राजस्थान में मदरसा बोर्ड को वैधानिक मान्यता, मुस्लिम तुष्टीकरण की एक और मिसाल

राजस्थान में मदरसा बोर्ड को वैधानिक मान्यता, मजहबी शिक्षा को मिलेगा बढ़ावा

राजस्थान में मदरसा बोर्ड को वैधानिक मान्यता, मजहबी शिक्षा को मिलेगा बढ़ावा

राजस्थान सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण की एक और मिसाल प्रस्तुत की है। प्रदेश में अब मजहबी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिए राजस्थान में मदरसा बोर्ड को वैधानिक मान्यता प्रदान की गई है।

एक ओर भारत सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति 2020 लाकर देश में शैक्षिक सुधारों की ओर कदम बढ़ाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर राजस्थान सरकार ने मदरसों के संचालन के लिए राजकीय बोर्ड का गठन कर नई शिक्षा नीति को मदरसों में लागू नहीं करने की अघोषित चुनौती दी है। यहां कांग्रेस सरकार ने अपने मुस्लिम प्रेम को खुलेआम उजागर करते हुए 24 अगस्त को विधानसभा के विशेष सत्र में विधेयक पारित किया है। सदन द्वारा पारित किए गए विधेयक के उद्देश्य व कारणों में लिखा गया है कि निर्धन मुस्लिम परिवारों के बच्चों को अरबी, इस्लामी, आधुनिक और वैज्ञानिक अध्ययनों में शिक्षा और साथ ही धार्मिक शिक्षा देने के लिए राज्य में बड़ी संख्या में मदरसे संचालित हैं। मदरसों की वृद्धि और विकास में सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन बाधा उत्पन्न करता है, ऐसे में इनकी स्वायत्तता के लिए स्वतंत्र बोर्ड की आवश्यकता प्रतीत होती है। सरकार द्वारा ऐसा तर्क देते हुए राजस्थान मदरसा शिक्षा बोर्ड का गठन विधेयक पारित किया गया है।

राजस्थान में मदरसा बोर्ड को मान्यता

अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सालेह मोहम्मद के नेतृत्व में मदरसा बोर्ड गठन का विधेयक पारित होने के बाद मुस्लिमों में कांग्रेस सरकार के प्रति अपार प्रेम उमड़ता दिख रहा है, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब केन्द्र सरकार नई शिक्षा नीति ले आई है तो फिर मजहबी शिक्षा के लिए मदरसा बोर्ड गठन का औचित्य ही क्या है? इससे स्पष्ट है कि सिर्फ और सिर्फ मुस्लिमों को खुश करने के लिए ही मदरसा बोर्ड का गठन किया गया है, जबकि प्रदेश में वैदिक शिक्षा के लिए संचालित गुरुकुल व वेदशालाओं के उत्थान के लिए राजस्थान सरकार की कोई योजना नहीं है।

मदरसा बोर्ड गठन का विरोध जताते हुए पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने कहा कि दो महीने पहले राज्य सरकार से मांग की थी कि तबलीगी जमात और मदरसों पर प्रतिबंध लगाया जाए, इनकी शिक्षा और पाठ्यक्रम की पद्धति देश के विरुद्ध है। लेकिन इसके विपरीत अल्पसंख्यक कार्य मंत्री ने मदरसों को स्वायत्तशासी बना दिया। मदरसों को वे अधिकार दे दिए गए जो शिक्षा विभाग के स्कूलों को हैं। मदरसा बोर्ड को संपूर्ण स्वायत्तशासी बना देना यानि कक्षा का वर्गीकरण, पाठ्यक्रम और टीचर्स मदरसा बोर्ड खुद तय करेगा, इससे बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता।

जानकारी के अनुसार पिछले दिनों केन्द्र सरकार द्वारा राजस्थान में संचालित 3240 मदरसों को दी जाने वाली लगभग 9 करोड़ की वित्तीय सहायता रोक दी गई थी। ऐसे में वित्तीय सहायता नहीं मिलने से बंद होने की कगार पर पहुंचे मदरसों को प्रदेश सरकार ने राज्य निधि से 188 लाख रुपए दिए थे। यहां के मदरसों में लगभग 2 लाख स्टूडेंट्स हैं, जबकि यहां साढ़े छह हजार मदरसा पैरा टीचर्स अपनी सेवाएं दे रहे हैं। प्रदेश में पिछले 17 साल से मदरसा बोर्ड महज एक प्रशासनिक आदेश से चल रहा था। 17 साल बाद राजस्थान में मदरसा बोर्ड के प्रस्ताव को अब वैधानिक मंजूरी देकर मदरसा बोर्ड एक्ट राजस्थान विधानसभा में पास कर दिया गया है।

वहीं अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सालेह मोहम्मद ने मीडिया में कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्राथमिकता तालीम पर ज्यादा जोर देने की है। मदरसों में हाईटेक एजुकेशन दी जाए, ताकि मदरसों में बुनियादी तालीम का ढांचा सुधर सके। मदरसों की बिल्डिंग में सुधार हो, खेलने के लिए मैदान और पढ़ने के लिए लाइब्रेरी हो। 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षाओं के लिए मदरसों का अपना अलग बोर्ड बनाया जाये, ताकि वहां बेहतर तालीम दी जाए। ऐसे में राजस्थान सरकार की तुष्टीकरण की राजनीति सभी को समान शिक्षा के अधिकार पर भारी पड़ रही है। सरकार सर्वसमाज के कल्याण के बड़े-बड़े दावे तो करती है लेकिन मजहबी शिक्षा के लिए मदरसा बोर्ड बनाकर अपना वास्तविक चेहरा दिखा दिया है।

एक ही दिन में रिकॉर्ड 13 विधेयक पारित

राजस्थान की 15वीं विधानसभा के पांचवें सत्र की तीसरी बैठक में एक ही दिन में रिकॉर्ड 13 विधेयक ध्वनि मत से पारित किए गए थे। इनमें से कुछ विधेयकों पर ही चर्चा की गई थी, जबकि अधिकतर बिना चर्चा के पारित कर दिये गये। इस पर विधानसभा में खूब हंगामा मचा था। सदन की कार्रवाई चार बार स्थगित करनी पड़ी थी, क्योंकि विधानसभा की कार्यसूची में पहले 8 विधेयक ही शामिल थे। सत्र से पहले कार्य सलाहकार समिति की हुई बैठक में राजस्थान मदरसा बोर्ड विधेयक, 2020 समेत 5 और विधेयकों को सदन की कार्यवाही में शामिल किया गया था। जिसका प्रतिपक्ष के विधायकों ने पुरजोर विरोध किया था।

 

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