पत्रकारिता के आदर्श व्यक्तित्व – देवर्षि नारद

– प्रशांत पोळ

आज जयेष्ठ कृष्ण द्वितीया, अर्थात देवर्षि नारद जयंती है। देवाधिदेवों के ऋषि, अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के स्वामी, अनेक विषयों के ज्ञाता एवं अनेक ग्रन्थों के रचयिता नारद जी द्वारा रचित ग्रन्थों में से कुछ हैं – नारद पुराण (ऐसा कहा जाता है, यह 25,000 श्लोकों का पुराण है। किन्तु अभी उपलब्ध हैं, 22,000 श्लोक), नारद स्मृति (समाज जीवन के, प्रशासन के, यम-नियम का वर्णन करने वाला ग्रंथ), नारद संहिता, नारद के भक्ति सूत्र, नारदीय सिध्दांत इत्यादि।

देवर्षि नारद कालातीत हैं। नरसिंह अवतार में, भक्त प्रह्लाद को उपदेश देने के लिए वे उपस्थित हैं। रामायण में उनका अस्तित्व है तो महाभारत में भी युधिष्ठिर की सभा में प्रश्नोत्तर के द्वारा सुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए मुनिवर नारद उपस्थित हैं। उनके बारे में, महाभारत में सभापर्व के पांचवें अध्याय में कहा गया है –
देवर्षि नारद अर्थात वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, इतिहास – पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बात जानने वाले, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र के प्रकांड पंडित, संगीत विशारद, नीतिज्ञ, योग बल से समस्त लोकों का समाचार जान सकने में समर्थ, देवताओं – दैत्यों के उपदेशक, सद्गुणों के भंडार, सदाचार के आधार, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले… ।

ये सारे गुण एक आदर्श पत्रकार के हैं।इसलिए देवर्षि नारद जी को आद्य पत्रकार कहा जाता है और यह मान्यता काफी पहले से है, प्राचीन है। हिन्दी का पहला प्रकाशन या पहला समाचारपत्र या पहली पत्रिका थी, ‘उदन्त मार्तंड’। कलकत्ता से प्रकाशित होने वाला यह पत्र, साप्ताहिक था। इसके मालिक / संपादक, जुगलकिशोर सुकुल ने इसे नारद जयंती के दिन प्रकाशित करने की ठानी थी। सन् 1826 में नारद जयंती थी, 23 मई को। उस दिन मंगलवार था। इसलिए यह तय किया गया की उदन्त मार्तंड का प्रकाशन प्रति मंगलवार को होगा। दुर्भाग्य से, किसी तकनीकी कारण से उदन्त मार्तंड का पहला अंक 23 मई को प्रकाशित नहीं हो सका। इसलिए इसके पहले अंक का प्रकाशन हुआ अगले मंगलवार को, अर्थात 30 मई 1826 को…!

नारद जी के बारे में संस्कृत ग्रन्थों में, वैदिक साहित्य में बृहद उल्लेख हैं। ऋग्वेद के अष्टम मण्डल के तेरहवें सूक्त में देवर्षि नारद को द्रष्टा कहा गया है। ऋग्वेद के ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ में भी नारद जी का विस्तृत विवेचन है। छांदोंग्योपनिषद में सनकारी ऋषियों के साथ नारद जी का आत्मतत्व की जिज्ञासा जगाने वाला उल्लेख है।

रामायण, महाभारत, पद्मपुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण, अग्नि पुराण, स्कन्द पुराण…. सभी में नारद मुनि के व्यक्तित्व के अलग अलग पहलू सामने आते हैं।

लौकिक साहित्य में भी अत्यंत आदर के साथ नारद जी का उल्लेख आता है। कालिदास ने कुमारसंभव में नारद जी को भविष्यवेत्ता के रूप में दिखाया है। श्रीहर्ष द्वारा लिखित ‘नैषधीय चरित’ इस महाकाव्य में नारद मुनि, एक पात्र के रूप में आते हैं। ‘शिशुपाल वध’ में कृष्ण के दरबार में प्रखरता और निर्भीकता के साथ अपनी राय रखने वाले नारद जी सामने आते हैं। विक्रमोर्वशीय, आरण्यक, भास रचित ‘बाल चरित’ इन सभी में नारद जी का महत्वपूर्ण स्थान है।

अर्थात हमारे सभी ग्रन्थों में नारद जी की प्रतिमा विद्वान, ज्ञानी, समाज को जोड़ने वाले, समाज हित के लिए आग्रही इस प्रकार की रही। अपनी वाणी का उपयोग उन्होंने हमेशा लोकहित में किया।

किन्तु कुछ वर्षों से नारद मुनि की छवि, चुगली करने वाले, इधर की बात उधर करने वाले, ऐसे खलनायक के रूप में होने लगी। इसका कारण बड़ा मजेदार है। हिन्दी की साठ से ज्यादा पौराणिक फिल्मों में नारद की भूमिका में थे, कलाकार ‘जीवन’ और पौराणिक फिल्में छोड़ दें, तो ये ‘जीवन’ महाशय अपनी मृत्यु तक लगभग सभी फिल्मों में खलनायक (विलन) के रूप में आए। इसलिए भारतीय दर्शक के मन-मस्तिष्क पर ‘नारद मुनि यानि खलनायक’ यह प्रभाव गहराता रहा।

आज नारद जयंती के अवसर पर, देवर्षि नारद का, वह दिव्य स्वरूप स्मरण कर के, पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके स्थापित आदर्शों पर चलने का प्रण करना, यही उनके प्रति आदरांजली होगी..!

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