वागड़ अंचल में जनजाति समाज को तोड़ने का बीटीपी का वामपंथी चरित्र हुआ उजागर
कुमार नारद
राजस्थान के वागड़ अंचल में जनजाति समाज को भ्रमित कर राजनीति करने वाली बीटीपी का वामपंथी चरित्र उजागर हो गया है। बीटीपी के इस कारनामे का पूरे उदयपुर संभाग समेत जनजाति समाज में प्रबल विरोध हो रहा है। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन कर कार्रवाई की मांग को लेकर ज्ञापन दिए जा रहे हैं। लेकिन स्वयं को ट्राइबल हितैषी बताकर राजनीति करने वाली बीटीपी ने स्पष्टीकरण देने के बजाय चुप्पी साध ली है।
भारत के वृहद समाज को उनकी मान्यताओं और परंपराओं के आधार पर विभाजित करने के प्रयास स्वतंत्रता से कई दशक पहले से चल रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद वामपंथी इतिहासकारों और भारतीय समाज की एकता के विरोधियों ने भारतीय समाज के भीतर विभाजनकारी तत्व डालने के भरसक प्रयास किए। लेकिन मान्यताओं, परंपराओं, भाषा-बोली, खान-पान और रहन-सहन की रंग-बिरंगी धाराओं के आपसी सामंजस्य से एकजुट भारतीय सनातन समाज को बांटने में वे लोग सफल नहीं हुए। अपनी कुत्सित चालों की विफलता के बाद उन्होंने देश के उत्पादक समाज जनजाति समाज को दूसरे समाज से अलग करने के विफल प्रयास किए। माता शबरी, निषादराज, सुग्रीव, अंगद, सुमेधा, जामवंत, जटायु से लेकर बिरसा मुंडा तक सभी जनजातीय बंधु भारत के शेष समाज के साथ वैसे ही समरस थे जैसे दूध में शक्कर। विश्व मूलनिवासी दिवस को यहां के संदर्भों के बिना ही जनजाति समाज के बीच आदिवासी दिवस के रूप में प्रचारित करने का प्रयास किया। लेकिन जनजाति समाज के भीतर से ही उठी आवाजों के कारण उनका यह दुराग्रही आंदोलन वहीं ढेर हो गया।
जनजाति समाज के बीच विभाजनकारी एजेंडा चलाने का ताजा उदाहरण राजस्थान के दक्षिणी जिलों में पैर जमाने की कोशिश कर रही भारतीय ट्राइबल पार्टी का है। राजस्थान के वागड़ अंचल में वनवासी समाज को भ्रमित कर राजनीति करने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का वामपंथी चरित्र उजागर हो गया है। बीटीपी के इस कारनामे का पूरे उदयपुर संभाग समेत जनजाति समाज में प्रबल विरोध हो रहा है। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन कर कार्रवाई की मांग को लेकर ज्ञापन दिए जा रहे हैं। लेकिन स्वयं को ट्राइबल हितैषी बताकर राजनीति करने वाली बीटीपी ने स्पष्टीकरण देने के बजाय चुप्पी साध ली है। दरअसल, भारतीय ट्राइबल पार्टी के कार्यकर्ताओं ने उदयपुर जिले के सलूम्बर क्षेत्र स्थित सोनार माता मंदिर पर लगे केसरिया ध्वजा को हटाकर बीटीपी का झंडा लगा दिया। इस दौरान वहां उपस्थित श्रद्धालुओं ने इसका विरोध किया तो उन्हें डरा-धमकाया तथा पुजारी देवीलाल मीणा के साथ मारपीट की गई। इसके विरोध में संत, भगत, मेत-कोटवालों समेत समाज के लोगों ने मोर्चा खोल दिया है। सलूम्बर, कोटड़ा, गोगुंदा, मावली, खेरवाड़ा, सीमलवाड़ा, आसपुर, साबला, दोवड़ा, हथाई के साथ ही उदयपुर संभाग में अनेकों स्थानों पर बीटीपी के इस कृत्य का पुरजोर विरोध किया जा रहा है। जनजाति समाज के संत समाज ने राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंप कर बीटीपी की अराजक गतिविधियों पर रोक लगाने और कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि बीटीपी के लोग जनजाति क्षेत्र में पुरातन संस्कृति व धर्म पर प्रहार कर समाज में अलगाव की स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। समाज को मुख्य धारा से भटका कर अशांति का माहौल बनाने का षड्यंत्र हो रहा है। इससे पहले भी नंदिनी माता मंदिर पर लगा ध्वज फाड़ना, लाल सलाम का नारा लगाकर पार्टी का झण्डा लगाना, बड़ोदिया के करजी गांव स्थित हनुमान मंदिर से ध्वज उतारना, तलवाड़ा कस्बे के मंदिर से मूर्तियां चोरी करवाने समेत कई कृत्य करवाए गए हैं। बीटीपी के इन हिन्दू विरोधी कृत्यों के पीछे जिहादी और नक्सली ताकतों का भी हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। बीटीपी के इन कृत्यों के विरोध में पूरे वनवासी अंचल में आक्रोश देखने को मिल रहा है।
वागड़ अंचल में बीटीपी के मिशनरीज से तालमेल पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। क्योंकि बीटीपी की ये गतिविधियां मिशनरीज की तरह ही हैं, जिसमें पहले वे समाज के लोगों को मुख्यधारा से तोड़ने का काम करते हैं। इस पूरे अंचल में मिशनरीज गतिविधियां संदिग्ध रही हैं। लेकिन प्रशासन हमेशा की तरह आंखें मूंदे उन्हें स्वीकृति देता रहा है। यही कारण है कि वागड़ अंचल में सैकड़ों बस्तियों में चर्चों का निर्माण हो गया है। मंदिर सिकुड़ रहे हैं। सेवा के नाम पर मिशनरीज कई दशकों से जनजाति समाज के भोले भाले लोगों का मतांतरण कर रहे हैं। यद्यपि पिछले कई दशकों से क्षेत्र में काम कर रहे वनवासी कल्याण परिषद के सकारात्मक कार्यों के कारण जनजाति समाज में जागरूकता का संचार हुआ है और उन्हें मिशनरीज की वास्तविकता पता चली है।
जनजाति समाज के उत्थान की गतिविधियों से जुड़े नारायणलाल बताते हैं कि समाज के गुरु और महापुरुषों पर आए दिन बीटीपी द्वारा कुछ ना कुछ अनर्गल बातें कहना, समाज की संस्कृति में रचे-बसे साधारण बोलचाल जय गुरुदेव, जय सियाराम, जय श्रीराम और राम-राम जैसे अभिवादन के स्थान जय जोहार को थोपने का प्रयास किया जा रहा है। इससे संत सुरमल दास, संत मावजी महाराज, गोविंद गुरु, मामा बालेश्वर के अनुयायियों में जबरदस्त आक्रोश है। बीटीपी द्वारा जिहादी, मिशनरी और नक्सली संगठनों के साथ मिलकर वनवासी समाज के अस्तित्व और गौरव को मुख्य धारा से अलग-थलग करने का प्रयास किया जा रहा है, जिस पर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई होनी चाहिए।