तकनीकी शिक्षा अब मातृभाषा में, 14 इंजीनियरिंग कॉलेज करेंगे शुरुआत, एआईसीटीई ने भी दी स्वीकृति
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देश के 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेज क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम प्रारंभ करने वाले हैं। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने भी 11 भाषाओं में बी-टेक कोर्स आयोजित करने को स्वीकृति प्रदान कर दी है। इंजीनियरिंग संस्थाओं में बी-टेक कोर्स हिन्दी, मराठी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, गुजराती, मलयालम, बंगाली, असमी, पंजाबी और उड़िया में उपलब्ध होगा।
क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम उपलब्ध करवाने को लेकर इंजीनियरिंग कॉलेजों के प्रयास की उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने भी सराहना की। उपराष्ट्रपति ने तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों से इस ओर प्रयास करने का अनुरोध किया। क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम उपलब्ध होना छात्रों के लिए वरदान साबित होगा।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि मेरी इच्छा वह दिन देखने की है, जब सभी इंजीनियरिंग, चिकित्सा और कानून जैसे व्यावसायिक और पेशेवर पाठ्यक्रम मातृ भाषा में पढ़ाए जाएंगे। 8 राज्यों के 14 इंजीनियरिंग कॉलेजों द्वारा नए शैक्षणिक वर्ष से क्षेत्रीय भाषाओं में चुनिंदा शाखाओं में पाठ्यक्रम प्रस्तुत करने के निर्णय का भी स्वागत किया।
मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करने के लाभों का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इससे समझ और ग्रहण करने का स्तर बढ़ता है। किसी विषय को दूसरी भाषा में समझने से पहले उस भाषा को सीखना और उसमें निपुणता हासिल करनी पड़ती है, जिसमें काफी मेहनत की आवश्यकता होती है। लेकिन उसी विषय को मातृभाषा में सीखने के दौरान ऐसा नहीं होता है।
देश की समृद्ध भाषाई और सांस्कृतिक विरासत का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत सैकड़ों भाषाओं और हजारों बोलियों का घर है। हमारी भाषाई विविधता हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की मजबूत आधारशिला है। हमारी मातृभाषा या हमारी मूल भाषा हमारे लिए बहुत महत्व रखती है क्योंकि इसके साथ हम गहरे भावनात्मक संबंधों को साझा करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि दुनिया में हर दो सप्ताह में एक भाषा विलुप्त हो जाती है। भारत में 196 भारतीय भाषाएं संकट में हैं। हमारी मूल भाषाओं के संरक्षण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने और मातृभाषा में शिक्षण ग्रहण करने को बढ़ावा देने की जरूरत है। उन्होंने लोगों से अधिक से अधिक भाषाएं सीखने का भी अनुरोध किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि विभिन्न भाषाओं में प्रवीणता आज की परस्पर जुड़ी दुनिया में एक बढ़त प्रदान करती है। सीखने वाली हर भाषा के साथ हम दूसरी संस्कृति के साथ अपने संबंधों को घनिष्ठ बनाते हैं।
नई शिक्षा नीति कम से कम 5वीं कक्षा तक और वांछनीय रूप से 8वीं और उसके बाद तक मातृभाषा/ स्थानीय भाषा/क्षेत्रीय भाषा/घर की भाषा में शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित करती है। विश्व में अनेक अध्ययनों ने यह स्थापित किया है कि शिक्षा के शुरुआती चरणों में मातृभाषा में पढ़ने से बच्चे का आत्म-सम्मान बढ़ता है और उसकी रचनात्मकता में भी बढ़ोतरी होती है।