भारतीय संस्कृति का प्रथम पर्व

भारतीय संस्कृति का प्रथम पर्व

तृप्ति शर्मा

भारतीय संस्कृति का प्रथम पर्वभारतीय संस्कृति का प्रथम पर्व

भारतीय सनातन संस्कृति की गौरवशाली परंपराएं समेटे हुए अपना नववर्ष विक्रम संवत 2081 की चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के अनुसार मंगलवार 9 अप्रैल 2024 को प्रारंभ हो रहा है। हमारी संस्कृति में नित्य नूतन पर्व निरंतर मनाए जाते हैं। भारतीय नववर्ष इसका प्रथम पर्व है, जो ब्रह्मा जी के द्वारा पृथ्वी पर सृष्टि की रचना करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस प्रकार यह पृथ्वी पर हमारे अस्तित्व का पर्व है, जिसे हम ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करने के रूप में मनाते हैं। इस समय प्रकृति अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में दिखाई देती है। लताएं एवं वृक्ष पुष्पित पल्लवित होते दिखाई देते हैं। नई फसलों के अन्न से घर भरा रहता है। प्रकृति में नवीन परिवर्तन एवं उल्लास दिखाई देता है। मौसम मनोहरी होने से सभी लोग आनंदित व कृषक संतुष्ट होते हैं। सूर्य की किरणें पृथ्वी को ऊर्जामय करने लगती हैं। रंग-बिरंगे पुष्पों और सुगंधित वायु के स्पर्श से पक्षियों के कलरव में अद्भुत आनंद भर जाता है।नक्षत्र शुभ स्थिति में होने से नए कार्यों के प्रारंभ होने का शुभ मुहूर्त बनता है। सब पशु पक्षी एवं मानव समाज में उत्साह एवं आनंद का वातावरण दिखाई देता है। वृक्षों की नई कोपलें मन को सहज ही सकारात्मक ऊर्जा से भर देती हैं। वास्तव में हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के खगोलशास्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित है। चंद्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण जैसी वैज्ञानिक घटनाएं अचूक रूप से पूर्णिमा एवं अमावस्या को ही होती हैं।

सृष्टि का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रविवार को सूर्य के प्रथम प्रकाश के साथ हुआ, इसलिए इस दिन प्रथम होरा रवि की थी। तत्पश्चात चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि की होरा आई, जिन पर सातों दिनों का नामकरण किया गया, जिन्हें आज संपूर्ण संसार मानता है। सर्वमान्य एवं सर्व ग्राह्य भारतीय संस्कृति के द्रष्टा मनीषियों और खगोल शास्त्रियों के गहन चिंतन मनन के आधार पर की गई कालगणना से अपना यह नववर्ष पूर्णतया प्रकृति सम्मत है। यह हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान एवं सांस्कृतिक धरोहर को पुष्ट करने का गौरवशाली दिन भी है।

ब्रह्म पुराण के अनुसार पूर्णतः जलमग्न पृथ्वी में से सर्वप्रथम बाहर निकले भूभाग सुमेरु पर्वत पर 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 125 वर्ष पूर्व इसी दिन सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। इस प्रकार भारतीय कालगणना के अनुसार सृष्टि का निर्माण हुए अब तक 1972949125 वर्ष बीत चुके हैं। आज विश्व के वैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं।

यह दिवस अपने गौरवशाली इतिहास और कल्याणमयी संस्कृति को स्मरण करने का महत्वपूर्ण एवं पुण्य अवसर है।आज से 2081 वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रमणकारी शकों को परास्त करके भारत से बाहर खदेड़ा था। इस अभूतपूर्व विजय के कीर्ति स्तंभ के रूप में कृतज्ञ राष्ट्र ने भारतीय नववर्ष की कालगणना को विक्रम संवत नाम दिया।

परंतु हम आजकल जो नववर्ष मनाते हैं, उसमें कैलेंडर पर अंक बदलने के सिवाय नव कुछ भी नहीं है। उस समय अत्याधिक सर्दी के कारण पूरा वातावरण बर्फ के आवरण से ढंका रहता है। प्रकृति सुस्त और शांत होकर अपनी आंतरिक ऊर्जा को एकत्रित करने में जुटी होती है। 31 दिसंबर की रात 12 बजे तक जाग कर लोग फूहड़ नृत्य और खान-पान में लगे रहते हैं और अगली प्रातः जब नया दिनांक 1 जनवरी आता है तो देर तक सोए पड़े रहते हैं, जबकि विज्ञान और सनातन संस्कृति दोनों के अनुसार रात्रि 12 बजे उत्सव मनाना भी दोषपूर्ण है और जो प्रातःकाल स्वागत योग्य है, उस समय सोना भी दोषपूर्ण है।

वहीं जब भारतीय नववर्ष की भोर आती है तब वह तन, मन, प्रकृति, वातावरण सब में उत्साह और स्फूर्ति भर देती है। प्रकृति का अप्रतिम सौंदर्य मन को आह्लादित करता है।

भारतीय नववर्ष हमारे ऋषियों की अलौकिक प्रज्ञा और वर्षों के शोध का चमत्कारिक उद्घोष है, जो नक्षत्रों की सटीक गणना व उनकी स्थिति के अनुसार किया गया है। यह पूर्णत: वैज्ञानिक और प्रकृति सम्मत है।

जिस पीढ़ी को अपनी विरासत और इतिहास पर गर्व नहीं होता, वह आत्मविश्वास से प्रगति के पथ पर कभी नहीं बढ़ सकती। इसलिए संस्कार और संस्कृति की श्रेष्ठ परंपराओं का अनुसरण करते हुए भारतीय गौरव को प्रतिष्ठित करने वाले अपने नववर्ष का उत्साह से स्वागत कीजिए। अपने घरों में ओम अंकित ध्वजाएं लगाएं, दीप प्रज्वलित करें और परिवार के साथ भगवान का पूजन अर्चन करके विश्व कल्याण की कामना करें।
 हमारी संस्कृति का मूल मंत्र यही है_ सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया।

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