पाकिस्तान की कल्पना

पाकिस्तान की कल्पना

टुकड़े टुकड़े पाकिस्तान / 1

प्रशांत पोळ

पाकिस्तान की कल्पनापाकिस्तान की कल्पना

‘पाकिस्तान’ यह आधी-अधूरी संज्ञा है। इस देश का पूरा नाम है – ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान’। (اسلامی جمہوریہ پاکستان‎ या ‘पाकिस्तान इस्लामी गणतंत्र’) दुनिया का पहला देश, जो इस्लामी राष्ट्र के रूप में बना या यूं कहें कि दुनिया का पहला इस्लामी देश, जो ‘इस्लाम’ के कारण ही राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया।

इस ‘पहले’ इस्लामी राष्ट्र की कल्पना की थी, चौधरी रहमत अली ने। रहमत अली मूलतः पंजाब के होशियारपुर जिले से था। सन 1933 में केंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़ते समय, उसने एक पर्चा निकाला था, जिसका शीर्षक था – ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ (Now or Never : Are we to live or perish for ever ?)। 1933 में लन्दन में अंग्रेजों ने भारत के विषय पर ‘गोलमेज सम्मेलन’ (Round Table Conference) बुलाया था। इस सम्मेलन में शामिल होने जा रहे प्रतिनिधियों के लिए यह पर्चा था। इसमें एक अलग ‘इस्लामी’ राज्य की कल्पना की गयी थी।

लेकिन गोलमेज सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने इस पर्चे को सिरे से नकार दिया। अलग इस्लामी राज्य या राष्ट्र की कल्पना किसी के गले नहीं उतरी। अगले छह / सात वर्षों तक रहमत अली का यह सपना, भारतीय राजनीति के किसी कोने में, अंधकार में छिप गया था।

लेकिन चालीस के दशक के शुरुआती दौर में, हिन्दुस्थान में ‘मुस्लिम पहचान’ यह आंदोलन का विषय बनता गया। हिन्दू – मुस्लिम दंगों की संख्या बढ़ती गयी… और इसी दौर में मुस्लिम नेताओं को रहमत अली का वह सपना याद आया।

रहमत अली के सपने का नाम ‘पाकिस्तान’ (PAKISTAN) था। ‘पाक’ यानि अरबी भाषा में पवित्र और ‘स्तान’ का अरबी में अर्थ होता है जगह। संस्कृत के ‘स्थान’ से स्तान शब्द आया है अर्थात पाकिस्तान यानि ‘पवित्र भूमि’। लेकिन इसमें एक और अर्थ छुपा था – Pakistan – Punjab, North-West Frontier (Afgan) Province, Kashmir, Sindh और Baluchistan। इन नामों में बलूचिस्तान का तो उल्लेख है। लेकिन बंगाल का नहीं।

रहमत अली के उस पत्रक (पर्चे) में एक वाक्य है, जिसे आजके सन्दर्भ में पढ़ने पर हंसी आती है –
‘We are convinced, there can be no peace and progress in India if we the Muslims, are duped into a Hindu-dominated federation, in which we can not be the masters of our own destiny and captains of our own soul.’
_(हमें यह यकीन हो चला है कि इस हिन्दू बहुल फेडरेशन में, जहां हम ठगे जा रहे हैं, वहां शांति और विकास संभव ही नहीं है, कारण यहां हमारी आत्मा और हमारे भविष्य के हम मालिक नहीं हैं)_

इस पर्चे में रहमत अली ने, डॉक्टर सर मुहम्मद इकबाल के उस प्रस्ताव का विरोध किया था, जिसमें उन्होंने (‘पाकिस्तान’ यह नाम लिए बगैर) उत्तर-पश्चिम के चार प्रान्त मिलाकर एक मुस्लिम फेडरेशन की कल्पना की थी।

इस पत्रक के बाद रहमत अली ने अपने नाम के आगे ‘Founder – Pakistan National Movement’ ऐसा लिखना प्रारंभ किया। 36 वर्ष का यह युवक, पाकिस्तान को जन्म देते समय केंब्रिज विश्वविद्यालय में बी.ए. की उपाधि प्राप्त कर रहा था। 1940 में उसने एम.ए. किया।

‘पाकिस्तान’ की कल्पना के एक वर्ष पश्चात, सन 1934 में रहमत अली, मोहम्मद अली जिन्ना से पहली बार मिला। जिन्ना उस समय इंग्लैंड में चार वर्ष बिताने के बाद भारत में लौटने की तैयारी में थे। जिन्ना ने रहमत अली को सुनने के बाद कहा – “माय डिअर बॉय… इतनी जल्दी मत करो। बहता हुआ पानी अपना रास्ता ढूंढ ही निकालता है..!”

रहमत अली चुप बैठने वालों में से नहीं था। सन १९३५ में उसने अपनी पुस्तक प्रकाशित की – Pakistan : The Fatherland of Pak Nation. इस पुस्तक में उसने विस्तार से प्रस्तावित पाकिस्तान का वर्णन किया था। नक़्शे दिए थे। मजेदार बात यह, कि इस पुस्तक में भी दूर – दूर तक बंगाल का जिक्र नहीं था। ‘इस्लाम’ के आधार पर राष्ट्र खड़ा करने की वकालत उसने इस पुस्तक में की थी।,

1940 के मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में, जिन्ना ने पहली बार, मुस्लिम राष्ट्र के बारे में अपनी राय बेबाकी से रखी। जिन्ना ने ‘ईस्टर्न ज़ोन’ की बात कही। लेकिन इस भाषण में ‘पाकिस्तान’ शब्द गायब था।

जिन्ना ने सार्वजनिक रूप से ‘पाकिस्तान’ का उल्लेख किया, सन 1943 में। रहमत अली का सपना, ठीक दस वर्ष बाद लोगों के बीच चर्चा का विषय बन सका..!

पाकिस्तान के इस आंदोलन के दौरान पूरे समय, रहमत अली इंग्लैंड में ही रहा। 1947 में पाकिस्तान बना, जो रहमत अली की कल्पना से छोटा था। रहमत अली पूरा पंजाब चाहता था, कश्मीर चाहता था। हालांकि बंगाल उसकी प्रारंभिक योजना का हिस्सा नहीं था, जो पाकिस्तान को ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के दहशतगर्दी के कारण मिल गया।

पाकिस्तान बनने के बाद रहमत अली, अप्रैल 1948 में पाकिस्तान आया। जिन्ना पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बन गए थे। पाकिस्तान के लिए लड़ने वाले सत्ता के विभिन्न पदों पर आसीन थे। इन सब के बीच में रहमत अली की कोई भूमिका ही नहीं थी। उसके अस्तित्व को किसी ने देखा भी नहीं।

लेकिन बाद में, रहमत अली के जो हाल पाकिस्तान ने किये, लगता है, यह पाकिस्तान के फितरत में ही था….

सितंबर 1948 में जिन्ना की मौत हुई। वजीरे आजम लियाकत अली खान के पास अब पाकिस्तान की कमान थी। ठीक एक महीने बाद, अक्तूबर 1948 को, लियाकत अली ने, रहमत अली को, उसका बोरिया बिस्तर बांध कर पाकिस्तान से भगा दिया..! जी हां! शब्दशः भगा दिया…

अब रहमत अली बिलकुल रास्ते पर था। उसके पुरखों का घर, जो भारत के पंजाब में था, बिक चुका था। पाकिस्तान से उसको भगाया गया था। अंत में थक हार कर वो फिर से इंग्लैंड आ गया।

पाकिस्तान के सपनों का सौदागर, ‘पाकिस्तान’ इस शब्द का जन्मदाता रहमत अली, इंग्लैंड में भीख मांगकर अपना गुजारा कर रहा था। आखिरकार 1951 के प्रारंभ में, इंग्लैंड में, गरीबी और गुमनामी में उसकी मौत हुई। एक सप्ताह तक उसका शव सड़ता रहा। कोई देखनेवाला नहीं था। आखिरकार, केंब्रिज के उसके कॉलेज ने उसके शव को सुपुर्दे ख़ाक किया।

रहमत अली की कब्र आज भी केंब्रिज के कब्रिस्तान में पाकिस्तानी फितरत की गवाही देते खड़ी है…!

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पाकिस्तान के प्रारंभिक आंदोलन में बंगाल नहीं था। पंजाब और सिन्ध से उसका भौगोलिक अंतर यह एक बड़ा मुद्दा था। लेकिन मुस्लिम लीग का जबरदस्त प्रभाव बंगाल पर पड़ता गया। प्रारंभ से ही मुस्लिम लीग ने वहां पर आक्रामक भूमिका ली थी। झगड़ों में, दंगों में मुस्लिम लीग हमेशा हिंसक रहती थी। भद्र (सभ्य) बंगाली समाज उसका हिंसक विरोध करने में पीछे हटता था।

1937 के प्रादेशिक चुनाव में कांग्रेस, बंगाल में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। उसने संयुक्त सरकार भी बनाई थी। लेकिन 1939 में ब्रिटिश सरकार के विरोध में कांग्रेसी मंत्रिमंडल ने स्तीफा दिया और बंगाल को मुस्लिम लीग की झोली में डाल दिया… और तभी से पाकिस्तान की चर्चा में बंगाल का उल्लेख होने लगा। 1946 में मुस्लिम लीग के सुहरावर्दी, बंगाल के वझिरे आजम चुने गए। अपने पद पर आसीन होने के मात्र साढ़े तीन महीने के अंदर, सुहरावर्दी ने बंगाल में जबरदस्त, खूंखार ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ मनाया। एक दिन में दस हजार हिन्दुओं को मौत के घाट उतारा।

इस नृशंस घटना से दो बातें हुईं। देश के बंटवारे का विरोध करने वाली कांग्रेस, मुस्लिम लीग की जिद के आगे झुक गई। और दूसरी बात – होने जा रहे पाकिस्तान का, बंगाल यह अभिन्न अंग रहेगा, यह सिद्ध हुआ।

भारत में दंगों का इतिहास तो पुराना है। अगस्त 1893 को मुंबई में पहला मुसलमान – हिन्दू दंगा हुआ। किन्तु इसके बाद का इतिहास देखेंगे तो मुस्लिम आक्रामकता के कारण हुए दंगों की संख्या क्रमशः बढ़ती हुई दिखती है। विशेषतः चालीस का दशक यह दंगों का दशक था। मुस्लिम लीग की इस आक्रामक शैली का सामना करने के लिए न तो काँग्रेस के पास नेतृत्व था, और न ही नीति। पाकिस्तान के निर्माण में यह घटक सबसे महत्वपूर्ण रहा। गांधीजी ने पश्चिमी पंजाब के सरकारी सहायता शिविर में (जो बाद में पाकिस्तान का हिस्सा बनने वाला था) हिन्दू – सिखों से, सार्वजनिक रूप यह कहा था, ‘मुस्लिम लीग को पाकिस्तान चाहिए था, इसलिए वे हिंसक हुए थे। अब तो उनको पाकिस्तान मिल गया है। वे अब क्यों दंगा करेंगे? आप को मारेंगे? इसलिए आप को भारत में आने की आवश्यकता नहीं है। आप तो यही रहिए’। दुर्भाग्य से सबसे भयानक दंगे, विभाजन के बाद, सितंबर, अक्तूबर और नवंबर में हुए, जिसमें लाखों हिन्दू – सिख मारे गए, विस्थापित हुए।

संक्षेप में, पाकिस्तान के निर्माण में दंगों की बड़ी भूमिका थी।

प्रस्तावित पाकिस्तान में अब शामिल होने जा रहे राज्य थे – सिन्ध पूरा, पंजाब (विभाजित), बंगाल (विभाजित)। नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस की स्पष्टता नहीं थी, कारण वहां पर कांग्रेस का शासन था। किन्तु बाद में नेहरू की जिद के कारण, यह प्रदेश पाकिस्तान को मिला। कश्मीर तो अलग और स्वतंत्र रियासत थी और बलूचिस्तान ने अपना निर्णय, पाकिस्तान बनने के मात्र तीन दिन पहले लिया – स्वतंत्र रहने का। अर्थात रहमत अली ने जिस पाकिस्तान की कल्पना की थी, उसमें से बलूचिस्तान और कश्मीर, पाकिस्तान के जन्म के समय पाकिस्तान का हिस्सा नहीं थे, जो बंगाल कल्पना में नहीं था, वह विभाजित ही सही, पाकिस्तान का अंग बन चुका था।

अर्थात, 14 अगस्त 1947 को, जिस पाकिस्तान ने जन्म लिया, वह एक देश कम, भानुमती का कुनबा अधिक था..!

शायद इसीलिए, जल्दी ही विभाजन के रास्ते पर पाकिस्तान का प्रवास शुरु होने वाला था..!
(क्रमशः)

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