भारत माता को पुन: जगन्माता का स्थान प्राप्त कराएंगे – दादाभाई
दादाभाई गिरिराज शास्त्री
जन्म शताब्दी पर पावन स्मरण
भारत माता को पुन: जगन्माता का स्थान प्राप्त कराएंगे, ऐसा संकल्प करने वाले दादाभाई का जन्म अनन्त चतुर्दशी सन् 1919 में भरतपुर जिले के कामां कस्बे में हुआ था। 1942 में संघ का स्वयंसेवक बनने के बाद वे 1953 से 1992 तक राजस्थान के प्रांत कार्यवाह समेत विभिन्न दायित्वों पर रहे। वे प्रतिदिन सूर्यनमस्कार करने के आग्रह के साथ देव पूजा के तुलना में राष्ट्र पूजा को प्राथमिकता देते थे।
गोसेवा हस्ताक्षर अभियान, स्वामी विवेकानंद व महर्षि अरविंद जन्मशती व श्रीराम जन्मभूमि आदि जन अभियानों में दादाभाई की सक्रिय भूमिका रही। 1990 की कारसेवा के दौरान वे 15 दिनों तक जेल में रहे। दादाभाई कहते थे कि अपना यह संकल्प है कि भारत माता को पुन: जगन्माता का स्थान प्राप्त कराएंगे। एक प्रकार से यह विकल्प रहित संकल्प है, इस संकल्प प्राप्ति हेतु दादा भाई ने अखंड, प्रचंड, पुरुषार्थ किया और अपने तपोपूत जीवन से स्वयंसेवकों को पुरुषार्थ करने की प्रेरणा दी।
उन्होंने शंकराचार्यों समेत प्रमुख संतों व जनप्रतिनिधियों को जोड़कर भारती के कार्य को आगे बढ़ाया। उनके प्रयासों से भारती संस्कृत जयपुर से निकलने वाली राष्ट्रीय स्तर की मासिक पत्रिका बनी। उनका करपात्री महाराज, पुरी शंकराचार्य नरेन्द्रदेव तीर्थ महाराज, श्रृंगेरीपीठ, कांचीपीठ, द्वारिकापीठ व ज्योतिषपीठ के शंकराचार्यों समेत पूर्व राज्यपाल डॉ. सम्पूर्णानंद, सुंदरसिंह भण्डारी से घनिष्ठ सम्बंध रहे। संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्रीगुरूजी, बाला साहब देवरस, रज्जू भैया, कुसी सुदर्शन, एकनाथ रानाडे, माधवराव मूले का भी उन पर अपार स्नेह रहा।