बलूचिस्तान – सतत संघर्ष / 3

बलूचिस्तान – सतत संघर्ष / 3

टुकड़े टुकड़े पाकिस्तान / 11

प्रशांत पोळ

बलूचिस्तान – सतत संघर्ष / 3 बलूचिस्तान – सतत संघर्ष / 3 

बलूचों का पहला संघर्ष 1955 तक चला। 1958 – 1959 में दूसरी बार बलूच लोगों ने विद्रोह किया। तीसरा संघर्ष साठ के दशक में हुआ। पाकिस्तान के दो टुकड़े होने के बाद चौथा संघर्ष 1973 – 1977 के बीच हुआ।

इन सभी संघर्षों में कोई एक व्यक्ति सामने आता था, बलूचों को संगठित करता था और पाकिस्तान सरकार से संघर्ष करता था। यही स्वरूप कमोबेश सभी संघर्षों का रहा। किन्तु इक्कीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में यह चित्र बदला। बलूचों ने अपना एक संगठन बनाया, जो सरकार से लड़ सके और उसके बाद तो इतिहास बदल गया….।

सन् 1973 – 74 के पाकिस्तानी सेना और बलूच गुरिल्लों के बीच हुए भीषण संघर्ष ने अनेक समीकरण बदल दिये। इसी संघर्ष के परिणामस्वरूप, बलूच लोगों का संगठन – ‘बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी’ खड़ा हुआ। वर्तमान में पाकिस्तान, ब्रिटेन और अमेरिका ने इस संगठन को ‘आतंकवादी संगठन’ घोषित किया है।

वैसे आधिकारिक रूप से यह संगठन सन् 2000 में अस्तित्व में आया। किन्तु इसका अनौपचारिक गठन, 1973 से प्रारंभ हुए बलूचिस्तान के सशस्त्र स्वातंत्र्य युद्ध के समय ही हो गया था। ऐसा माना जाता है कि सोवियत रूस की जासूसी एजेंसी के दो जासूसों ने, इस संगठन को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसलिए प्रारंभ में बीएलए (बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी) का झुकाव मार्क्सवाद की ओर था। इनके कुछ अधिकारियों को रूस ने मॉस्को में प्रशिक्षण भी दिया था। किन्तु कालांतर में इन लड़ाकुओं के मस्तिष्क से साम्यवाद का भूत जाता रहा। मुख्यतः बुगती और मर्री, इन दो प्रमुख समुदायों में से ही बीएलए (बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी) का नेतृत्व उभरा है।

चीन की वन बेल्ट – वन रोड परियोजना प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले, पाकिस्तान ने ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने की योजना बनाई। अर्थात इस योजना के पीछे चीन था। आर्थिक रूप से और सामरिक रूप से भी। ग्वादर बंदरगाह चीन को ही विकसित करना था। इसलिए उसने बड़ी संख्या में चीनी मजदूर ग्वादर में भेजे। सन् 2004 में बीएलए ने इन चीनी मजदूरों पर जबरदस्त आक्रमण किया। चीन के दबाव में, पाकिस्तान को यहाँ पर बीस हजार अतिरिक्त जवान तैनात करने पड़े।

दिनों दिन बीएलए अस्त्र – शस्त्रों के मामले में शक्तिशाली हो रही थी। अभी भी पाकिस्तान में इस संगठन पर प्रतिबंध नहीं था। लेकिन 15 दिसंबर 2005 की उस आतंकवादी घटना ने सारे समीकरण बदल दिये। उस दिन जनरल मुशर्रफ, बलूचिस्तान के दौरे पर थे। वह कोहलू एजेंसी क्षेत्र में स्थानीय वनवासियों की एक सभा को संबोधित कर रहे थे। तभी, भरी सभा में रॉकेट गिरने लगे। मुशर्रफ बाल बाल बचे। अनेक लोगों की मौत हुई। घटना के दो घंटे बाद, क्वेट्टा के प्रेस क्लब में ‘मिराक बलूच’ का फोन आया। उसने कहा कि ‘वह बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का प्रवक्ता है और कोहलू में उन्होंने ही रॉकेट दागे हैं।’

इस घटना ने पाकिस्तानी सेना को विचलित कर दिया। उसने बलूचिस्तान में कड़े कदम उठाए। अनेक बलूचियों को बीएलए से संबंधता के संदेह पर सीधे मार डाला। अनेकों को कैद में डाला। 7 अप्रैल, 2006 को पाकिस्तान ने बीएलए पर प्रतिबंध लगाया। इसी को देखकर ब्रिटेन ने 17 जुलाई, 2006 को बीएलए को प्रतिबंधित किया। हालांकि ब्रिटेन ने बीएलए के नेता हर्बीयार मर्री को शरणार्थी के रूप में राजनीतिक शरण दी है। लेकिन पाकिस्तान के सबसे निकट के मित्र अमेरिका ने काफी विलम्ब के बाद, 2 जुलाई 2019 को बीएलए पर पाबंदी लगाई।

लेकिन प्रतिबंध के बाद, बीएलए की हिंसक गतिविधियों में जबरदस्त वृद्धि हुई –
• 14 जून 2019 को उन्होंने कलात के एक स्कूल टीचर को गोली से उड़ा दिया। उसने बलूच राष्ट्रगीत गाने से मना किया, और यही उसके मौत का कारण बना।
• इस घटना के डेढ़ महीने बाद, बीएलए के लड़ाकुओं ने 17 पाकिस्तानी पुलिस कर्मियों को अगवा कर लिया। यह करते समय एक पुलिसकर्मी को वहीं मार गिराया। तीन सप्ताह बाद, बीएलए के लड़ाकुओं ने उन 15 पुलिस कर्मचारियों को मार गिराया और सोलहवें को यह दर्दनाक दास्तां सुनाने के लिए छोड़ दिया।
• ऐसी अनेक आतंकवादी घटनाएं हैं, जिसे बीएलए ने अंजाम दिया है।

विशेषतः बीएलए के हमले चीनी अधिकारियों, मजदूरों और पाकिस्तानी सेना / पुलिस पर ही होते हैं। बलूच लोगों में पाकिस्तानियों के प्रति इतनी ज्यादा घृणा है कि बीएलए के हमलावरों ने 15 जून 2013 को बलूचिस्तान के जियारत में स्थित ‘कायदे आजम रेजीडेंसी’ (जिसे ‘जियारत रेजीडेंसी’ भी कहा जाता है), को रॉकेट के सहारे तबाह कर दिया था। इस स्थान पर पाकिस्तान के संस्थापक, कायदे – आजम जिन्ना, अपने जीवन के अंतिम क्षणों में रुके थे।

(हालांकि नवाज शरीफ के मुख्यमंत्री रहते, अगले एक वर्ष में ही, इस जियारत रेसिडेंसी को पुनः पहले के स्वरूप में बांधा गया)

इन बीस वर्षों के प्रवास में बीएलए में अनेक उतार – चढ़ाव आए। टूट फूट भी हुई। किन्तु फिर भी, आज भी बीएलए, बलूचिस्तान को स्वतंत्र कराने, हिंसक रूप से संघर्षरत है।

बीएलए के अलावा ‘बलोच लिबरेशन फ्रंट’ भी बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत है। किसी जमाने में ताकतवर रहा यह लड़ाकू संगठन, डॉ. जुम्मा खान मर्री ने सन् 1964 में बनाया। तब वे दमास्कस (सीरिया) में थे। इसलिए इसका मुख्यालय दमास्कस ही था। बाद में अफगानिस्तान और रूस की सहायता से, बीएलएफ का मुख्यालय अफगानिस्तान बना।

लेकिन बाद में डॉ. जुम्मा खान के साथ पाकिस्तानी अधिकारियों ने सब ठीक से जमा लिया। इसलिए बीएलएफ के अनेक लड़ाकू सैनिक, बीएलए में शामिल हो गए, और जुम्मा खान को पाकिस्तानी सेना ने भारत के विरोध में बोलने के लिए बाध्य किया।

अर्थात यह बात अवश्य है कि बलूचिस्तान के लोगों में पाकिस्तान के प्रति समर्पण की भावना न पहले कभी थी, न अब है। आज भी बलूच नागरिक विविध माध्यमों से अपनी स्वतंत्रता के लिए प्रयास कर रहे हैं। किन्तु यह अब कठिन हो चला है। बलूचिस्तान के एक बड़े भूभाग पर चीन का अप्रत्यक्ष कब्जा है। ग्वादर बन्दरगाह तो उनका है ही, साथ में चीन – पाकिस्तान का जो आर्थिक कॉरिडोर बन रहा है, उसका बहुत बड़ा हिस्सा, बलूचिस्तान से गुजरता है। बलूचिस्तान के चौथे बडे शहर, ‘हब’ में चीन 1320 मेगा वॉट का पॉवर प्लांट लगा रहा है, जिसकी लागत 970 मिलियन यूएस डॉलर है। ग्वादर में भी उसने 330 मेगा वॉट का पावर प्लांट लगाया है। ग्वादर बंदरगाह तक बन रहे एक्सप्रेस वे का पूरा खर्चा चीन उठा रहा है। अपने इस निवेश को सुरक्षित रखने के लिए, चीन का पुरजोर प्रयास है कि बलूचिस्तान में अलगाववादी तत्वों का खात्मा हो।

इसलिए अभी बलूचिस्तान की स्वतंत्रता चाहने वालों को केवल पाकिस्तान से नहीं लड़ना है। चीन से भी उनको दो – दो हाथ करने पड़ेंगे…!
(क्रमशः)

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