प्याज़ के छिलके

प्याज़ के छिलके

बलबीर पुंज

प्याज़ के छिलकेप्याज़ के छिलके

आज का कॉलम प्याज़, हमारे जीवन में उसके महत्व, भारतीय राजनीति पर उसके प्रभाव और एक जमाने में मेरे पसंदीदा लेखक-स्तंभकार दिवंगत फिक्र तौंसवी को समर्पित है। इन सबका रिश्ता बहुत पुराना और मजबूत है। छह दशक पहले तौंसवी, जिनका वास्तविक नाम राम लाल भाटिया था— उनका ‘प्याज़ के छिलके’ नामक कॉलम बहुत लोकप्रिय हुआ करता था। प्याज़ का भारतीय राजनीति से भी गहरा नाता है। तभी तो मोदी सरकार ने प्याज़ की बढ़ी कीमतों को नियंत्रित करने हेतु अपने रणनीतिक भंडार से प्याज़ की खेप को सस्ती दरों पर बाजार में उतारने के साथ इसपर 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगा दिया है।

प्याज़, जिसे पंजाबी में गंडा भी कहा जाता है— वह सब्जी तो है ही, परंतु उससे अधिक भी बहुत कुछ है। यह गरीबों का सहारा है, तो अमीरों के पसंदीदा भोजन— ‘बिरयानी’, ‘मटन कोरमा’, ‘चिकन दो प्याजा’ इत्यादि की जान भी है। जब कभी गरीब मजदूर दिहाड़ी करते हुए घर से लाई अपनी पोटली को किसी पेड़ की छांव में खोलता है, तब चूल्हे में पकी रोटियों के साथ हरी मिर्च और साबूत प्याज़ की महक उसकी भूख और चमका देती है। एक हाथ से अपने माथे का पसीना पोछते हुए वह मेहनतकश किसी पक्की सतह पर प्याज़ को अपने दूसरे हाथ की मुट्ठी से तोड़कर अपने लिए एक लजीज दस्तरखान बिछा लेता है। कोई तरकारी या दाल न भी हो, तब भी उस गरीब को रोटी, हरी मिर्च, प्याज़ और उसपर पानी का घूंट वह जायका देता है, जो किसी धनी को को पंच-सितारा होटल में भी नसीब नहीं होता है।

प्याज़— केवल सब्जी या किसी गरीब को संबल देने वाला ही नहीं, अपितु गुणकारी प्राकृतिक औषधि भी है। इसमें पर्याप्त मात्रा में सोडियम, पोटेशियम, फोलेट्स, विटामिन ए-सी-ई, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन और फास्फोरस पाया जाता है। प्याज़— सूजनरोधक, एंटी-एलर्जिक, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-कार्सिनोजेनिक भी होता हैं। इसके अतिरिक्त प्याज़ मानव हृदय, बालों, हड्डियों आदि के लिए फायदेमंद होने के साथ कैंसर के रोकथाम में भी बहुत उपयोगी है। यदि जैन समुदाय को छोड़ दें, तो प्याज़ सर्वग्राही है और सार्वभौमिकता का आदर्श है। भारतीय व्यंजनों में शामिल कई प्रकार के दालों और सब्जियों में चंद ही ऐसे पकवान हैं, जो प्याज़ के बिना भी बन सकते हैं। अब जो सब्जियां बिना प्याज़ के बन भी जाती है, उनमें एक विशेष स्वाद और गुण का अभाव अवश्य होता है।

प्याज़ बहुमुखी आयाम का मालिक है। भोजन के साथ इसका उपयोग तंज कसने में भी होता है। इस कला में स्वर्गीय फिक्र तौंसवी दक्ष थे। फिक्र का जन्म 1918 में बलूच (अब पाकिस्तान में) स्थित तौंसा शरीफ में हुआ था। उनका शिक्षण लाहौर में हुआ। विभाजन के बाद वे अमृतसर, तो बाद में दिल्ली आकर बस गए। इस्लाम के नाम हुए बंटवारे ने फिक्र को भीतर तक तोड़ दिया और इस पीड़ा को उन्होंने 1948 में ‘छठा दरिया’ नाम से लेखबद्ध किया। कालांतर में उन्होंने खंडित भारत में व्यंग्यकार के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। तौंसवी ने अपने जीवन में 20 उर्दू और 8 हिन्दी पुस्तकों को लेखबद्ध किया था। उनका कॉलम ‘प्याज़ के छिलके’ मूलरूप से एक उर्दू दैनिक में प्रकाशित होता था, जिसका हिन्दी अनुवाद कुछ समाचारपत्रों में भी छपता था। पता नहीं कि प्याज़ ने फिक्र को साहित्य की नई बुलंदियों पर पहुंचाया या उनके लेखन ने प्याज़ को अदबिय्यात में नई इज्ज़त बख्शी।

प्याज़ अपने गुण और स्वभाव के कारण किसी भी परिवेश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। यह स्वाद तो बढ़ाता ही है, साथ ही उसे काटने वाले की आंख से आंसू भी निकाल देता है। दुनिया में मौजूद सभी फल-सब्जियों में प्याज़ ही एकमात्र ऐसी वनस्पति है, जो किसी सरकार को पलटने की क्षमता भी रखती है। सुधी पाठक दिल्ली में वर्ष 1998 की उस सियासी घटनाक्रम से परिचित होंगे, जिसमें प्याज़ की अनियंत्रित कीमतों ने तत्कालीन सत्तारुढ़ भाजपा को अपने दो मुख्यमंत्रियों को बदलने पर विवश कर दिया, तो बाद में इसने सरकार को ही गिरा दिया। अनुमान लगाना कठिन नहीं कि इस चुनावी वर्ष में प्याज़ की बढ़ती कीमतें कई सरकारों को सांसत में डाले हुए है।

आखिर प्याज़ के दाम क्यों बढ़ने लगे? देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़, भारी वर्षा, खराब गुणवत्ता वाले प्याज़ की बड़ी हिस्सेदारी, टमाटर के साथ-साथ अन्य सब्जियों की बढ़ी कीमतें प्याज़ की कीमत को प्रभावित कर रही हैं। स्पष्ट है कि मोदी सरकार टमाटर की तरह प्याज़ की कीमतें बढ़ने से चिंतित है। खाद्य बाज़ार में इस प्रकार के हालिया सरकारी हस्तक्षेप के केवल एक-दो उदाहरण नहीं हैं। कीमतों को नियंत्रित करने हेतु कुछ विशेष क्षेत्रों में सरकार ने अपने सुरक्षित भंडारों से सस्ती दरों पर प्याज़-टमाटरों के साथ गेहूं-चावल को खुले बाजार में उतारा है, तो गेहूं, गैर-बासमती सफेद चावल और चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध के साथ अरहर, उड़द पर भंडार सीमा तक लगा चुकी है। मोदी सरकार ने इस आशा में भी खाद्य मुद्रास्फीति को थामने का प्रयास किया है, ताकि आरबीआई आगामी दिनों में ब्याज दरों में एक और बढ़ोतरी न करे। आरबीआई द्वारा ऐसा करने से देश में आर्थिक विकास की संभावनाओं को धक्का लगने और मध्यमवर्गीय परिवारों पर दबाव बढ़ने की आशंका बनती है।

भारतीय पाक विद्या में प्याज़ के महत्व को अतिरंजित नहीं किया जा सकता। यदि ईश्वर पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त हैं, तो प्याज़ के बिना विश्व की समस्त पाक विद्या अधूरी है। भारतीय राजनीति में प्याज़ का स्थान बहुत अनूठा है। मतदाताओं का मूड सुधारने/बिगाड़ने में प्याज़ की कीमत निर्णायक भूमिका निभाती है। प्याज़ अपनी लोकप्रियता के कारण बाकी किसी मुद्दे को सार्वजनिक विमर्श में गौण करने की भी शक्ति रखता है। यह मजेदार बात है कि यदि किसी गली-मोहल्ले, बस-स्टैंड या आस-पड़ोस की राजनीतिक चर्चाओं में तर्क-तथ्यों को उधेड़ा जाता है, तो उस विवाद के अंत में आपसी रिश्ते में खटास के अलावा कोई सार नहीं निकलता। ऐसे ही प्याज़ की परतों को लगातार उधेड़ने पर आखिर में आपके हाथ उसके छिलके ही बचते हैं। शायद फ़िक्र तौंसवी ने इसी सोच के साथ अपने कॉलम का नाम ‘प्याज़ के छिलके’ रखा था।

(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं)

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