महारानी पद्मिनी का जौहर

वह महारानी पद्मिनी सिसोदिया राजवंश की आभा थी,
सौंदर्य और रणकौशल में उनके चहुं ओर चर्चे थे।
राजमहल में सब हर्षित थे ऐसी महारानी पाकर,
बात ये मेवाड़ी मिट्टी के लिए भी गौरव और मान की थी।।

रतनसिंह के राज में प्रजा में खुशी की चहचाहट थी
और चित्तौड़ की भी अपनी अलग ही पहचान थी।
पर इन सबके पीछे एक मौन खतरे की आहट थी,
मेवाड़ी राजसत्ता जिससे बेखबर और अनजान थी।।

चित्तौड़ पर अधिकार जमा लें, था यह खिलजी के मन में,
पर पहले दो-दो हाथ होने थे रतनसिंह से रण में।
शौर्य भरा था रजपूती योद्धाओं के लहू के हर कण में,
और एकलिंग जी की जयकार गूंज रही थी गगन में।।

केसरिया बाना बांधे गोरा और बादल रण में खड़े थे,
ये मेवाड़ी शूरवीर शीश कटने पर भी खूब लड़े थे।
भाल पर तिलक लगा उन वीरों ने काल को जगाया था
और आक्रांताओं को नंगी तलवारों पर नाच नचाया था।।

रावल थे, रण में थे, था पद्मिनी के कंधों पर दुर्ग का भार,
खिलजी ने चित्तौड़ के दुर्ग पर कर दी थी चढ़ाई ।
दुर्ग में कमर कसे खड़ी थीं क्षत्राणियां सोलह हजार,
सबने पद्मिनी के संग में लड़ी थी स्वाभिमान की लड़ाई।।

मोह माया के लिए अपना मान छोड़ शत्रु के आगे झुके,
इतना ठंडा राजपूताने क्षत्राणियों का भी खून न था।
और जौहराग्नि में मां भवानी के जयघोष के साथ कूदे ,
सबमें इतना सामर्थ्य और दिल में वह जुनून न था।।

काल के भाल पर ठोककर ताल सबने ठकुराई की,
सतीत्व की रक्षार्थ शृंगार किया था जोहराग्नि में स्नान।
धज्जियां उड़ी थीं तब धूर्त खिलजी की कुटिल चतुराई की,
और पवित्र जौहराग्नि ने बढ़ाया था उन क्षत्राणियों का मान।।

उस रोज वीरांगनाओं ने पुनीत मेवाड़ी माटी में,
एक इतिहास लिखा, जौहर और अपनी शमशीरों से।
मातृभूमि का स्वाभिमान बचाने को वो मिल गए माटी में ,
ऐसे वीरों की गूंज आज भी गूंजती है दुर्ग की प्राचीरों में।।

सूरजभान सिंह

Print Friendly, PDF & Email
Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *