तालिबान की पांथिक कट्टरवादी सोच खतरनाक

तालिबान की पांथिक कट्टरवादी सोच खतरनाक

राजीव सचान

तालिबान की पांथिक कट्टरवादी सोच खतरनाक

इतिहास के पन्नों को पलटें तो ध्यान आता है अफगानिस्तान अखंड भारत का ही हिस्सा है। महाराजा रणजीत सिंह के शासन के राज्य की सीमाओं में ही बसता था अफगानिस्तान।  लेकिन यह बात ज्यादा पुरानी नहीं, जब अफगानिस्तान एक आम एशियाई देश था, जहां लड़कियां अपनी मर्जी के परिधानों में स्कूल-कॉलेज जाती थीं। महिलाएं भी शेष विश्व के साथ कदमताल करती दिखाई देती थीं। अब इस सबकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, क्योंकि तालिबान की सोच ने अफगानिस्तान को बंधक बना लिया है, जो पांथिक कट्टरवाद की मानसिकता के वाहक हैं और जिन्होंने काबुल में कब्जा जमाते ही शरिया लागू करने के इरादे स्पष्ट कर दिए हैं।  इसके तहत लड़कियों को स्कूल जाने और महिलाओं को अकेले घर से बाहर निकलने की मनाही होगी। अब वे कोई नौकरी अथवा व्यापार करने की सोच भी नहीं सकतीं। जो कामकाजी महिलाएं थीं, वे घरों में दुबके रहने को विवश हैं और टीवी चैनलों ने अपनी महिला एंकरों को या तो हटा लिया है या बुर्का पहनकर काम करने को कहा है।  भय इतना है कि काबुल में मौजूद विदेशी टीवी चैनलों की महिला संवाददाताओं ने भी बुर्कानुमा परिधान धारण कर लिया है। सार्वजनिक स्थलों में जिन होर्डिंग में महिलाएं दिख रही थीं, उन्हें या तो हटाया जा रहा है या फिर उन पर कालिख अथवा सफेदी पोती जा रही है। यह सब तब हो रहा है, जब तालिबान कह रहा है कि महिलाओं को सरकार में शामिल किया जाएगा।

तालिबानी नेताओं की बातों पर भरोसा नहीं
तालिबानी नेताओं की बातों पर विश्वास न होने के कारण ही लोगों में अफगानिस्तान छोड़ने की होड़ लगी है। अफगान नागरिकों को तालिबान के शासन वाले अफगानिस्तान में अपना कोई भविष्य नहीं दिख रहा है। महिलाओं को अपने भविष्य का संकट सता रहा है, क्योंकि वे अच्छी तरह जानती हैं कि उनकी स्वतंत्रता पर कट्टरता का कठोर पहरा बैठने वाला है और उनका जीवन गुलामों जैसा होने वाला है। तालिबानी शरियत कानून के शासन की सोच वाले लोग हैं। भले ही काबुल हवाई अड्डे के भयावह हालात यह प्रकट करते हों कि हजारों हजार अफगानी देश छोड़ने के लिए तत्पर हैं, लेकिन अफगानिस्तान में तमाम लोग ऐसे भी हैं, जो तालिबान के समर्थक हैं। तालिबान केवल इसलिए आसानी से अफगानिस्तान में काबिज नहीं हो गया क्योंकि अमेरिका ने अपनी सेनाओं को आनन-फानन में वापस बुलाने का निर्णय कर लिया और अफगान सेना बहुत पिलपिली निकली। तालिबान का मार्ग इसलिए भी आसान हो गया, क्योंकि अफगान जनता का एक वर्ग ऐसा है, जो तालिबानी सोच वाला है और जिसे शरिया में कोई बुराई नहीं नजर आती। अमेरिकी संस्था प्यू के एक सर्वेक्षण के अनुसार अफगानिस्तान के 90 प्रतिशत से अधिक लोग शरिया के पक्षधर हैं। ऐसी ही सोच वाले लोग पाकिस्तान में भी हैं। पाकिस्तान किस तरह तालिबान के लौट आने से गदगद है, इसका उदाहरण है पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान का बयान। तालिबान खान की उपाधि पा चुके इमरान खान का कहना है कि तालिबान ने काबुल में काबिज होकर अफगानिस्तान को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराया है।

पाकिस्तान में जश्न
आने वाले समय में अफगानिस्तान मध्ययुगीन बर्बरता में प्रवेश करता दिख रहा है, लेकिन तालिबान के काबुल को हथिया लेने के बाद पाकिस्तान में जश्न का सा माहौल है। सरकार और सेना के साथ पाकिस्तान के तमाम लोग खुश हैं। उन्हें भी इमरान खान की तरह लगता है कि तालिबान के अफगानिस्तान में काबिज हो जाने में कुछ भी गलत नहीं। उन्हें अपने यहां न सही, अफगानिस्तान में शरिया लागू होती दिख रही है और यह उनके लिए खुशी की बात है। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे पर खुश होने वाले लोग दुनिया के और देशों में भी हैं। दुर्भाग्य से ऐसे लोग भारत में भी हैं। इंटरनेट मीडिया पर ऐसे कई भारतीय मिल जाएंगे, जो तालिबान की तारीफ कर रहे हैं और उन्हें अफगानिस्तान की सत्ता का वैध दावेदार बता रहे हैं। एक वायरल चैट में जब एक तालिबान प्रेमी उत्साहित होकर यह खुशखबरी सुनाता है कि राष्ट्रपति अशरफ गनी इस्तीफा देकर अफगानिस्तान से चले गए हैं तो अन्य लोग-अलहमदुल्ला-कहकर खुशी जताते हैं। वे अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को आजादी की जंग की जीत के तौर पर रेखांकित करते हैं। ये सब अनाम-गुमनाम लोग नहीं। इनमें तथाकथित एक्टिविस्ट, पत्रकार और नेता भी हैं। संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे को सही ठहराते हुए कहा कि तालिबान की कार्रवाई वैसी ही है, जैसी हम भारतीयों की आजादी की लड़ाई की थी। यह वही बर्क हैं, जिन्होंने कुछ समय पहले कहा था कि कोरोना की आफत इसलिए आई, क्योंकि भारत सरकार ने शरिया से छेड़छाड़ की है।

तालिबान काबुल में काबिज
तालिबान के काबुल में काबिज होने के बाद इस्लामिक स्टेट और अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों के सिर उठा लेने के तो प्रबल आसार हैं ही, यह भी अंदेशा है कि पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन लश्कर एवं जैश और अधिक बेलगाम हो जाएंगे। वे इन दिनों तालिबान की मदद के इरादे से अफगानिस्तान में सक्रिय हैं। इसका अंदेशा है कि वे नए सिरे से कश्मीर का रुख कर सकते हैं। आशंका यह भी है कि उन्हें तालिबान की मदद भी मिल सकती है। तालिबान का मददगार केवल पाकिस्तान ही नहीं, चीन भी है। चीन और पाकिस्तान तालिबान को भारत के खिलाफ उकसाने का काम कर सकते हैं। वैसे तो भारत को तालिबान से सीधे तौर पर खतरा नहीं है, लेकिन तालिबानी सोच से खतरा अवश्य है। इसी सोच के कारण एक समय कश्मीर में इस्लामिक स्टेट के झंडे लहराए जाते थे। इस्लामिक स्टेट और तालिबान में यदि फर्क है तो केवल उनके काले-सफेद झंडों का।

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