सफाई अभियान और “सर्वश्री पिच्चक रत्न” सम्मान(व्यंग्य)

सफाई अभियान : कुछ दाग अच्छे होते हैं (व्यंग्य)

दीपक शर्मा ‘आज़ाद’

सफाई अभियान : कुछ दाग अच्छे होते हैं (व्यंग्य)

देश में समय समय पर कई सफाई अभियान चले जैसे घरों से व्यर्थ के नोटों की सफाई फिर कश्मीर में आतंकवादियों और सीमा पर दुश्मनों की सफाई, उसके बाद घुसपैठियों की सफाई। कई तरह की सफाइयां अभी भी चल रही हैं। इससे गंदगी करने वालों में बड़ी बेचैनी है। वे सफाई में ही कमियां ढूंढते रहते हैं। आजकल भी ढूंढ रहे हैं। भारत ने चीन को कई किमी पीछे खदेड़ दिया, सीमा पर सफाई कर दी। लेकिन सवाल इस पर भी हैं। सवाल तब भी थे जब आतंकियों की सफाई के लिए सर्जिकल व एयर स्ट्राइक की गई थीं। सवाल एनआरसी के मुद्दे पर भी उठाए गए। ऐसे ही सवाल उठाने वाले एक नेताजी से जब पूछा गया कि आप सफाई में अड़ंगा क्यों लगाते हो? आपको नहीं लगता देश को साफ सुथरा रखने में हमारी -आपकी – देश के नागरिकों की ही भलाई है। इस पर वह बोले यह तो मुझे भी पता है, लेकिन अपनी राजनीति चमकाने के लिए यह सब करना पड़ता है।

खैर! जो भी हो हमारे देश का आम आदमी सब जानता है। भला हो गांधी बाबा का जिन्होंने कभी कच्ची बस्तियों में झाड़ू लेकर सफाई अभियान चलाया था। वरना आज वाले समाजसेवक वहां भी अड़ंगा लगाने आ जाते। पर मैं कहना चाहता हूं कि भाई अपनी गली को छोड़िए अपने घर के आगे के हिस्से को साफ और स्वच्छ रखिए। सफाई अभियान में इतना सा योगदान दे दीजिए। पर कुछ तो इतने में भी नाक सिकोड़ने लग जाते हैं।

इस देश के लोगों की सच्ची लगन और श्रद्धा तो देखिए, बिल्डिंग के कोनों, लिफ्ट और दूसरे सार्वजनिक स्थानों में पान की पीक थूकने वालों को रोकने के लिए भगवान को मंदिर से निकल कर दीवारों पर आना पड़ा। यदि यही लगन और श्रद्धा इसके विपरीत हो जाए तो नजारा ही कुछ और बन पड़े।

फ़िलहाल गली-मोहल्ले गंदगी से पटे हुए हैं, जहां देखो वहां ऊंचे ऊंचे टीले बने हुए हैं। कोई यहां आक्क…थू कर रहा है तो कोई वहां पिच्च्च करता हुआ दिख रहा है। खैर अगर कोई भूला भटका मानुष इसमें भी राष्ट्रीय हित ढूंढ निकाले तो उसकी बारंबार जयजयकार की जानी चाहिए।

कल ही एक समझदार से नया ज्ञान मिला। उनकी अद्भुत दृष्टि पाकर मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठा, उन्होंने मुझसे कहा कि देखा जाए तो चलती गाड़ी की खिड़की से पिच्च्च करके थूकने वाले लोग भी राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हैं। इसके अलावा आए दिन होने वाले सड़क जाम और धरना-प्रदर्शनों के बाद परंपरागत प्रक्रिया के अनुसार राष्ट्रीय संपत्ति के नुकसान को भी कम करने वाले होते हैं ऐसे लोग। क्योंकि सड़क पर किसी की पान की पीक यानि पिच्च्च सतही तौर पर भले ही गंदगी मान ली जाए लेकिन असल में इन्हीं पिच्च्च वाली नक्काशियों को सड़क पर होने वाले अकारण जमाव को कम करने का श्रेय जाता है। सोचिए अगर सड़कें गंदगी से भरी होंगी तो वहां लोगों का जमावड़ा या धरना-प्रदर्शन होने की गुंजाइश कम से कमतर होगी। इस हिसाब से तो सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान को कम करने का श्रेय लेने वाले ऐसे महानुभावों को चिन्हित करके आने वाले गणतंत्र दिवस पर माननीय प्रधानमंत्री द्वारा ‘सर्वश्री पिच्चक रत्न’ से सम्मानित किया जाना चाहिए।

उनका ये कहना था और मेरे दिमाग में बस यही चल रहा था कि कुछ दाग अच्छे होते हैं – इसे तो ध्येय वाक्य करार दे दिया जाना चाहिए। इस साल मेरी कोशिश रहेगी कि सड़क और ऐसे तमाम स्थानों को चिन्हित करवाकर, जहां-जहां लोग अनशन, आंदोलन करते हों वहां स्वजनों और मित्रों से आग्रह करके पान की पीक और ढेर सारा कचरा उड़ेलवा दिया जाए। इस साल हमको भी अपने राष्ट्रीय चिंतन को समय देना है न!

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