फेक नैरेटिव, एक बड़ी चुनौती

फेक नैरेटिव, एक बड़ी चुनौती

फेक नैरेटिव, एक बड़ी चुनौती

किसी भी देश की तस्वीर को, उसकी इमेज को खराब करने के लिए इन दिनों एक नया ट्रेंड चल रहा है- फेक नैरेटिव और फेक न्यूज। इसका ताजा उदाहरण है- कोरोना महामारी के दौरान भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को फेक नैरेटिव के माध्यम से धूमिल करने का प्रयास। कई देशी और विदेशी समाचार पत्र, पोर्टल और न्यूज चैनल इसके लिए एक टूलकिट तैयार करते हैं। जैसे- अमरीकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स में कोरोना से तथाकथित मौतों की भयावह तस्वीर। दुर्भाग्य से भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने में स्वदेश के ही एजेंडा पत्रकार और फोटोग्राफर शामिल होते हैं और इन्हें इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा खासा फंड मिलता है। दुर्भाग्य से इन फेक नैरेटिव को तोड़ने में और सफाई देने में सामान्य तौर पर इतनी देर हो जाती है कि उसका व्यापक असर नहीं होता।

भारत विश्व में आर्थिक उन्नति  की श्रेणी में निरंतर अग्रसर होता जा रहा है। यही कारण है कि भारत को अफवाह के दौर में कमजोर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से देश के तंत्र को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है। इस बाढ़ में बड़े बड़े पत्रकार और राजनैतिक दलों के कार्यकर्ता भी बह जाते हैं। किसान आंदोलन के दौरान एक प्रतिष्ठित समाचार चैनल के संपादक स्तर के पत्रकार ने दुराग्रहवश ऐसे ही फेक नैरेटिव को चलाने के प्रयास किए, लेकिन पकड़े गए। संस्थान ने उन्हें एक महीने के लिए ऑफ स्क्रीन कर दिया। हाल के दिनों में उत्तरप्रदेश की कुछ आपराधिक घटनाओं को सांप्रदायिक बनाने के नैरेटिव चलाए गए। लेकिन जल्द ही पकड़े गए। यूपी की योगी सरकार ने फेक नैरेटिव चलाने वालों के विरुद्ध एफआईआर ठोक दी। अब उन लोगों को थानों और अदालतों के चक्कर लगाने होंगे। इनमें ट्विटर सहित कई नामी गिरामी चेहरे शामिल हैं।

चुनावों के दौरान फेक नैरेटिव की बाढ़ सी आ जाती है। अमेरिका के 2016 के चुनाव में इसका दुरुपयोग किया गया। आजकल किसी भी देश के चुनाव के दौरान विदेशी मीडिया और विदेशी सरकारें परोक्ष रूप से अहम भूमिका निभाती हैं। फेक न्यूज़ द्वारा सत्ता परिवर्तन, सत्ता तक पहुंचना, अराजकता और देश की अर्थव्यवस्था, शिक्षा ,आर्थिक व राजनीतिक उथल-पुथल से देश को कमजोर करना अब आम बात हो गई है। आज हर देश अपनी सीमाओं की रक्षा दुश्मन से तो बखूबी कर रहा है लेकिन फेक नैरेटिव उसके लिए मुश्किल बना हुआ है। इसके साथ साथ फेक न्यूज ने आम लोगों की समझ को भोंथरा कर दिया है। आम व्यक्ति को समझ ही नहीं आता कि असली समाचार क्या है। हर देश फेक न्यूज़ की गतिविधियों को कंट्रोल करने के लिए कई नीतियां और तरीके ढूंढ रहा है। फेक न्यूज़ के लिए कई सख्त कानून नियम की आवश्यकता  है।

जनता के सामने समाचारों को फेक न्यूज़ के माध्यम से इस प्रकार से परोसा जाता है कि उसे समाचार की सच्चाई पता नहीं चलती। फेक न्यूज़ में अक्सर समाचार का माध्यम   पैरोडी, सैटायर, व्यंग से किसी भी देश, व्यक्ति, स्थान, धर्म, जाति को हानि पहुंचाना होता है। फेक न्यूज़ में फॉल्स  कनेक्शन, मिस लीडिंग कंटेंट, फॉल्कन टेक्स्ट, मैनूपुलेटेड कंटेंट, फैब्रिकेटेड कंटेंट होता है। अधिकतर फेक न्यूज़ में कैप्शन  की व्याख्या और हेडलाइंस में अंतर होना, पूर्वाग्रह के साथ किसी भी व्यक्ति, धर्म, जाति व प्रथा के विषय में लेख लिखना, सही घटना को विरोधाभासी समाचार के माध्यम से प्रस्तुत करना, मैनूपुलेटेड कंटेंट में फोटो, चित्र व विजुअल  को तथ्य के साथ प्रस्तुत ना करके, षड्यंत्र के साथ प्रस्तुत करना, फैब्रिकेटेड कंटेंट में तथ्यों को पूरी तरीके से बदल देना अब आम बात हो गई है।

फेक न्यूज एक तरह का सामाजिक प्रदूषण है। फेक न्यूज़ का निर्माण करने वाले गलत और विषैले कंटेंट लिखते हैं और कुछ चर्चित लोगों के माध्यम से उन्हें उपभोक्ताओं तक  भेजते हैं। हर फेक न्यूज़ अपने प्रोडक्ट को अधिक आर्थिक फायदे के लिए उपभोक्ता तक पहुंचाना चाहता है। इसके लिए ऐसे लोगों को इस्तेमाल किया जाता है जो इन समाचारों के मार्केटिंग एजेंट बनते हैं। फेक नैरेटिव और फेक न्यूज से जूझना बहुत चुनौतीपूर्ण है। यह बहुत विनाशकारी है और इससे निपटने के लिए सभी देशों को एक प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। फेक नैरेटिव और फेक न्यूज फैलाने वालों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *