तमसो मा ज्योतिर्गमय
प्रकृति इन दिनों खुल कर जी रही है, उसे दूषित करने वाले पाबंद जो हैं। पक्षियों का कलरव साफ सुनाई देता है क्योंकि वाहनों का शोर नहीं है। पौधे चैत की हवा में खुलकर खेल रहे हैं, प्रदूषण शून्य स्तर पर हो गया है। सब कुछ कितना सकारात्मक हो रहा है।
मीनू गेरा भसीन
आज चारों तरफ सन्नाटा देखकर दिल सहम सा गया। मैंने आज तक अपने शहर को इतना चुप कभी नहीं देखा। कैसे सब कुछ बदल गया है, एक छोटा सा ना दिखने वाला वायरस बड़े से बड़े देशों की अर्थव्यवस्थाओं को घुटनों पर ले आया।”अति सर्वत्र वर्जयेत” हम कब समझेंगे कि अधिकता अंत ही लाती है। मनुष्य ईश्वर की विवेकशील संतान है लेकिन अपने दंभ के कारण इसने विवेक का प्रयोग करना ही बंद कर दिया। प्रकृति और इसके सभी जीवों को जीवन का उतना ही अधिकार है जितना मनुष्य को, पृथ्वी सबकी है। वसुधैव कुटुंबकम को मानने वाली भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही सामंजस्य वाली रही है। हमारे प्रत्येक (जीव गाय मोर शेर …) का संबंध ईश्वर से है ताकि हम मनुष्य इस सामंजस्य को समझ पाएं। लेकिन हम हर जीव के साथ खिलवाड़ करने लगे तो मानो ईश्वर की सत्ता को ही चुनौती देने लगे। यह प्रकृति की चेतावनी ही तो है- अरे मनुष्य, संभल जा, अवसर है या यूं कहें कि ईश्वर ने हमें अवसर दिया है अपने अंतस में झांकने का। क्या वास्तव में हम जिस होड़ के पीछे लगे हैं वही जीवन है? खाने के लिए जीना या जीने के लिए खाना, पैसों के लिए हम या हमारे लिए पैसा, घर-परिवार या बाहरी संसार, स्वार्थ या परमार्थ ? इन सभी का उत्तर हमारी संस्कृति के पास है, लेकिन हम जानबूझकर भी अनजान बनते हैं। प्रकृति इन दिनों खुल कर जी रही है उसे दूषित करने वाले पाबंद जो हैं। पक्षियों का कलरव साफ सुनाई देता है क्योंकि वाहनों का शोर नहीं है।पौधे चैत की हवा में खुलकर खेल रहे हैं, प्रदूषण शून्य स्तर पर हो गया है। सब कुछ कितना सकारात्मक हो रहा है। हम अपने साथ ही अपने पड़ोसी का भी ध्यान रख रहे हैं, उसके स्वास्थ्य का ध्यान रख रहे हैं। सर्वे भवंतु सुखिनः, सब सुखी होंगे तो हम भी सुखी होंगे। कल स्वच्छ आकाश में तारों को देखते हुए मेरी छोटी सी बेटी ने जिज्ञासा की – मां यह हिलते भी हैं? मैंने कहा हां बेटा इसको टिमटिमाना कहते हैं ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार…..। यह सुअवसर है नई पीढ़ी के सचेत होने का, अपनी प्राथमिकताएं तय करने का, अपनी संस्कृति की ओर लौटने का तथा अपनी प्रकृति को सुरक्षित रखने का। असतो मा सद्गमय……।
प्रकृति के साथ मानवीय संबंधों का फिर से जीवंत होने की सटीक व्याख्या की गई है ।
बहुत सुंदर लेख ???
Bhut sundar didi … ??