19 जून 1947 : डूंगरपुर की वनवासी बालिका कालीबाई का बलिदान

19 जून 1947 : डूंगरपुर की वनवासी बालिका कालीबाई का बलिदान

रमेश शर्मा

19 जून 1947 : डूंगरपुर की वनवासी बालिका कालीबाई का बलिदान19 जून 1947 : डूंगरपुर की वनवासी बालिका कालीबाई का बलिदान

यह घटना उन दिनों की है, जब अंग्रेजों ने भारत से जाने की घोषणा कर दी थी। भारत विभाजन की प्रकिया चल रही थी और वे जाते जाते अपनी संस्कृति और चर्च की जमावट मजबूत करके जाना चाहते थे। तेरह वर्षीया वनवासी बालिका कालीबाई राजस्थान के डूंगरपुर जिले के वनाँचल की रहने वाली थी। कालीबाई का जन्म कब हुआ इसका इसका उल्लेख कहीं नहीं मिलता। अनुमानतः जून 1934 माना गया है। उन दिनों वनवासी अंचलों में चर्च ने अपने विद्यालय आरंभ किये थे। जिनका उद्देश्य शिक्षा के साथ रिलीजियस कन्वर्जन करना हुआ करता था। इसकी चिंता उस समय के उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अधिक थी, जो आर्यसमाज या रामकृष्ण मिशन से जुड़े हुए थे। राजस्थान में स्वामी दयानन्द सरस्वती और स्वामी विवेकानंद के बहुत प्रवास हुए थे। इसलिये राजस्थान क्षेत्र में इन दोनों संस्थाओं का प्रभाव था। सुप्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी नानाभाई खांट आर्यसमाज से थे। उन्होंने डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गाँव में एक विद्यालय आरंभ किया था। विद्यालय में सभी वनवासी बच्चों की शिक्षा का प्रबंध था। यह विद्यालय पूरी तरह सनातन भारतीय परंपराओं के अनुरूप था। विद्यालय में उस समय की आधुनिक शिक्षा तो दी जाती थी, परंतु भारतीय गुरु शिष्य परंपरा को भी जीवंत किया जाता था। विद्यालय में मुख्य शिक्षक सेंगाभाई थे। इस विद्यालय में अधिकांश बच्चे वनवासी परिवारों से थे। इनमें एक वनवासी बालिका कालीबाई भी थी। यह भील समाज से संबंधित थी। उसकी आयु तेरह वर्ष थी।

विद्यालय यद्धपि डूंगरपुर के शासक महारावल से अनुमति लेकर आरंभ किया गया था। किन्तु इससे चर्च को आपत्ति थी। उन्होंने कमिश्नर को शिकायत की। कमिश्नर ने डूंगरपुर के महारावल पर दबाव बनाया और विद्यालय बंद करने के आदेश हो गये। इसे नानाभाई ने मानने से इंकार कर दिया और विद्यालय बंद न हुआ। वे जानते थे कि अंग्रेज जाने वाले हैं, तब अंग्रेज अधिकारियों और चर्च के आगे क्यों झुकना। उनके इंकार करने से अधिकारी बौखला गये। एक भारी पुलिस बल के साथ अधिकारी विद्यालय पहुँचे। वे ताला लगाकर विद्यालय सील करना चाहते थे। किन्तु शिक्षक सेंगाभाई ने विद्यालय के द्वार पर खड़े होकर रास्ता रोकना चाहा। पुलिस ने पकड़ कर किनारे किया और विद्यालय पर ताला लगा दिया। शिक्षक सेंगाभाई को रस्सी से गाड़ी के पीछे बाँध दिया और रवाना हो गये। शिक्षक सेंगाभाई घिसटते हुए जा रहे थे। उनका पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था। रास्ते में कालीबाई खेत में काम कर रही थी। उसने देखा कि उनके गुरु को पुलिस घसीट कर ले जा रही है। उसके हाथ में हँसिया था। वह लेकर दौड़ी और रस्सी काट दी। पुलिस इससे और बौखला गई। पुलिस ने गोलियाँ चला दीं। कालीबाई का शरीर छलनी हो गया। वहाँ और भी भील समाज एकत्र हो गया। भील समाज आक्रामक हो गया। पुलिस दोनों को छोड़कर भाग गई। कालीबाई का बलिदान घटना स्थल पर ही हो गया था।

यह घटना 19 जून 1947 की है। सेंगाभाई इतने घायल हो गये थे कि रात में उनका भी प्राणांत हो गया। अगले दिन 20 जून को दोनों का अंतिम संस्कार किया गया। गुरु के प्राण बचाने के लिये बालिका कालीबाई का बलिदान आज भी राजस्थान विशेषकर डूंगरपुर की लोकगीत परंपरा में है।

अब उस स्थान पर एक पार्क बना है, जिसमें कालीबाई की प्रतिमा भी स्थापित है।

19 जून 1947 : डूंगरपुर की वनवासी बालिका कालीबाई का बलिदान

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