ब्रह्मलीन गुरु पं. जितेंद्र महाराज को कलासाधकों ने दी श्रद्धांजलि
ब्रह्मलीन गुरु पं. जितेंद्र महाराज को कलासाधकों ने दी श्रद्धांजलि
नई दिल्ली। विगत शिवरात्रि (18 फरवरी) को बनारस घराने के विख्यात गुरु पं. जितेंद्र महाराज ब्रह्मलीन हुए। दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देने हेतु कड़कड़डूमा स्थिति संगीतिका इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स में एक स्मृति सभा का आयोजन किया गया, जिसमें देश भर से संत समाज सहित कला जगत के साधकों शीला झुनझुनवाला, रविंद्र मिश्रा, अकरम खान, सुमन देवगन, कुमुद दीवान, रानी खानम, विनायक शर्मा सहित संस्थान के शिष्यों व गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति रही।
पं. जितेंद्र महाराज की अंतेष्टि से लेकर गरुड़ पुराण तथा तेहरवीं पर हवन, प्रसाद का वितरण पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध नृत्यांगना नलिनी और कमलिनी द्वारा सनातन परंपरा के अनुरूप निर्वाह किया गया।
बनारस घराने के विख्यात गुरु पं. जितेंद्र महाराज का 18 फरवरी, 2023 को स्वर्गवास हो गया था। उन्होंने कथक नृत्य को अप्रतिम ऊंचाइयां दीं। ‘संगीत नाटक अकादमी सम्मान’, ‘कालिदास सम्मान’ व अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत पं. जितेंद्र महाराज ने कथक नृत्य में अभिनव प्रयोग किए और विगत सात दशकों में विश्वभर में अपनी प्रतिभा से अपार यश-कीर्ति अर्जित की। रुद्र अवतार, राम की शक्तिपूजा, अग्निशिखा, शिवशक्ति, अर्धनारीश्वर, वीरांगना, पीतांबरा, गंगा अवतरण, मीरा माधव जैसी अनुपमेय प्रस्तुतियों से इस नृत्यविधा की स्थापना में योगदान दिया। न केवल भारतवर्ष के प्रायः सभी प्रमुख स्थानों वरन् विश्व के अनेक शहरों में अपनी भावपूर्ण कला-साधना से दर्शकों और कला-मर्मज्ञों को सम्मोहित कर लिया।
पं. जितेंद्र महाराज ने अपने शिष्यों के साथ 18000 फीट की ऊँचाई पर प्रस्तुति करके विश्व रिकॉर्ड बनाया। देशभर के शिव और शक्तिपीठों पर प्रस्तुति करके उन्होंने भारतीय कलादृष्टि और परंपराओं का विस्तार किया। ‘संगीतिका इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स’ के माध्यम से उन्होंने हजारों युवाओं को कथक की शिक्षा-दीक्षा दी। ऑक्सफोर्ड, कैंब्रिज, मेनचेस्टर, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स, किंग्स मेडिकल कॉलेज, हेलसिंकी, अमरीका, चीन, इंडोनेशिया, बैंकॉक आदि की शिक्षण संस्थाओं में कथक के विषय में छात्रों-अध्यापकों में जागृति उत्पन्न की।
अपनी कला-साधना से पं. जितेंद्र महाराज ने भारतीय नृत्यकला को नए आयाम दिए। उनकी प्रमुख शिष्याद्वय नलिनी-कमलिनी ‘गुरु-शिष्य परंपरा’ का अद्भुत उदाहरण हैं, जो अपने गुरु की परंपरा और कला-साधना को निरंतर विस्तार दे रही हैं।