राम भारत का आत्मतत्व

भारतीय सनातन लोग जानना चाहते हैं कि भारत की आत्मा राम के चरित्र को आख़िर किन षड्यंत्रों में काल्पनिक बताने का घनघोर अपराध किया जाता रहा है? पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिस चरित्र को हम एक गौरवशाली थाती के रूप में सहेजते-संभालते आए हों, उसके प्रति संदेह के बीज वर्तमान पीढ़ी के हृदय में कौन बोने का प्रयास कर रहा है?

प्रणय कुमार

राम मंदिर, रामसेतु और अब रामायण। हर बार वामपंथ और लेफ्ट लिबरल ने भारत की आत्मा रामतत्व को निराधार घोषित करवाने के अनेकानेक शैक्षिक और राजनैतिक षढ़यंत्र रचे। लेकिन जिस भारत की आत्मा ही राममय हो, वहां उसे राम से कैसे अलग किया जा सकता है! इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को यह बात पच ही नहीं पाती कि कैसे भारत ने हजारों साल की सनातन संस्कृति, मूल्यों और सभ्यता को अपने रक्त में जीवित रखा है।

ताजा उदाहरण दूरदर्शन पर प्रसारित ऐतिहासिक धारावाहिक रामायण और महाभारत को लेकर इन तथाकथित लेफ्ट लिबरल का प्रलाप है। लॉकडाउन के इस दुरूह काल में जिस तरह तीस वर्ष पुराने धारावाहिक रामायण और महाभारत ने लोकप्रियता के नए आयाम तय किए हैं, अनेक कथित उदारवादियों के मन में खीझ पैदा हो रही है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि लोकप्रियता के नए आयाम गढ़ रहे इन धारावाहिकों का कैसे विरोध किया जाए।

पत्रकार रवीश कुमार को एक भोजपुरी संदेश के माध्यम से सूचना प्रसारण मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर से यह पूछना पड़ता है कि ”ये लाखों-करोड़ों लोग कौन हैं जो रामायण के पुनः प्रसारण की माँग कर रहे हैं।”  क्यों पद्मश्री से सम्मानित प्रसार भारती की पूर्व अध्यक्ष मृणाल पांडे रामायण सीरियल के पुनः प्रसारण पर विषवमन करती हुई ट्वीट करती हैं कि ‘धन्य हो! घर में नहीं खाना, पर्दे पर रामायण!”  क्या यह सत्य नहीं कि श्री राम का चरित्र और जीवन-संघर्ष हमें भी धीरज, साहस और संयम सिखाता है? इतना विष अपने मन और मस्तिष्क में कैसे रख पाते हैं ये लोग। क्यों देश के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण को ऐसा लगता है कि ”जब करोड़ों लोग ‘जबरन तालाबंदी’ की वजह से परेशानी झेल रहे हैं तो सरकार बड़ी आबादी को दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत सीरियल्स के नाम पर अफ़ीम पिला रही है।” आम लोगों से सहानुभूति की आड़ में क्यों इन जैसे कथित बुद्धिजीवी बार-बार इस देश की आस्था और विश्वास पर चोट करते हैं? क्योंकि ये चरित्र और ये शास्त्र उनके पूर्वाग्रह में फिट नहीं बैठते। आस्था और विश्वास की इस भाव-भूमि पर भारत-विरोध की इनकी विष-बेलें कभी जड़ें नहीं जमा सकतीं।

भारतीय सनातन लोग जानना चाहते हैं कि भारत की आत्मा राम के चरित्र को आख़िर किन षड्यंत्रों में काल्पनिक बताने का घनघोर अपराध किया जाता रहा है? पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिस चरित्र को हम एक गौरवशाली थाती के रूप में सहेजते-संभालते आए हों, उसके प्रति संदेह के बीज वर्तमान पीढ़ी के हृदय में कौन बोने का प्रयास कर रहा है? इन बुद्धिजीवियों के कथन पर कोटि-कोटि जनों के हृदय के स्पंदन, जीवन के आधार, शक्ति-सामर्थ्य के पारावार- युग पुरुष राम को भी क्या अपने अस्तित्व का प्रमाण देना पड़ेगा? क्या जीवित सभ्यताएँ केवल निष्प्राण और निर्जीव साक्ष्यों-अभिलेखों के सहारे जीवन पाती हैं या जिंदा लोगों या धड़कनों का भी उसके लिए कोई अर्थ होता है?

क्या रामसेतु पर प्रश्न उठाने वाले लोग आज प्रायश्चित के लिए तैयार हैं। क्यों पाठ्य-पुस्तकों में मर्यादा पुरुषोत्तम राम को काल्पनिक बताने वाले बुद्धिजीवी अकादमिक जगत से आज बहिष्कृत हैं। उन्हें अपने कुकृत्यों के लिए राष्ट्र और संपूर्ण मानवता से क्षमा नहीं माँगनी चाहिए?

भारत सदियों से अपने ऐतिहासिक महापुरुषों राम, कृष्ण और दूसरे महान चरित्रों से प्रेरणा लेता रहा है। आज यह उनका दायित्व है कि वे अपनी संततियों को यह बताएं कि जिन महानुभावों को इतिहासकार, शिक्षाविद, साहित्यकार बताकार पढ़ाया और सिखाया जा रहा है, वे लोग हमारे पूर्वजों और पुरखों को असत्य सिद्ध करने में जुटे हैं। इसलिए इन लोगों से सावधान रहना होगा। उनका सत्य प्रायोजित और आरोपित है। इसलिए आवश्यकता इस बात कि है कि हम सत्य के उन सूत्रों को मज़बूती से थामे रहें, जो युगों-युगों से काल की कसौटी पर खरा उतरता रहा है। जिनसे प्रेरणा पाकर भारतीय संस्कृति बारंबार दैदीप्यमान होती रही है।

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