मरुधरा का गौरव गान

यह मरुधरा मां भारती के मस्तक का अमिट स्वाभिमान है,
जांबाज़ योद्धा और वीरांगनाएँ इसकी आन बान शान हैं।
जब भी रण में उद्घोष किया रजपूती योद्धाओं ने समरभवानी का,
तब कटे हुए शीश ने भी शौर्य दिखाया मरुधरा की जवानी का।।

नंगी तलवारों ने रण में शत्रु का हरदम लहूपान किया है,
झुका कोई नहीं यहां, हर कोई स्वाभिमान लेकर जिया है।
हाड़ा रानी ने यहां सेनाणी में निज हाथों शीश दान दिया है,
और पन्नाधाय ने तो स्वामीभक्ति में पुत्र तक बलिदान किया है।।

महाराजा सूरजमल ने अपने शौर्य से इस धरा का गौरव गान किया है,
भामाशाह भी कब पीछे रहे उन्होंने भी सर्वस्व महाराणा को दान दिया है।
रक्तरंजित केसरिया तलवारें हल्दीघाटी का नाम इतिहास में अमर कर गईं,
और राणा की सेना के आगे अस्सी हजारी मुगलिया सेना भी डर गई।।

क्षत्राणियाँ भी करके श्रृंगार यहां कूद पड़ीं जौहर कुंड में,
पर तनिक आंच न आने दी अपने सतीत्व की आन में।
इस शौर्यधरा को मेरा बारंबार प्रणाम है,
जहां प्राणों से भी ज्यादा प्रिय लोगों को अपना स्वाभिमान है।।

सूरजभान सिंह

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4 thoughts on “मरुधरा का गौरव गान

  1. Ase hi lage raho acha likhte ho
    Jo bhi likhte ho dil chhu leta
    Great work
    Little brother

  2. Aap ki poetry bhut hi achi h brother
    Aap yu hi likhate rho. Or aap ek din bhut ache writer bano.
    Aap ki poetry superb..

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