पुस्तक समीक्षा – गाथा गोरा बादल की

भारत के गौरवशाली इतिहास में राजस्थान का अपना महत्व रहा है। राजस्थान का नाम यहां के रणबांकुरों के कारण आज भी सम्मान पूर्वक लिया जाता है। इसलिए यहां की महान धरा चित्तौड़, जो वीर पुत्रों एवं शूर वीरों की भूमि कहलाती है, का अपना विशेष महत्व है। यहां की भूमि वीरों की वीरता तथा वीरांगनाओं के साहस एवं जौहर की कहानियां आज भी कहती है। क्षत्राणी रानी पद्मिनी के बलिदान और पतिव्रता की कहानियां यहॉं के लोकगीतों में आज भी गूंजती हैं। यहां का कण-कण मानो उत्साह से परिपूर्ण है। रानी पद्मिनी के जौहर के साथ ही रणबांकुरे गोरा बादल की कथा भी जुड़ी है। जब अलाउद्दीन रावल रतन सिंह को कैद कर लेता है तब चित्तौड़ के वीर गोरा एवं बादल के नेतृत्व में सैनिक अपने प्राणों की बाजी लगाकर रावल को सुल्तान की कैद से मुक्त कर लाते हैं। इसी वीरगाथा को ब्रजराज राजावत जी ने बहुत ही सुंदर बाल उपयोगी चित्रकथा के रूप में प्रस्तुत किया है ।यह चित्र कथा बच्चों की रुचि अनुसार मनोरम चित्रों से परिपूर्ण तो है ही साथ ही मनोरंजक तरीके से बच्चों को वीरता एवं साहस की प्रेरणा भी देती है। गोरा अंतिम समय में “रावल रतन सिंह सा सुरक्षित दुर्ग में पहुंच गए होंगे…. महारानी सा मैंने अपना वचन निभाया “ऐसा कहकर प्राण त्याग देते हैं। वहीं दूसरी ओर उनके भतीजे बादल, रावल जी को महल तक पहुंचाने में सहायता करते हैं। अंत में कथा रतन सिंह जी की वीरता और महारानी पद्मिनी के अद्भुत जौहर के साथ संपन्न होती है। आशा है अपने सुरुचिपूर्ण चित्रांकन के साथ यह कथा विद्यार्थियों को प्रेरणा प्रदान करेगी।

मीनू गेरा भसीन

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