बीटीपी द्वारा जनजाति समाज की परम्पराओं को दूषित करने के कुत्सित प्रयास लगातार जारी

बीटीपी द्वारा जनजाति समाज की परम्पराओं को दूषित करने के कुत्सित प्रयास

बीटीपी द्वारा जनजाति समाज की परम्पराओं को दूषित करने के कुत्सित प्रयास

उदयपुर, 03 सितम्बर। जनजाति समाज के हितों की बात करने वाली बीटीपी आज जनजाति परम्पराओं को ही दूषित करने पर उतारू है। कभी अभिवादन में जय गुरुदेव व जय रामजी कहने की परम्परागत शैली के स्थान पर जय जोहार कहने के लिए युवाओं पर दबाव बनाकर तो कभी हिंदू देवी देवताओं को अपशब्द बोलकर वह एक ओर तो जनजाति युवाओं को उनकी परम्पराओं से भटका रही है वहीं दूसरी ओर धर्म के नाम पर लोगों को आपस में लड़वाकर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने के प्रयास भी कर रही है।

ताजा मामला सलूम्बर में सोनार माता मंदिर की ध्वजा हटाकर, पुजारी के साथ मारपीट कर वहॉं बीटीपी का झंडा लगाने का है। इससे सर्व समाज हतप्रभ है और इसे वागड़ संस्कृति पर आक्रमण मान रहा है। लोगों ने मुखरता से इसका विरोध शुरू कर दिया है। इस विरोध में सर्व समाज जनजाति समाज की स्थानीय परम्परा को बनाए रखने के लिए एकजुट है। पिछले दिनों इसे लेकर अलग-अलग क्षेत्रों में विरोध हुआ। 13 सितम्बर को प्रतापगढ़ जिले में गौतमेश्वर के पास सुहागपुरा में ऐसे विचार के विरुद्ध महापंचायत की घोषणा हुई है। इस मंदिर में हर जाति व समाज के लोगों की श्रद्धा बरसों से जुड़ी है। यहां के आयोजन ये सभी मिलकर करते हैं।

जनजाति समाज के प्रबुद्धजनों का कहना है कि बीटीपी के निहित राजनीतिक स्वार्थों के चलते अपने ही समाज के भटके युवा अपनी ही जनजाति संस्कृति को दूषित कर रहे हैं। गौतमेश्वर में बीते शनिवार को राजस्थान आदिवासी महासंघ की ओर से महायज्ञ और महासभा का आयोजन किया गया था। इसमें महासंघ के प्रदेश उपाध्यक्ष कारूलाल मईड़ा ने भी कुछ बाहरी लोगों द्वारा समाज के युवाओं को भटकाकर समाज की संस्कृति से विमुख करने का आरोप लगाया।

बीटीपी के विरोध में ज्ञापन

उदयपुर जिले की जनजाति बहुल कोटड़ा तहसील में हित रक्षा सेना के बैनर तले जनजाति युवाओं ने विरोध प्रदर्शन किया और ज्ञापन सौंपा। एडवोकेट हिम्मत तावड़ कहते हैं- “लाखों- हजारों वर्षों से राम-राम बोलने वाले जनजाति हिन्दू समुदाय पर जय जोहार अभिवादन बोलने का दबाव बनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ व झारखण्ड की परम्परा थोपी जा रही है। युवाओं को भ्रमित करके नक्सल की तरफ धकेला जा रहा है। ईसाइयों व नक्सलियों के एजेंट हिन्दू समाज को तोड़ने के काम करते हैं व देवी देवताओं को गालियां देते हैं। जनजाति समाज के लोगों को आपस में लड़वाने के लिए उकसाया जा रहा है। ऐसे लोगों का मूल जनजाति समाज विरोध करता है।”

कोटड़ा के ही लाम्बाहल्दू गांव के मुखिया एवं पंच लालू राम गमार कहते हैं “ये जोहार क्या है यहां के जनजाति जानते ही नहीं हैं, मौत-मरण, शादी-ब्याह में महिलाएं-पुरुष राम-राम कहकर ही अभिवादन करते आए हैं और कर रहे हैं, लेकिन एक राजनीतिक दल यहां यह प्रचार कर रहा है कि जय जोहार बोलो जो बिल्कुल गलत है।”

सामाजिक कार्यकर्ता एवं जनजाति चिंतक डॉ. राकेश डामोर कहते हैं “ बीटीपी और चर्च से जुड़े लोग नये- नये मुद्दे उछालकर जनजाति समाज में विभेद करने का काम कर रहे हैं। ये लोग जनजाति देवी- देवताओं और गोविंद गुरू का अपमान करते हैं।

जनजाति संस्कृति और परम्पराओं को खण्डित करने और युवाओं को भटकाने वाले विचार के लोगों के विरोध में प्रतापगढ़ जिले के गौतमेश्वर स्थित सुहागपुरा में 13 सितम्बर को भील- मीणा समुदाय की महापंचायत आहूत की गई है। इसके लिए गांव-गांव में बैठकों का दौर चल रहा है। आदिवासी आरक्षण मंच के प्रतापगढ़ जिला संयोजक खातूराम मीणा भी महापंचायत की तैयारी में लगे हैं। उनका कहना है कि “शराब पीकर नाचना कौन सी जनजाति संस्कृति है। यह जनजाति परम्पराओं को विकृत करने जैसा है।”

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