक ने कहा कि यह हमारी भोग भूमि नहीं है। यह तो हमारी कर्मभूमि है, कर्तव्य की भूमि है। यहां रहने वाले प्रत्येक का, इस भूमि के प्रति, समाज के प्रति कर्तव्य है और यह उस संस्कृति ने निर्धारित कर दिया है जो किसी पंथ, संप्रदाय और पूजा पर आधारित नहीं है।
सीएए और एनआरसी के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि सीएए और एनआरसी किसी भारतीय नागरिक के विरुद्ध बनाया हुआ कानून नहीं है, भारत के नागरिक मुसलमान को सीएए से कुछ नुकसान नहीं पहुंचेगा। सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए दोनों विषयों (CAA-NRC) को हिन्दू मुसलमान का विषय बना दिया गया है। यह हिन्दू मुसलमान का विषय ही नहीं है। अपने देश के नागरिक कौन हैं, ये जानने की प्रत्येक पद्धति प्रत्येक देश में है। उसमें एनआरसी (NRC) एक पद्धति है। यह किसी के विरुद्ध नहीं है।