राममंदिर का निर्माण स्वतंत्रता के साथ ही हो जाना चाहिए था: दत्तात्रेय होसबोले
नई दिल्ली, 01 अगस्त। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने शुक्रवार को कहा कि राममंदिर का निर्माण स्वतंत्रता के साथ ही हो जाना चाहिए था। यह सांस्कृतिक और वैचारिक स्वतंत्रता का प्रतीक है।
दीनदयाल शोध संस्थान में शुक्रवार को राममंदिर सत्य, साक्ष्य और विश्वास नामक अंग्रेजी पुस्तक का विमोचन किया गया। इस अवसर पर दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि देश में किसी का भी शासन रहा हो लेकिन भारत कभी भी अपनी सांस्कृतिक पहचान नहीं भूला है। इसी के चलते इसका पुनर्जागरण हुआ और राममंदिर आंदोलन चला। इसे रिलीजियस और पंथनिरपेक्षता से जोड़कर इसकी आलोचना करना सही नहीं है।
उन्होंने राममंदिर आंदोलन को जर्मनी के एकीकरण और अमेरिका में रंगभेद के विरुद्ध चल रहे आंदोलन से जोड़ा और कहा कि राममंदिर का विरोध रंगभेद के खिलाफ अमेरिका में चल रही मुहिम का विरोध करने जैसा है। आज दुनिया में रंगभेद से जुड़े गुलामी के प्रतीकों को तोड़ा जा रहा है। इसी प्रकार भारत ने भी सांस्कृतिक गुलामी के प्रतीक को तोड़ा है और राममंदिर बनाना तय किया है।
सह सरकार्यवाह ने कहा कि राममंदिर निर्माण विकास, सांस्कृतिक एकता और सबको सुख देने वाला कार्य है। इस पर कुछ लोग राजनीति कर रहे हैं। लेकिन राममंदिर निर्माण भारत की आत्मा को पहचान देने जैसा है।
वहीं विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि सदियों से हमारे आत्मविश्वास को तोड़कर हममें हीनता पैदा करने का दुष्चक्र चलता रहा है। रामजन्मभूमि केवल संपत्ति नहीं बल्कि स्वाभिमान है। उन्होंने कहा कि राममंदिर निर्माण को वृहद दृष्टिकोण से देखना चाहिए। यह देश में रामत्व जगाने का कार्य है। राम राज्य की तरह देश में अशिक्षा, गरीबी और भेदभाव मिटाने के लिए रामत्व बेहद आवश्यक है। राममंदिर पर विमोचित पुस्तक वरिष्ठ पत्रकार अरुण आनंद और उनके साथ विनय नलवा ने लिखी है।