कथक के पर्याय पण्डित बिरजू महाराज का महाप्रयाण
17 जनवरी। भारतीय नृत्य मंच को अपनी अलौकिक कला से विभूषित करने वाले पद्मविभूषण पण्डित बिरजू महाराज का हृदयगति रुकने से निधन हो गया। उन्होंने रविवार-सोमवार मध्यरात्रि में दिल्ली के साकेत हॉस्पिटल में अंतिम श्वास ली।
4 फरवरी 1938 को बालक ‘बृजमोहन’ अर्थात बिरजू ने कथक के प्रसिद्ध गुरु जगन्नाथ महाराज के घर जन्म लिया जिन्हें लखनऊ घराने के अच्छन महाराज कहा जाता था। बिरजू महाराज के चाचा लच्छू महाराज व शंभु महाराज ने इन्हें नृत्य में प्रशिक्षित किया परंतु साथ ही गायन की भी दीक्षा इन्हें मिली। इस प्रकार बिरजू महाराज गायन व नृत्य, दोनों में पारंगत हुए।
पिता के निधन के उपरांत इन्होंने परिवार की शास्त्रीय नृत्य परंपरा को आगे बढाते हुए मात्र १३ वर्ष की आयु में नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य शिक्षण देना आरंभ कर दिया। तत्पश्चात वे भारतीय कला केंद्र व संगीत नाटक अकादमी के कथक केंद्र से जुड़े। उनके मार्गदर्शन में कथक केंद्र ने कला विकास में सराहनीय कार्य किया। कथक केंद्र के निदेशक पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने कलाश्रम के माध्यम से भारतीय नृत्य परंपरा को आगे बढ़ाया।
बिरजू महाराज ने लखनऊ कथक परंपरा के माध्यम से कृष्ण गोपिका भक्ति के सूक्ष्म भावों को साक्षात मंच पर उतारा। वके भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दिव्यता को अंतरराष्ट्रीय जगत में ले गए। बिरजू महाराज ने प्रकारांत भारतीय शास्त्रीय नृत्य के भविष्य को न केवल संरक्षित किया अपितु संवारा भी। 1986 में वे पद्मविभूषण पुरस्कार से अलंकृत हुए।
पण्डित बिरजू महाराज ने अपनी कला के जादुई स्पर्श से हिंदी सिनेमा को भी समृद्ध किया। उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता सत्यजीत राय की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ में संगीत- नृत्य निर्देशन और देवदास, उमराव जान, डेढ़ इश्किया आदि फिल्मों में शास्त्रीय नृत्य संयोजन किया। 2012 में विश्वरूपम के नृत्य संयोजन हेतु उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
पण्डित बिरजू महाराज का निधन भारतीय कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। माननीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत कई हस्तियों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। संस्कार भारती ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है।