पत्रकार दानिश की हत्या : काश! सिर्फ लानतें भेजने से काम चल जाता

पत्रकार दानिश की हत्या : काश! सिर्फ लानतें भेजने से काम चल जाता

विवेक भटनागर

पत्रकार दानिश की हत्या : काश! सिर्फ लानतें भेजने से काम चल जाता

इस्लामिक स्टेट और कम्युनिस्ट स्टेट में कोई फर्क नहीं होता। दोनों में ही नेशन स्टेट का कोई अस्तित्व नहीं होता है। उनके विचार में उनकी सत्ता वैश्विक और विश्व केन्द्रित दोनों है।
दानिश की हत्या पर पत्रकार रविश कुमार द्वारा गोली को लानत भेजे जाने के कई मायने हैं। यह किसी अपाॅलोजेटिक हिन्दू का इस्लाम के प्रति करुणभाव का प्रदर्शन कम और कम्युनिस्ट सिस्टम में इस्लाम के गहरे तक पैठ को अधिक दिखाता है। कम्युनिस्ट आज भी यह समझ रहे हैं कि इस्लाम की अग्नि शिखा पर बैठ कर अराजक भारत बनाएंगे और फिर “पाॅवर कम विद द बैरल आफ गन’ की अंग्रेजी कहावत का सत्य कर सत्ता के वलक्ष पर विराजित हो जाएंगे। वे ईरान के विफल माॅडल को नहीं पढ़ रहे हैं। ईरान में मुसलमानों ने कम्युनिस्टों को क्रान्ति के बाद न्यूट्रलाइज किया और सत्ता पर काबिज हो गए। आज तालिबान जब एक कम्युनिस्ट मुस्लिम पत्रकार को गोली मार देता है तो उन्हीं का संगठन तालिबान को सीधे आरोपित नहीं कर पाता। क्योंकि इससे इस्लामिक तालिबानी विचार को चोट पहुंचने का डर होता है। इस प्रकार का विचार भारत में किसी भी संगठन में होना खतरनाक है। वैसे इस्लामिक स्टेट और कम्युनिस्ट स्टेट में कोई फर्क नहीं होता। दोनों में ही नेशन स्टेट का कोई अस्तित्व नहीं होता है। उनके विचार में उनकी सत्ता वैश्विक और विश्व केन्द्रित दोनों है।
दानिश सिद्दीकी की हत्या पर रविश कुमार का वायरल फोटो
सोशल मीडिया पर वायरल फोटो
चर्चा की जाए दानिश की हत्या पर। रविश कुमार ने तो दानिश की गोली को लानत भेज कर मुक्ति पा ली। लेकिन भारत में पहले भी कई लोगों को गोलियां लगीं या बम से मार दिए गए। गांधी को गोली लगी और वह गोली आज तक भारत के राजनीतिक तंत्र में पिस्टल के बैरल और गांधी की छाती के बीच खड़ी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को वामपंथियों और स्यूडो वामपंथियों द्वारा नाथूराम गोडसे के नाम पर हर समय कोसा जाता है। ऐसे में क्या गांधी को लगने वाली गोली को लानत नहीं भेजी जा सकती? रविश को इस गोली को भी लानत भेजनी चाहिए। नेहरू की मौत के लिए दावा किया जाता है कि उनकी मौत सिफलिस से हुई थी, तो रविश को नेहरू के चरित्र  से अधिक सिफलिस को लानत भेजनी चाहिए। वहीं लालबहादुर शास्त्री की मौत के षड्यंत्र पर आज तक कोई स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं है। ऐसे में उनकी मौत या हत्या के लिए किस को लानत भेजें इस पर विभ्रम है।
वैसे भारत में सबसे बड़ा हत्या का मामला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का था। वहां पर प्रधानमंत्री के सुरक्षाकर्मियों सतवंत सिंह, केहर सिंह और बेअंत सिंह ने इंदिरा को गोली मारी। बेअंत सिंह मौके पर ही सुरक्षा कर्मियों की गोलियों के शिकार हो गए। फिर सतवंत सिंह और केहर सिंह को फांसी दे दी गई। वहीं इंदिरा की हत्या के तुरंत बाद सिखों को मारने का जो ताण्डव हुआ, वह सब इंदिरा को लगी गोलियों को लानत भेजने से निपट सकता था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। राजीव को विस्फोट कर उड़ाने वाले बम को लानत भेजनी थी न कि किसी नलिनी को जेल और शिवरासन का एनकाउंटर होना था। सभी कुछ लानत भेजने से हो सकता था। रविश कुमार शायद अब भी मुहम्मदवादियों से डरकर बयानबाजी कर रहे हैं। सरकार के विरुद्ध बोलने में उनको तकलीफ नहीं होती, लेकिन अफगानिस्तान में बैठे अपने आका का विरोध कैसे कर सकते हैं। वहां तो सिर्फ लानत ही भेजी जा सकती है।
(लेखक इतिहासकार हैं)
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