नवरात्र और भगवान श्रीराम

नवरात्र और भगवान श्रीराम

तृप्ति शर्मा

नवरात्र और भगवान श्रीरामनवरात्र और भगवान श्रीराम

भारतीय संस्कृति पूरी तरह आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता पर आधारित है। यहां पूरे वर्ष पर्व चलते हैं, जो आध्यात्मिक महत्व तो रखते ही हैं, प्रकृति से जुड़े होने के कारण उसके पूजन- रक्षण का संदेश भी देते हैं। इन्हीं पर्वों की शृंखला में, वर्ष में चार बार आते हैं नवरात्र, जिनमें से दो (माघ आषाढ़) गुप्त होते हैं तथा दो चैत्र (बासंतीय) व अश्विन (शारदीय) नवरात्र पूरे भारतवर्ष में धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन नवरात्रों में शक्ति स्वरूपा मां भवानी तथा शील और क्षमा स्वरूप श्री राम जी की एक साथ पूजा की जाती है।

मां पार्वती ने नवदुर्गाओं को शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया। इसलिए नवरात्र में आध्यात्मिक शक्ति, भौतिक सुख समृद्धि और आसुरी शक्ति पर देवत्व की विजय की कामना से उन की पूजा की जाती है। नवरात्र का भगवान श्रीराम से भी गहरा संबंध है, जो पूरे भारतवर्ष में श्रीराम के प्रति भक्ति और आस्था का मूल आधार है। चैत्र नवरात्र में विश्व कल्याण के लिए कार्य विशेष साधने हेतु भगवान श्रीहरि ने पृथ्वी पर पुरुषोत्तम के रूप में अवतार लिया और कालांतर में आश्विन नवरात्र में उस कार्य विशेष को सिद्ध किया, जिसके लिए उन्होंने पृथ्वी पर मनुष्य का शरीर धारण किया था।

दोनों नवरात्र हमारे लिए अनेक प्रकार से महत्वपूर्ण हैं। ये दोनों ही ऋतु परिवर्तन के समय प्रारंभ होती हैं। चैत्र नवरात्र ग्रीष्म ऋतु आने से पहले और अश्विन नवरात्र शरद ऋतु आने से पहले। अतः यह समय आयुर्वेद के अनुसार हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इन दोनों महीनों में हमारे शरीर की प्रकृति बदलती है। इसलिए हमें खाने में संयम व सावधानी बरतनी चाहिए। पौष्टिक और अल्पाहार ही लेना चाहिए। इसीलिए नवरात्र में उपवास का विधान है, जो विज्ञान सम्मत है।

चैत्र नवरात्र का संबंध आदिकाल में हुए देवासुर संग्राम से भी है। जब संपूर्ण देवताओं को जीतकर महिषासुर इंद्रासन पर बैठ गया। तब श्रीहरि के साथ अन्य सभी देवों ने भी क्रुद्ध होकर अपने मुख से महान तेज प्रकट किया। जो एक साथ मिलकर नारी के रूप में परिणत हो गया। उसका प्रकाश तीनों लोकों में व्याप्त हो गया। उन शक्ति स्वरूपा देवी को सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र अर्पित किये। इस प्रकार प्रचंड तेज से युक्त मां चंडिका ने अन्य असुरों सहित महिषासुर का वध कर दिया। इसलिए ऐश्वर्य, शक्ति, विजय श्री देने वाली माता का नवरात्र में विशेष पूजन स्तवन किया जाता है। वहीं जब पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ने लगा और राक्षस राज रावण के नेतृत्व में राक्षसों ने धर्म का मार्ग अवरुद्ध कर दिया, तब त्रस्त ऋषि मुनियों ने विष्णु भगवान की शरण ली। उनकी प्रार्थना पर भगवान ने अयोध्या के राजा दशरथ के घर पुत्र रूप में जन्म लिया। दशरथ पुत्र श्री राम चैत्र नवरात्र के अंतिम दिन नवमी को प्रकट हुए, जिसे हम रामनवमी कहते हैं।
“नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरि प्रीता।
मध्य दिवस अति सीत न घामा, पावन काल लोक विश्रामा”।।

धर्म रक्षक भगवान श्रीराम ने असुरों का संहार करके आश्रम, हवन, यज्ञ आदि वैदिक परंपराओं की रक्षा तो की ही, साथ ही आदर्श जीवन का आचरण करके और साधारण मनुष्य का जीवन चरित्र निभाते हुए कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। उन्होंने जीवन शैली का जो उच्च आदर्श स्थापित किया है, वह न केवल भारतीयों के लिए अपितु संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणादायक है। इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारत की पावन भूमि के कण-कण और हमारी जीवन शैली के हर आचरण में विद्यमान हैं।

शारदीय नवरात्र में नौ दिन श्रीराम के आदर्श चरित्र को दर्शाती रामलीला का मंचन किया जाता है और उन आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का संदेश दिया जाता है। अंतिम दिन रावण के संहार के बाद विजयदशमी (दशहरा) का पर्व मनाया जाता है।

17 अप्रैल 2024 की रामनवमी बहुत विशेष और आल्हादित करने वाली है, क्योंकि इस बार सदियों के बाद रामलला अपने उसी भवन में प्रतिष्ठित होकर मुस्कुरा रहे हैं, जहां त्रेता युग में चैत्र शुक्ल नवमी को अवतरित हुए थे। यह उमंग और प्रसन्नता हम सभी भारतीयों में नई ऊर्जा का संचार कर रही है। एक बार पुनः स्मरण करवा रही है कि पुरुषोत्तम श्रीराम की आदर्श जीवन शैली केवल प्रशंसा और भक्ति के लिए ही नहीं बल्कि अनुकरण और शक्ति के लिए भी आवश्यक है। हमारे पूर्वजों की रामराज्य की संकल्पना तभी साकार होगी जब हम श्रीराम के द्वारा प्रतिस्थापित आदर्शों का अनुकरण करेंगे।

वीर सावरकर ने कहा है कि –
जब तक हमारे घरों में रामायण और मनों में श्रीराम विद्यमान हैं, तब तक भारत अजेय है।

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