नागरिकों को आतंकियों से बचाने में बलिदान हुए जयपुर के कर्नल आशुतोष

वो अक्सर घर को सम्भालती, संवारती रहती है
मेरी मां मेरे घर आने की राह निहारती रहती है।
लौट कर आऊंगा मैं भी, पंछी की तरह एक दिन
वो बस इसी उम्मीद में दिन गुजारती रहती है।
उससे मिले हुए हो गया पूरा एक साल, लेकिन
उसकी बातों में मेरे सरहद पर होने का गुरूर दिखता है…।

28 अप्रैल को मां के लिए यह कविता लिखकर देश सेवा में सेना की उत्तरी कमाण्ड में तैनात कर्नल आशुतोष शर्मा जम्मू-कश्मीर के हंदवाडा में बलिदान हो गए।

जयपुर के वैशाली नगर के रंगोली गार्डन निवासी कर्नल आशुतोष के लिए यह सिर्फ एक कविता नहीं है। सरहद पर तैनात एक भारतीय योद्धा की मां के मन में करवटें लेतीं भावनाएं हैं। मां की इन्हीं भावनाओं को उसके बेटे ने शब्द देकर मां को समर्पित किया और बलिदान हो गया। उनकी लिखी यह कविता दर्शाती है कि मातृभूमि के प्रति अपना कर्तव्य निर्वाह करते हुए भी वह अपनी जन्म देने वाली मां को कभी विस्मृत नहीं कर पाते थे।

रिपोर्ट के अनुसार शुक्रवार को चार आतंकियों के छिपे होने की सूचना पर सेना की राष्ट्रीय राइफल ने पुलिस के साथ मिलकर ऑपरेशन शुरू किया। दोनों की सम्मिलित टीम आतंकियों को ढूंढने में लगी थी। शनिवार को फिर कुछ नई जानकारी मिली और एक बार आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच फायरिंग भी हुई, लेकिन तब आतंकी भाग निकले। शनिवार दोपहर जब 21 राष्ट्रीय राइफल यूनिट के सीओ कर्नल आशुतोष शर्मा के नेतृत्व में उनकी टीम सर्च कर रही टीमों को कॉर्डिनेट कर रही थी तो उन्हें एक घर में कुछ गड़बड़ होने की जानकारी मिली। वह उस तरफ गए जहां एक घर में आंतकियों ने उस घर में रहने वालों को बंधक बनाया हुआ था। कर्नल आशुतोष के नेतृत्व में गई टीम सिविलियंस को सकुशल बाहर निकाल कर स्वयं घर से बाहर निकल रही थी तो छुपे हुए आतंकियों ने इन पर ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। जिसमें कर्नल शर्मा समेत मेजर अनुज सूद, नायक राजेश, लांस नायक दिनेश और जम्मू-कश्मीर पुलिस के सब-इंस्पेक्टर शकील काजी शहीद हो गए।

शहादत पर आंसू के लिए जगह नहीं
मूलतः उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले आशुतोष शर्मा की मां, बड़े भाई पीयूष शर्मा, पत्नी पल्लवी शर्मा और 12 साल की बेटी तमन्ना जयपुर में ही रहते हैं। हंदवाडा के एनकाउंटर में आशुतोष शर्मा के बलिदान होने का समाचार रविवार सुबह उनके परिवार को मिला। समाचार सुनने के बाद परिवार को एकाएक धक्का तो लगा लेकिन वे गर्वित भी हैं। हुतात्मा कर्नल आशुतोष शर्मा की पार्थिव देह सोमवार को जयपुर लाई जाएगी और यहीं सैनिक सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। बलिदानी की पत्नी पल्लवी का कहना है कि सेना की वर्दी उनके लिए जुनून थी और उन्होंने जो किया है, वह उनका निर्णय था। ऐसे में हमें कोई अधिकार नहीं बनता कि हम उनके सर्वोच्च बलिदान पर आंसू बहाएं। हमें उनके बलिदान पर गर्व है।

300 से अधिक आतंकी मार चुकी है उनकी बटालियन
बीते दो दशकों में 300 से अधिक आतंकियों को मार गिराने वाली सेना की 21 आरआर बटालियन जिसके नाम से सिर्फ कश्मीर में ही नहीं, पीओके में बैठे आतंकी सरगना भी कांपते हैं, कर्नल आशुतोष शर्मा इसके दूसरे कमांडिंग ऑफिसर (सीओ) थे। शहीद कर्नल के भाई पीयूष बताते हैं कि आशुतोष को फौज में भर्ती होने की जिद थी। साढ़े छह साल के प्रयासों के बाद वह आखिरकार 13 वीं बार में सफल हुए थे। सेना की वर्दी पहनने के अतिरिक्त उनका कोई और सपना नहीं था।

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