अमर क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का दर्दनाक निधन
रमेश शर्मा
अमर क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का दर्दनाक निधन
भारतीय इतिहास में कुछ ऐसे प्रसंग हैं, जिन्हें पढ़कर आँखें शर्म से झुक जाती हैं। जिन लोगों ने देश को स्वाधीन बनाने के लिये अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, अंग्रेजों की अमानवीय यातनाएं सहीं, उनके साथ स्वाधीनता के बाद भी उचित व्यवहार नहीं हुआ, उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। इनमें से एक नाम है अमर क्रान्तिकारी बटुकेश्वर दत्त का। उन्हें स्वाधीनता के बाद आजीविका चलाने के लिये भीषण संघर्ष करना पड़ा। परिवार चलाने के लिये उन्होंने कभी गाइड का काम किया तो कभी सिगरेट कंपनी के एजेंट बने। हद तो तब हुई जब पटना कलेक्टर ने उनसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का प्रमाण पत्र माँग लिया।
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को बंगाल में हुआ था। बचपन से उनमें राष्ट्र और संस्कृति के लिये प्रेम था। यह भाव उनको पारिवारिक विरासत में मिला। वे मात्र चौदह वर्ष के थे कि क्रांतिकारी गतिविधियों में जुड़ गये। इन दिनों वे क्रातिकारियों के संदेश वाहक और पर्चे बाँटने का काम करते थे ।
उनके बारे में देश पहली बार तब परिचित हुआ, जब दिल्ली विधानसभा में बम कांड हुआ और वे बंदी बनाये गये। उनका नाम लाहौर षड्यंत्र केस में भी जुड़ा। उन्हें आजीवन कारावास मिला और कालापानी भेज दिया गया। जहाँ उन्हें गंभीर शारीरिक यातनायें दी गईं, जिससे वे मरणासन्न हो गये। उन्हें यातनायें देने का मामला बहुत उछला था। अंत में अति गंभीर हालत में उन्हें 1938 में रिहा कर दिया गया। देवकृपा से वे स्वस्थ हो गये। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में फिर गिरफ्तार कर लिये गये। हालाँकि चार वर्ष की सजा हुई लेकिन 1945 में रिहा हो गए। स्वाधीनता के बाद उन्होंने विवाह किया और पटना में रहने लगे। स्वाधीनता के बाद भी सरकार ने उनकी कोई सुध न ली। उन्हें अपनी आजीविका के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ा। अपने अंतिम समय में में वे काफी बीमार रहे और दिल्ली के अस्पताल में उनका निधन हो गया।