रैंक (लघुकथा)

रैंक - लघुकथा

शुभम वैष्णव

रैंक - लघुकथा

अरे आज आपका कोटा आना कैसे हुआ – मुरली ने घनश्याम की ओर देखते हुए पूछा। अरे यार! मेरे बेटे ने उच्च माध्यमिक विज्ञान वर्ग के परीक्षा परिणाम में 97.58% अंक प्राप्त कर  राज्य में पांचवीं रैंक पायी है और बेटे का सपना डॉक्टर बनने का है। इसलिए नीट की तैयारी की दृष्टि से इस नामी संस्थान में उसको प्रवेश दिलवाने आया था – घनश्याम ने कहा।

सच में बच्चे ने पढ़ाई में मेहनत तो बहुत की है जिसका परिणाम भी सुखद आया है। लेकिन एक बात तो बता यार, तू इसी संस्थान में अपने बेटे का प्रवेश क्यों करवाना चाहता है – मुरली ने पूछा? अरे भाई, यह भी कोई पूछने की बात है? इस वर्ष इसी संस्थान ने तो ऑल इंडिया नीट में फर्स्ट रैंक दी है, घनश्याम ने मुरली से हंसते हुए कहा। तुम भी खा गए ना मात, यहां हम रहते हैं इसलिए यहां का सच हमें ही पता है – मुरली ने कहा। कैसा सच, घनश्याम ने प्रश्नवाचक दृष्टि से पूछा?
शिक्षा के व्यवसायीकरण का सच महोदय, सच यह है कि फर्स्ट रैंक इस संस्थान ने नहीं बल्कि दूसरे संस्थान ने दी है, लेकिन इस संस्थान ने अपना नाम बनाने के लिए मोटी रकम देकर रैंक ही खरीद ली, मुरली ने घनश्याम को समझाते हुए कहा।

अच्छा तो मेहनत किसी और ने करवाई एवं नाम किसी और का…, घनश्याम ने मुरली का आभार प्रकट करते हुए कहा। शिक्षा के व्यवसायीकरण का सच घनश्याम के सामने आ चुका था और अब वह इस सच को प्रत्येक छात्र तक पहुंचाने की बात मन ही मन ठान चुका था।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *